बैंक्रप्सी कोड, 2015: गलत सोच का परिणाम

Wednesday, Feb 24, 2016 - 03:40 PM (IST)

विगत कुछ वर्षो में स्टील के आयात, कोयले के आवंटन में रोक, पावर सैक्टर में शिथिलता, इन्फ्रैस्ट्रक्चर तथा एल्यूम्यूनियम के क्षेत्रों में भयंकर मंदी, ब्याज की दरों के 13-14 बार बढने तथा अन्य कई कारणों से आर्थिक तथा औद्योगिक क्षेत्र अत्यधिक खराब स्थितियों का सामना कर रहे हैं।

 

देश के औद्योगिक क्षेत्र का 40 से 45: हिस्सा मध्यम, लघु तथा कुटीर उद्योगों का है जो कि इस मंदी के विशेष तौर पर शिकार हुए हैं। अनुमानत: देश के 5 लाख से ज्यादा छोटे उद्योग एन पी ए हो चुके हैं तथा कई लाख और भी होने के कगार पर हैं।

 

ज्यादातर छोटे उद्योगों के मालिकों के घर भी बैंकों में गिरवी हैं। इन उद्योगों का बैंकों के कृल एन पी ए एकान्ट्स में राशी के अनुसार हिस्सेदारी बहुत कम है! ये उद्योग कई करोड़ श्रमिकों को भी रोजगार उपलब्ध कराते हैं ।

 

छोटे उद्योगों के एकाउन्ट्स जिन वजहों से खराब हुए हैं उनमें इन इकाईयों का ज्यादातर कोई दोष नहीं है। इस समय इन उद्योगों को दोबारा से संभालकर तथा मदद करके ठीक करने की आवश्यकता है। वैसे भी जिसका घर भी गिरवी है वो बैंकों के पैंसे को लेकर कहॉ भाग सकता है।

 

ऐसे समय मेें ''''बैंक्रप्सी कोड, 2015" जैसे कानून को लाने से इन उद्योगों के लाखों मालिक अपने परिवार तथा बच्चों सहित सडक पर आ जायेंगे तथा इनके करोडों मजदूर रोजी रोटी के मोहताज हो जायेंगे ।

 

"बैंक्रप्सी कोड, 2015" के अनुसार किसी भी क्रैडिटर द्वारा किसी इकाई के खिलाफ छोटे से छोटे डिफाल्ट के लिये एडजूडिकेटिंग अथॅारिटी के यहॉ वाद प्रस्तुत किये जाने की स्थिति में उस इकाई का प्रबन्धन तुरन्त इन्सौल्वैन्सी एक्सपर्ट ;लिक्विडेटरद्ध द्वारा ग्रहीत कर लिया जायेगा तथा उस इकाई के सारे वर्कर्स एवं स्टाफ की नौकरियॉ स्वत: ही समाप्त हो जायेंगी। यह प्रस्तावित कानून अमेरिका के कुप्रसिद्ध श्चैप्टर इलेवनश् जैसे कैपिटलिस्ट इकोनोमिक मॉडल पर आधरित है जो भारतीय अर्थतन्त्र की समाजवादी सोच के साथ कही भी मेल नहीं खाता। चैप्टर इलेवन का विवरण खुद यह बताता है कि इस कानून के अन्तर्गत रीऑर्गनाइजेशन बहुत ही मुश्किल है तथा सफलता की संभावना मुश्किल से 10: है।  इसका स्पष्ट मतलब है कि यह कानून सिर्फ श्कब्जा करो और बेच दोश् के लिये लाया जा रहा है। इसके लाने से लाखों-लाखों उद्योग रातों-रात बन्द हो जायेंगे और जिसके दुष्परिणाम इतने भयंकर होंगे जो स्वतंत्रता से आजतक देखे नहीं गये होंगे। ऐसे कानून तभी लाना उचित होगा जब यह माना जाये कि देश के सारे व्यापारी इक्ठे बेवकूफ हो गये हैं और व्यापार चलाना भूल गये हैं जिससे बैंकों के पैसे मर रहे हैं या सभी व्यापारी नियतन किसी षडय़न्त्र के तहत संगठित होकर बैंकों के पैसे मारने या दबाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

बड़े उद्योगों की मल्टी बैंकिग की बजह से बैक्स 60, 75% या किस बैक का कंपनी के सिक्योर्ड पोर्टफोलियो में कितना प्रतिशत है, के चक्कर में पड़कर सालों अपनी वसूली नहीं कर पाते है ! रिजर्व बैंक गवर्नर, जो इस काले कानून के सबसे बड़े पक्षधर हैं, ने खुद कुछ समय पहले आनन्द-गुजरात में कहा है कि "ऋणानुबंधों की विश्वसनीयता पिछले कुछ समय में बहुत कम हो गयी है लेकिन ये छोटे ऋणदाताओं की  वजह  से  नहीं बल्कि बड़े ऋणदाताओं की वजह से  हुआ है। इसको ठीक करना है।" जबकि ज्यादातर एमएसएमई कंपनियों का एक ही बैंक होता है और कंपनी के डिफॅाल्ट की स्थिति में ये बैंक सिक्योरिटाईजेशन एक्ट, 2002 के तहत दो से तीन महीने में कंपनी के ऐसैट्स का अधिग्रहण कर सकता है ! ऐसी स्थिति में कम से कम एमएसएमई ;माइक्रो, स्माल एण्ड मीडियम एन्टरप्राइज़़ेजद्ध उद्योगों के लिए और भी ज्यादा भयंकर कानून की क्या जरूरत है?

