92 साल पुरानी परंपरा खत्म, अब अलग से पेश नहीं होगा रेल बजट

Wednesday, Sep 21, 2016 - 02:26 PM (IST)

नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आज रेल बजट को आम बजट में मिलाने के प्रस्ताव पर सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के साथ ही अब 92 साल से चली आ रही रेल बजट की परंपरा खत्म हो गई। 1924 से अब तक आम बजट से अलग पेश हो रहे रेल बजट को आम बजट में ही मिला दिया गया है। सुरेश प्रभु आखिरी ऐसे रेलमंत्री के तौर पर दर्ज हो जाएंगे, जिन्होंने रेल बजट को संसद में पेश किया। इसी के साथ अब रेल बजट पेश करने की दशकों पुरानी परंपरा समाप्त हो गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में यहां हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार का जैसा राजकोषीय अनुशासन और दिशा है, रेल बजट भी उसी का अंग होना चाहिए। आने वाले वर्ष से रेल बजट आम बजट में समाहित हो जाएगा। जेटली ने कहा कि आम बजट का अंग होने के बावजूद रेलवे से जुड़े प्रस्तावों को एक अलग विनियोग विधेयक में पेश किया जाएगा। इससे रेलवे की एक अलग पहचान बनी है, उसे पूरी तरह से बरकरार रखा जाएगा। सरकार सुनिश्चित करेगी कि रेलवे के व्यय की स्वायत्तता बनी रहे। संसद में रेलवे के प्रस्तावों पर अलग से चर्चा हो और संसदीय जवाबदेही बनी रहे, यह भी सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा कि रेलवे को पूंजीगत व्यय 2.27 लाख करोड़ रुपए पर जो लाभांश देना होता था, वह अब नहीं देना होगा।

1924 में शुरू हुई थी पंरपरा

वित्त मंत्री ने कहा कि 1924 में जब यह परंपरा शुरू हुई थी तब रेलवे का खर्च सरकार के बाकी सकल व्यय से बहुत अधिक होता था। बाद में आम बजट का आकार बढ़ता गया और आज कई मंत्रालयों जैसे रक्षा, राजमार्ग, ग्रामीण विकास आदि का बजट रेलवे से कहीं अधिक हो गया और वे आम बजट का हिस्सा बने रहे। उन्होंने कहा कि नीति आयोग के सदस्य डॉ. बिबेक देबराय की कमेटी ने सिफारिश की कि अब वक्त आ गया है कि रेल बजट का आम बजट में विलय किया जाये। सिर्फ परंपरा के आधार पर ही रेल बजट को अलग से पेश किये जाने का कोई औचित्य नहीं है।

31 मार्च से पहले पूरी हो जाएगी सारी प्रक्रिया

सरकार अगले वित्त वर्ष के लिए बजट की समूची प्रक्रिया 31 मार्च से पहले पूरी कर लेगी। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया कि सरकार सैद्धांतिक रूप से इस बात के पक्ष में है कि अगले वित्त वर्ष से बजट की पूरी प्रक्रिया मई के बजाय 31 मार्च से पहले पूरी कर ली जाए ताकि बजट प्रावधानों को एक अप्रैल से लागू किया जा सके। मौजूदा प्रक्रिया में बजट मई में पारित हो पाता है और इसके प्रावधान प्रभावी रूप से सितंबर के महीने से ही लागू हो पाते हैं। उन्होंने कहा कि बजट प्रक्रिया को 31 मार्च से पहले पूरा करने के लिए सरकार संसद का बजट सत्र पहले बुलाना चाहती है लेकिन अगले वर्ष की शुरुआत में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए इसकी तिथि का निर्णय चुनाव कार्यक्रम के आधार पर लिया जाएगा।

रेलवे की नीति पहले जैसी रहेगी

रेलवे की नीतियों एवं योजनाओं पर मंत्रालय का नियंत्रण यथावत रहेगा। अलबत्ता उसके सिर से कई बोझ कम हो जाएंगे। कर्मचारियों के वेतन/पेंशन भत्ते आदि के लिए केंद्रीय कर्मियों के लिए एकीकृत व्यवस्था होगी और रेलवे की आय पर इसका बोझ नहीं होगा। सकल बजटीय सहायता और लाभांश के भुगतान का मुद्दा समाप्त हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि रेल मंत्री ने संसद के मानसून सत्र में बताया था कि उन्होंने वित्त मंत्री को पत्र लिख कर रेल बजट को आम बजट में समाहित करने का अनुरोध किया है। रेल मंत्रालय गाड़यिों के यात्री किरायों एवं मालभाड़ों के निर्धारण के लिये एक स्वायत्त प्राधिकरण की स्थापना की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर चुका है। जानकारों का कहना है कि इस फैसले के बाद आने वाले समय में मोदी सरकार के लिए रेलवे को एकीकृत परिवहन मंत्रालय में विलय करना आसान हो जाएगा।


रेलवे का बजट प्लान
रेलवे के बजट प्लान की बात करें तो 2016-17 के दौरान रेलवे को कर्मचारियों की सैलरी के लिए तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपए चाहिए। रेलवे को गाड़ियों के ईंधन बिजली के लिए तकरीबन 23 हजार करोड़ रुपए चाहिए। रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन की मद में तकरीबन 45 हजार करोड़ रुपए की जरूरत है। इसी के साथ भारत सरकार को डिवीडेंड के तौर पर देने के लिए रेलवे को तकरीबन 5500 करोड़ रुपए की धनराशि चाहिए।

बनेगी रेल टैरिफ अथॉरिटी
रेलवे के जानकारों के मुताबिक आम बजट में रेल बजट के विलय के साथ भारतीय रेलवे को वित्तीय तौर पर आजादी मिल सकेगी। इसी के साथ ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय रेलवे को डिवीडेंड देने से मुक्ति मिल जाएगी। इसके अलावा रेल मंत्रालय को अब वित्त मंत्रालय के सामने ग्रॉस बजटरी सपोर्ट के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा। इसी के साथ ऐसा माना जा रहा है कि वित्त मंत्रालय सातवें वेतन आयोग की वजह से रेल मंत्रालय पर पड़ रहे भारी भरकम बोझ को साझा करने में भी सहयोग करेगा।

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