SC में पूरे साल छाए रहे राजनेताओं-कारोबारियों से जुड़े मामले

Tuesday, Jan 02, 2018 - 04:50 PM (IST)

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय में पिछले साल राजनेता और कारोबारियों से जुड़े कारपोरेट मामले पूरे साल छाए रहे। बिड़ला-सहारा की डायरी का मामला हो या शराब कारोबारी विजय माल्या के देश छोड़ कर चले जाने का या नेताओं को कथित रिश्वत देने से जुड़े मामले हों, इन सभी की सुनवाई इस साल जहां न्यायालय के गलियारों में छाई रही, वहीं इन मामलों ने सुर्खियां भी बहुत बटोरीं। बिड़ला-सहारा डायरी मामले में एक जनहित याचिका छिटपुट कागज के टुकड़ो, ईमेल प्रिंट-आउट इत्यादि के आधार पर दायर की गई लेकिन इससे जुड़ी हाई-वोल्टेज सुनवाई के दौरान यह मामला ‘सुनवाई योग्य’ ही नहीं समझा गया।

कारोबारियों पर शिकंजा
विभिन्न बैंकों का 9,000 करोड़ रुपए का कर्ज नहीं चुकाने वाले विजय माल्या को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने उन्हें अवमानना का दोषी पाया। वह अदालत के समक्ष अपनी संपत्तियों की जानकारी देने में विफल रहे। इस मामले ने ऐसे अन्य कारोबारियों को भी अपनी जद में ले लिया जो देश छोड़ने के बाद कभी भारत वापस नहीं लौटे। ऐसे मामलों में घिरे अन्य कारोबारियों को अब विदेश यात्रा के लिए अनुमति लेनी होगी। न्यायालय में मुश्किल हालातों का सामना करने वालों में सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय सहारा भी शामिल रहे। वह पूरे साल निवेशकों को 40,000 करोड़ रुपए की राशि वापस करने के मामले में न्यायालय के दिशानिर्देशों से जूझते रहे।

राजनीति से जुड़ा मामला
राजनेताओं के मामले में देश के पूर्व वित्त एवं गृह मंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम का मामला सबसे प्रमुख रहा। अपनी बेटी के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए ब्रिटेन जाने की शीर्ष अदालत से अनुमति लेने में उन्हें एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। कार्ति, आईएनएक्स मीडिया के लिए 2007 में 305 करोड़ रुपए का विदेशी कोष स्वीकार करने की अनुमति के लिए विदेशी निवेश संवद्र्धन बोर्ड (एफ.आई.पी.बी.) में कथित अनियमितताओं से जुड़े मामले सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं।

रियल एस्टेट भी नहीं रहा पीछे
इसके अलावा रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों से ना केवल आम आदमी परेशान रहा, बल्कि केंद्रीय मंत्री राज्यवद्र्धन सिंह राठौड़ को भी अपने बुक किए गए फ्लैट का कब्जा पाने के लिए पाश्र्वनाथ डेवलपर्स के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इसके अलावा यूनिटेक और इसके प्रबंध निदेशक संजय चंद्रा, जेपी, सुपरटेक और आम्रपाली भी शीर्ष अदालत के चाबुक का शिकार हुए। न्यायालय ने इनके खिलाफ कई कड़े फैसले सुनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी हालत में घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा करेगी।    

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