अब गाय सिर्फ बछियों को ही देंगी जन्म, खोजी गई स्वदेशी तकनीक
Sunday, Nov 08, 2020 - 06:14 PM (IST)
नई दिल्ली: नेशनल डेयरी डेवलपमेन्ट बोर्ड (एनडीडीबी) की सहायक इकाई एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़ ने आज स्वदेश में विकसित आधुनिक तकनीक की घोषणा की है जिसके द्वारा मवेशियों के सेक्स- सोटिर्ंग (शुक्राणुओं की छंटाई) प्रणाली से सिर्फ मादा बछड़े के जन्म को सुनिश्चित किया जा सकता है। एनडीडीबी के अध्यक्ष दिलीप रथ ने यहां जारी बयान में कहा कि यह तकनीक भारत को ‘आत्मनिर्भर' बनाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़ द्वारा किए गए परीक्षण के परिणाम वास्तविक परिस्थितियों में उत्पाद के प्रदर्शन को सुनिश्चित करते हैं। अक्टूबर 2020 में चेन्नई के नज़दीक एक फार्म मे इसी तकनीक के द्वारा मादा बछड़े का जन्म हुआ, जिसके लिए शुक्राणुओं की छंटाई अलमाधी सीमेन स्टेशन में की गई थी।
उन्होंने कहा कि मवेशियों के शुक्राणुओं की छंटाई के लिए मौजूद तकनीक कुछ बहु राष्ट्रीय कंपनियों के स्वामित्व में है, जिसके चलते डेयरी किसान इसका लाभ नहीं उठा सकते, क्योंकि लागत की द्दष्टि से यह उनके अनुकूल नहीं रहती। सिर्फ मादा बछड़े के जन्म को सुनिश्चित करने से डेयरी किसान को बहुत अधिक आर्थिक फायदा होता है, क्योंकि नर बछडे की आर्थिक उपयोगिता न के बराबर होती है। श्री रथ ने कहा कि एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़ ने शुक्राणुओं की छंटनी कर बनाई गई खुराक की लागत को कम करने के लिए कुछ साल पहले स्वदेशी तकनीक का विकास किया, ताकि इसे देश के डेयरी किसानों के लिए किफ़ायती बनाया जा सके।
उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया जाएगा। स्वदेशी तकनीक से छंटनी कर बनाई गई शुक्राणुओं की खुराक उद्योग जगत में गुणवत्ता तथा उत्पादन के मानकों के समकक्ष पाई गई है। एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़, उत्पादक कंपनियों एवं उत्पादकता संवर्धन सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए फील्ड संचालन हेतु एनडीडीबी की डिलीवरी शाखा के रूप में काम करती है। इस प्रकार, अब तक 15 दूध उत्पाक कंपनियों की स्थापना की जा चुकी है। एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़ देश में चार बड़े सीमेन स्टेशनों का प्रबंधन भी करती है।
एनडीडीबी डेयरी सर्विसेज़ ने स्वदेशी सेक्स- सोटिर्ंग (शुक्राणुओं की छंटाई) तकनीक के विकास के लिए बैंगलोर आधारित आर एंड डी संस्थान जीवा साइन्सेज़ के साथ साझेदारी की है। कंपनी के प्रबंध निदेशक सौगत मित्रा ने कहा कि इस तकनीक उपयोग के द्वारा कृत्रिम प्रजनन की मौजूदा लागत ( 1000रुपये) को कम करेगी। यह देश में बेकार मवेशियों की समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगी। श्री मित्रा ने कहा कि छंटाई कर बनाई गई शुक्राणुओं की खुराक जनवरी 2021 से देश में व्यावसायिक रूप से उपलब्ध होगी और किसानों की आय दोगुना करने में उल्लेखनीय योगदान देगी।