टैलीकॉम कंपनियों पर करीब 4 लाख करोड़ रुपए का ऋण

Wednesday, Sep 28, 2016 - 06:13 PM (IST)

नई दिल्लीः उद्योगपति मुकेश अंबानी की दूरसंचार कंपनी रिलायंस जियो के बाजार में आने केे बाद भारतीय टैलीकॉम बाजार में भले ही टैरिफ युद्ध छिड़ गया हो लेकिन इस क्षेत्र की कंपनियों पर ऋण का बोझ बढ़कर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए हो गया है।   औद्योगिक संगठन एसोचैम ने आज जारी अध्ययन में इस ऋण बोझ के लिए टैलीकॉम पर लगने वाले विभिन्न करों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि टैरिफ को लेकर जारी युद्ध के बीच कंपनियों को अब 10 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क का भुगतान करना पड़ रहा है। सीमा शुल्क के कारण कंपनियों पर लगने वाला कुल शुल्क बढ़कर 29.44 प्रतिशत हो जाएगा। 

एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा, "भले ही उपभोक्ताओं के सामने टैलीकॉम कंपनियों की होड़ के कारण कई आकर्षक ऑफर हैं लेकिन कंपनियों को इससे लाभ कमाने के लिए तेजी से बढ़ते डाटा मार्कीट में अपनी पहुंच बढ़ानी होगी।" संगठन का कहना है कि करों के सरलीकरण से भारतीय टैलीकॉम उद्योग में आर्थिक रूप से स्थिरता आएगी। मौजूदा दौर में टैलीकॉम क्षेत्र को अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कहीं अधिक चार्ज और करों का भुगतान करना पड़ता है। अन्य देशों की तुलना में भारत में स्पैक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी) भी काफी अधिक है।

अध्ययन के अनुसार, 2020 तक सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में टैलीकॉम क्षेत्र के योगदान का प्रतिशत बढ़कर 8.2 या 14 लाख करोड़ रुपए का हो सकता है। टैलीकॉम कंपनियों के शीर्ष संगठन सीओएआई के एक अध्ययन का हवाला देते हुए एसोचैम ने कहा कि अगर एसयूसी को घटाकर एक प्रतिशत कर दिया जाए तो इससे जी.डी.पी. में टैलीकॉम क्षेत्र के योगदान में एक लाख 76 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त बढ़त होगी। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने भी लाइसेंस फीस 8 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत और यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन 5 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत करने की सिफारश की थी। टैलीकॉम कंपनियों को नैटवर्क स्थापित करने के लिए बड़ा निवेश करना होता है और साथ ही उन्हें स्पैक्ट्रम हासिल करने के लिए भी काफी बड़ी रकम चुकानी होती है। इन सबके बाद इलैक्ट्रोमैग्नेटिक बाधाओं के कारण सर्विस पर बुरा असर पड़ता है, जिससे उपभोक्ताओं की संख्या में गिरावट आती है।  

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