नोटबंदी और GST के कारण ठंडी हुई जयपुरी रजाई

Thursday, Dec 21, 2017 - 08:40 AM (IST)

नई दिल्लीः अपने लाइटवेट और गर्माहट के लिए जानी जाने वाली जयपुरी रजाई का बिजनैस इस साल ठंडा चल रहा है। कारोबारियों का कहना है कि बिजनैस पर पिछले साल नवम्बर में हुई नोटबंदी का असर अभी भी है। ऊपर से इस साल जुलाई में लागू हुए जी.एस.टी. के चलते डिमांड कम होने से जयपुरी रजाई के बिजनैस को 50 प्रतिशत का झटका लगा है।

पुराने नोट चलाने के लिए खरीदा एक्स्ट्रा माल
जयपुर रजाई व्यापार संघ के प्रैजीडैंट हरिओम लश्करी ने बताया कि पिछले साल हुई नोटबंदी में पुराने नोट चलाने के लिए लोगों ने एक्स्ट्रा माल खरीद लिया। ऊपर से इस साल जी.एस.टी. लागू हो गया। जी.एस.टी. की वजह से रजाइयां महंगी हो गईं और डिमांड गिर गई। जयपुरी रजाई पर शुरूआत में 18 और 28 प्रतिशत टैक्स लगाया गया था। 1000 रुपए तक की रजाई पर 18 प्रतिशत और इससे ज्यादा की रजाई पर 28 प्रतिशत टैक्स तय किया गया था लेकिन व्यापारियों ने सरकार से अपील की कि इसे घटाया जाए। उसके बाद जयपुरी रजाई पर टैक्स घटकर क्रमश: 5 और 12 प्रतिशत हो गया लेकिन चूंकि अब भी टैक्स का रेट ज्यादा है और डिमांड लगातार कम हो रही है इसलिए व्यापारी टैक्स रेट को घटाकर हर रेट वाली रजाई के लिए 5 प्रतिशत करने की मांग कर रहे हैं ताकि ग्राहक इसे खरीद सकें।

एक्सपोर्ट में भी गिरावट
जयपुर से जापान, लंदन आदि स्थानों पर जयपुरी रजाई का एक्सपोर्ट किया जाता है लेकिन इस साल एक्सपोर्ट में भी गिरावट आई है। कारोबार ठंडा होने की वजह से व्यापारियों को पैसों की किल्लत हो रही है और वे माल तैयार नहीं कर पा रहे हैं। लश्करी ने बताया कि जयपुरी रजाई का 90 प्रतिशत बिजनैस अन्य राज्यों से है, केवल 10 प्रतिशत बिक्री राजस्थान में होती है। जयपुर से इस रजाई की सप्लाई यू.पी., बिहार, असम, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों में होती है।

कितने लोग जुड़े हैं इस बिजनैस से
जयपुर में जयपुरी रजाई के कारोबार से डेढ़ से 2 लाख लोग जुड़े हुए हैं। इनमें मजदूर, बुनाई, सिलाई वाले आदि सभी शामिल हैं। एक दिन में 100 से लेकर 150 जयपुरी रजाइयां बन जाती हैं। अगर बहुत ज्यादा डिमांड हो तो 250 रजाइयां भी एक दिन में बनाई जाती हैं। जयपुरी रजाई का सारा काम हाथ से ही किया जाता है। इनमें रूई भरना, डोरेंडालना आदि काम शामिल है। केवल रजाई की सिलाई मशीन से की जाती है।

Advertising