बजट 2020: किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है मोदी सरकार!

punjabkesari.in Thursday, Jan 30, 2020 - 05:53 PM (IST)

बिजनेस डेसक: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का दूसरा बजट 1 फरवरी 2020 को पेश होने जा रहा है। देश के सर्विस सेक्टर, युवा, बेरोजगार, किसानों ने बजट से कई उम्मीदें पाल रखी हैं। जहां एक ओर खेती संकट से जूझ रहा किसान सरकार से कोई बड़े ऐलान की उम्मीद लगाए बैठा है तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का बजट 20 पर्सेंट कम करने पर विचार कर रही है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कृषि मंत्रालय अगले वित्त वर्ष के लिए पीएम किसान सम्मान निधि योजना में 60 हजार करोड़ रुपए के आवंटन पर विचार कर रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने इस योजना के लिए 75 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि संभावित लाभार्थियों की संख्या को ध्यान में रखकर अगले वित्त वर्ष के लिए बजट आवंटित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि सरकार इस योजना के तहत मात्र 44 हजार करोड़ रुपये ही बांट पाई है।

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पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले छोटे एवं सीमांत किसानों की सहायता के लिये लायी गयी 'प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना' के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इस योजना के अंतर्गत छोटे किसानों को तीन समान किस्तों में 6,000 रुपये सालाना देने की व्यवस्था की गयी है। कृषि मंत्रालय की 'पीएम किसान' वेबसाइट के अनुसार, योजना के तहत कुल चिन्हित 8.80 करोड़ लाभार्थियों में से 8.35 करोड़ छोटे किसानों को पहली किस्त के रूप में दो-दो हजार रुपये की राशि दी गयी। वहीं दूसरी किस्त में लाभार्थियों की संख्या घटकर 7.51 करोड़, तीसरी में 6.12 करोड़ और चौथी किस्त में केवल 3.01 करोड़ (29 जनवरी तक) रह गयी है। इस बारे में बेंगलुरू स्थित इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज के प्रोफेसर और अर्थशास्त्री डा. प्रमोद कुमार ने कहा कि ‘छोटे किसानों की आय बढ़ाने के इरादे से यह योजना लायी गयी लेकिन आंकड़ों से स्पष्ट है कि लाभार्थियों की सूची लगातार घट रही है। यह बताता है बड़ी संख्या में किसान इस योजना से बाहर हो रहे हैं।

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लाभार्थियों की संख्या में कमी के कारणों पर प्रमोद कुमार ने कहा कि पोर्टल पर डाले गये आंकड़ों में विसंगतियां पायी गयी हैं। इसके अलावा योजना के लाभ के लिये आधार को बैंक खाते से जुड़ा होना अनिवार्य किया गया है। संभवत: इसके कारण कई छोटे एवं सीमांत किसान योजना से बाहर हुए हैं।'' उन्होंने कहा कि इसके कारण उत्तर प्रदेश में 1.4 करोड़ तथा पूरे देश में 5.8 करोड़ किसानों को चौथी किस्त नहीं मिलने की आशंका है। पीएम किसान वेबसाइट के अनुसार पश्चिम बंगाल इस योजना में शामिल नहीं है और वहां के एक भी किसान को इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा। वहीं, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह संख्या लगातार कम हो रही है। बिहार में चिन्हित 54.58 लाख किसानों में से जहां पहली किस्त 52.19 लाख किसानों को मिली थी, वह तीसरी किस्त में कम होकर 31.41 लाख रह गयी। इसी प्रकार, उत्तर प्रदेश में 2.01 करोड़ लाभार्थियों को चिन्हित किया गया था। वहां पहली किस्त 1.85 करोड़ किसानों को दी गयी जबकि तीसरी किस्त में यह संख्या कम होकर 1.49 करोड़ पर आ गयी। 

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कुमार ने कहा कि इस प्रकार की योजना के तहत अगर छोटे एवं सीमांत किसानों को समय पर किस्त जारी कर दी जाती है तो उन्हें बीज, खाद जैसा कच्चा माल खरीदने में सुविधा होती है। इससे न केवल खेती को गति मिलती है बल्कि उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ती है जिससे अर्थव्यवस्था को लाभ होता है और आर्थिक वृद्धि तेज होती है। सरकार ने 2019-20 के अंतरिम बजट में पीएम किसान सम्मान निधि योजना की शुरूआत की थी। एक दिसंबर 2018 से लागू इस योजना के तहत छोटे एवं सीमांत किसानों की सहायता के लिये 6,000 रुपये सालाना उनके खाते में डाले जाते हैं। यह राशि 2,000-2,000 रुपये के रूप में तीन किस्तों में दी जाती है। जहां 2018-19 के चार महीनों के लिये इस योजना तहत 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया। वहीं 2019-20 के बजट में इसके लिये 75,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गयी। हालांकि आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मंत्रालय अबतक करीब 44,000 करोड़ रुपये ही वितरित कर पाया है जो आवंटित राशि का करीब 58.6 प्रतिशत है।

 

कुमार ने कहा कि पीएम किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं को समावेशी बनाने की जरूरत है। ताकि सभी जरूरतमंदों को इसके दायरे में लाया जा सके और इसका लाभ वास्तविक रूप से गरीब और पिछड़े तबके के लोगों को मिले। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उपभोक्ता मांग सृजित करने के लिये गांवों में सरकारी खर्च बढ़ाने को लेकर बजट में कदम उठाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में पीएम किसान योजना के तहत सालाना किस्त एक बार जारी की जा सकती है। इससे किसानों के हाथ में पैसा आएगा और उनकी खरीद क्षमता बढ़ेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। इस कदम से न सिर्फ कृषि क्षेत्र को गति मिलेगी बल्कि घरेलू उपयोग के सामान की मांग भी बढ़ेगी। फलत: अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।'


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vasudha

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