पॉलिसी कवर करने से किया इंकार, बीमा कंपनी देगी हर्जाना

Sunday, Aug 13, 2017 - 11:22 AM (IST)

नई दिल्ली: एक बीमा कंपनी को पॉलिसी कवर करने से इंकार करना महंगा पड़ गया। जिला कंज्यूमर निपटारा फोरम ने बीमा कंपनी को 4 लाख रुपए बीमा राशि और 10,000 रुपए हर्जाने के तौर पर भुगतान करने का आदेश दिया है।

क्या है मामला
दम्पति सागर अरोड़ा और सुमन अरोड़ा ने जिला कं४यूमर निपटारा फोरम में दर्ज करवाई अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि बीमा कंपनी रॉयल सुन्दरम अलायंस इंश्योरैंस कंपनी से बीमा करवाया था जिसमें लाइफ रिस्क कवर के अलावा इलाज के लिए कवर देने की व्यवस्था भी थी। घुटनों में तकलीफ होने पर सुमन अरोड़ा को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा और इलाज के लिए कुल 5 लाख रुपए खर्चा आया। उन्होंने कहा कि बीमा कंपनी ने यह वायदा किया था कि अस्पताल का सारा खर्चा वह अदा करेगी।
शिकायतकर्त्ता  ने जब बीमा कवर के लिए दावा किया तो बीमा कंपनी ने यह कहकर उसका दावा रद्द कर दिया कि शिकायतकत्र्ता ब्लड प्रैशर और शूगर की बीमारी को प्रकट करने में नाकाम रहा है। इसके बाद सागर अरोड़ा और सुमन अरोड़ा ने फोरम का रुख किया।

यह कहा फोरम ने
पॉलिसी का हवाला देते हुए उपरोक्त बीमा कंपनी ने कहा कि वह इस पॉलिसी अधीन किसी भी दावे के लिए जिम्मेदार नहीं है। पॉलिसी के मुताबिक बीमारी की पूर्व सूचना नहीं दी गई है। कंपनी ने कहा है कि तथ्यों को छिपाने से पॉलिसी अवैध हो जाती है और प्रीमियम जब्त हो जाता है। जिला कंज्यूमर निपटारा फोरम ने कंपनी के इरादे को खारिज कर दिया। फोरम ने रॉयल सुन्दरम अलायंस इंश्योरैंस कंपनी को निर्देश दिया है कि वह उक्त दम्पति को मुआवजे की रकम अदा करे जिसमें आरोप लगाया गया था कि दम्पति के पास 4 लाख रुपए की एक पॉलिसी होने के बावजूद कंपनी ने उसे कवर करने से इंकार कर दिया। 

कंपनी ने शिकायतकर्त्ता के दावे के विरुद्ध यह बताया कि शिकायतकर्त्ता ने बीमारी बारे पहले नहीं बताया था जबकि फोरम ने कहा कि इन बीमारियां को तथ्य छिपाने की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। फोरम ने अपने आदेश में कहा कि ब्लड प्रैशर और शूगर की बीमारी को पूर्व मौजूद बीमारियां नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह एक व्यक्ति की आम जीवनशैली है। सेवाओं में कमी बारे बताते हुए यह पाया गया है, बीमारी में शिकायतकर्त्ता  के दावे को इंकार करना बेबुनियाद है इसलिए यह विरोधी पक्ष की तरफ से सेवाओं में सुयोग्यता की कमी कहा जा सकता है। बीमा कंपनी को कहा गया है कि वह पॉलिसीधारक को 4 लाख रुपए की अदायगी करे जो कि बीमा की रकम है। इसके अलावा और 10,000 रुपए शिकायतकर्त्ता को उसे दिमागी परेशानी, समय की बर्बादी और मुकद्दमों की लागत के तौर पर अदा किए जाएं। 

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