35 करोड़ अनपढ़ों की कैशलैस इंडिया!

Friday, Dec 23, 2016 - 11:26 AM (IST)

नई दिल्लीः नोटबंदी के बाद केन्द्र सरकार कैशलैस इंडिया को लेकर बेहद गंभीर है। प्रधानमंत्री से लेकर सत्ताधारी दल के सभी नेता इसे लेकर बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि जहां 35 करोड़ की आबादी अनपढ़ है, वहीं शिक्षा व्यवस्था भी चौपट है, ऐसे में ये लोग मोदी के इंडिया को हाईटैक होने के सपने को कैसे साकार करेंगे? विकास की गति को तकनीक के सहारे आगे बढ़ाना अच्छा कदम हो सकता है लेकिन सरकार पेड़ की जड़ों में पानी देने की जगह पत्तियों पर छींटेमार रही है। वहीं सवाल यह भी उठ रहा है कि इन्हें प्रशिक्षित करने के लिए केन्द्र सरकार क्या कदम उठा रही है?

वास्तव में सरकार देश की 35 करोड़ निरक्षर जनता को पढ़ाने-लिखाने की जगह समूचे भारत को पहले हाईटैक बनाने की जिद पर अड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैशलैस सोसायटी को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं। उन्होंने छात्रों को भी डिजीटल इकोनॉमी और कैशलैस लेन-देन में शामिल होने और दूसरे लोगों को इस बारे में बताने की अपील की है। केन्द्रीय मंत्री की ताजा घोषणा इससे आगे का कदम है कि सरकार डिजीटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 100 डिजीटल गांवों को विकसित करेगी जहां विश्व स्तरीय डिजीटल संरचना का निर्माण किया जाएगा।

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि डिजीटल इकोनॉमी, कैशलैस अर्थव्यवस्था या ई-गवर्नेंस बेहतर व्यवस्थाएं मानी जा रही हैं लेकिन विकास की निर्धारित प्रक्रियाएं हैं, अगर ऐसा नहीं होता तो लोग अपनेबच्चों को तमाम निचली कक्षाओं में पढ़ाने की बजाय सीधे रिसर्च कराते। 

विश्व के सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में
संयुक्त राष्ट्र की एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग रिपोर्ट (2014) में कहा गया कि विश्व में सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में 28.7 करोड़ वयस्क पढऩा-लिखना नहीं जानते हैं। यह संख्या दुनिया भर की निरक्षर आबादी का 37 प्रतिशत है। इस निरक्षरता के कारण भारतीयों को न सिर्फ  गरिमापूर्ण जीवन से वंचित रहना पड़ता है बल्कि इसके कारण ही भारत को हर साल 53 अरब डॉलर यानी करीब 27 खरब रुपए का नुक्सान सहना पड़ता है।

भारत में साक्षरता 2011 में 74.4 प्रतिशत तक दर्ज की गई। इसके मुताबिक भारत में 82.16 प्रतिशत पुरुष और 65.46 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं लेकिन यह अब भी विश्व की औसत साक्षरता दर 84 प्रतिशत से काफी कम है। भारत में फिलहाल स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति दर 70 प्रतिशत है, लेकिन स्कूल छोडऩे की दर भी 40 प्रतिशत है, इसलिए यह आंकड़ा बहुत उत्साहजनक नहीं है। 

नोटबंदी की ‘गलती’ दोहरा रही सरकार 
ऑनलाइन लेन-देन या कार्ड पेमैंट को प्रोत्साहित किया जा सकता था, लेकिन सरकार अचानक नोटों की कमी को पूरा करने के लिए कैशलैस की तरफ  जाने को कह रही है। यह नोटबंदी वाली गलती दोहराने जैसा है, अभी उच्च व मध्यम वर्ग का भी बहुत छोटा तबका कैशलैस लेन-देन के साथ सहज है। कैशलैस इकोनॉमी को अगर सरकार तेजी से आगे बढ़ाती है तो भी लोगों को नोटों की ही जरूरत है।

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