 

बैंकों द्वारा कब्जा करो और ऐसेट रिकन्ट्रक्शन कम्पनीज (ए आर सीज) को अत्यधिक सस्ती दरों पर ;अधिक से अधिक 15: वैल्यू पर, वो भी 7-8 वर्ष के रिपेमैण्ट के साथद्ध बेचकर वन टाइम लॉस बुक करके बैंकों की बैलेन्स-शीट तो साफ हो सकती है लेकिन इससे बैंको को लगभग नगण्य राशि की प्राप्ति होगी जबकि अगर बैंक छोटे उद्योगों के साथ सैटलमैण्ट में कुछ लचीलापन अपनाये तो इससे कई गुना राशि की प्राप्ति के साथ-साथ लाखों उद्योग चलेंगे, करोडों मजदूरों की नौकरी बनी रहेगी तथा माननीय प्रधानमन्त्री जी के ''मेक इन इण्डिया'' इनिशिएटिव को भी बूस्ट मिलेगा। खुद रिजर्ब बैंक के अनुसार ऐसैट रीकन्स्ट्रक्शन कंपनीज ने आजतक कुल 189000 करोड़ रुपये के ऐसेट्स को सिर्फ 3400 करोड़ रुपये में हासिल कर लिया है। स्वाभाविक रूप से ये शार्क रूपी ऐ आर सीज इस बिल के कानून बनने का बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं। ऐसा कानून सारे देश के व्यापार को सिर्फ कुछ शक्तिशाली और बड़े व्यापारिक घरानों के हाथों में ही सीमित कर देगा। ऐ आर सीज को ऐसैट्स की बहुत सस्ती प्राप्ति होने की वजह से इस लेन-देन तथा ऐसैट्स की खरीद-फरोख्त में असीमित भ्रष्टाचार की सम्भावनायें रहेंगी। बैंको की बैलेन्स शीट के स्वास्थ्य की तुलना में करोडों लोगों के जीवन का मूल्य निश्चित रूप से अधिक ऑका जाना चाहिए।

 

अगर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक सिकुड़ रहा है, रुग्ण इकाइयों की गिनती बढ़ रही है, बैंकों के खराब लोन बेतहाशा बढ़ रहे हैं, सेंसेक्स गिर रहा है और अर्थव्यवस्था की हालत खराब है तो इसका इलाज ऐसे काले कानून लाकर छोटे व्यापारों को रौंदने से नहीं होगा। कमियॉ सिस्टम में बहुत गहरे तक व्यापित हो चुकी हैं। बैठकर, बात करके और विचार करके चीजों का हल निकलेगा। बैंकों को व्यापारियों के प्रति लचीला रुख अपनाने के लिये कहा जाना चाहिये। संभावनाओं को टटोल कर संभव हो तो रीस्ट्रक्चरिंग की जानी चाहिये। अगर कर्जदार व्यापारी ऐसैट रीकन्स्ट्रशन कम्पनी से ज्यादा राशी देने के लिये तैयार हो तो उसे प्रीफ्रैंस मिलनी चाहिये। छोटे उद्योगों के प्रमोटर्स को शामिल करते हुये एक विशेषज्ञों का पैनल बनाया जाना चाहिये जो इन सभी पहलुओं पर विचार करते हुये अपने सुझाव निश्चित समय के अन्दर दे सके।

 

इसके अतिरिक्त जरुरत है कि बी.आई.एफ.आर. की 14 जजों की बैंच स्ट्रैन्थ, जिसमें सिर्फ एक जज होने की वजह से सुनवाईयॉ लम्बे समय से बन्द पडी हैं, को अधिकाधिक तथा शीघ्रातिशीघ्र पूरा कर दिया जाये तथा इस संस्था को लघु तथा मध्यम उद्योगों; एम एस एम ई के लिये चालू रखा जाये, जिससे सिक इन्डस्ट्रीज कम्पनी एक्ट ;1985 तथा सिक्योरिटाइजेशन ऐक्ट, 2002 जैसे कानूनों की सहायता से एम एस एम ई इकाइयों से समयब़द्ध रुप से वसूली की जा सके।  

 

"बैंक्रप्सी कोड,2015" एक भयंकर कानून है तथा कम से कम एम एस एम ई इकाइयों को इसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर रखे जाना नितान्त आवश्यक है।

 

उपेंद्र गोयल, गाजियाबाद

 
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