ब्याज दरों में कटौती से ग्राहकों को नहीं बैंकों को लाभ

Tuesday, Oct 06, 2015 - 03:58 PM (IST)

नई दिल्लीः रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) द्वारा नीतिगत दरों में की गई कटौती का लाभ आम उपभोक्ताओं को नहीं मिला है तथा इसका लाभ सिर्फ और सिर्फ बैंकों को मिला है। रेटिंग एएैंसी इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च ने आज जारी रिपोर्ट में कहा कि आर.बी.आई. ने इस वर्ष नीतिगत दरों में अब तक 1.25 प्रतिशत की कटौती की है जबकि बैंकों ने ब्याज दरों में औसतन 0.50 फीसदी की कटौती की है और जमा ब्याज दरों में 1.30 फीसदी तक की कमी की गई है। 

एजैंसी ने कहा, "आर.बी.आई. गवर्नर रघुराम राजन ने भी पिछले सप्ताह ऋण एवं मौद्रिक नीति की चौथी द्विमासिक समीक्षा में कहा था कि बाजार ने कॉमर्शियल पेपर एवं कॉर्पोरेट बांड केे माध्यम से ब्याज दरों में कटौती का लाभ निवेशकों तक पहुंचाया है लेकिन बैंकों ने ब्याज दरों में सीमित दायरे में कटौती की है।"

एजैंसी ने कहा कि पिछले 10 साल के अध्ययन के अनुसार जब भी नीतिगत दरों में कटौती की गई है, बैंकों ने जमा राशि पर ब्याज में तुरंत कटौती की लेकिन ऋण ब्याज दर को कम करने में हमेशा देरी की गई है। ठीक इसी तरह जब नीतिगत दरों में बढ़ौतरी हुई है, बैंकों ने ऋण ब्याज दरों में तुरंत बढ़ौतरी की है लेकिन जमा ब्याज दरों में देरी से बढौतरी की गई है।  

एजैंसी के अनुसार कई मामलों में यह भी देखा गया कि कुछ बैंकों ने नए उपभोक्ताओं के लिए ऋण ब्याज दरें घटाई है जबकि पुराने उपभोक्ताओं को इसका फायदा नहीं दिया गया। उसने कहा कि पिछले दशक में लघु बचत योजनाओं पर 8 से 9.3 प्रतिशत की दर से ब्याज दिया गया और यह रिजर्व बैंक के ब्याज दरों में कटौती से अप्रभावित रहा। 

वर्ष 2009 में जब रेपो रेट 4.75 प्रतिशत के निचले स्तर पर था, जन भविष्य निधि (पीपीएफ) एवं राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (एनएससी) पर 8 प्रतिशत ब्याज दिया गया वहीं, 2012 में जब रेपो रेट 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गया तब पीपीएफ पर 8.8 प्रतिशत एवं एनएससी पर 8.6 प्रतिशत ब्याज दिया गया था। एजैंसी ने कहा कि रिजर्व बैंक का रूख लचीला है लेकिन ब्याज दरों में कटौती का लाभ तब तक उपभोक्ताओं को नहीं मिल सकता जब तक बैंक इसका ब्याज दरों में कमी नहीं करते हैं। उसने कहा कि आने वाले महीनो में ब्याज दरों में कटौती करने में तेजी आ सकती है।  

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