रियल एस्टेट कारोबार पर बदलावों का असर

punjabkesari.in Saturday, Oct 21, 2017 - 10:08 AM (IST)

जालंधरः जी.एस.टी. को लागू हुए कुछ महीने गुजर चुके हैं और विभिन्न सैक्टरों में इसका असर दिखाई भी देने लगा है। अधिकतर सैक्टरों में फिलहाल जी.एस.टी. को लेकर खुशी जाहिर करता शायद ही कोई दिखाई दे रहा हो। हालांकि, अधिकतर लोगों को दिक्कत जी.एस.टी. से नहीं, इसे लागू करने के अव्यवस्थित ढंग और जटिलताओं को दूर करने में सरकार की नाकामी से है। इस बीच रियल एस्टेट पर रेरा कानून का भी व्यापक असर हुआ है। इसमें भी कुछ जटिलताओं की शिकायत होती रही है।

नोटबंदी और GST से कारोबार ठप्प
हालिया खबरों के अनुसार रियल एस्टेट सैक्टर में जी.एस.टी. को शामिल करने को लेकर सरकार विचार कर रही है। दूसरी ओर अधिकतर रियल एस्टेट बाजारों की हालत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार इंडस्ट्री में छोटे बिल्डरों का धंधा लगभग चौपट हो चुका है। यहां तक कि कुछ लोगों ने प्रॉपर्टी के कारोबार से खुद को अलग तक कर लिया है और कुछ इस कारोबार से किनारा करने का मन बना रहे हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में प्रॉपर्टी का धंधा करना बेहद कठिन हो गया है। पहले नोटबंदी ने कारोबार की हत्या की जिसके बाद जी.एस.टी. की जटिलताओं ने रियल एस्टेट कारोबार करने वालों की हालत बद से बदतर कर दी। देश की राजधानी दिल्ली में ही करीब 40 प्रतिशत जमीन पर अवैध कब्जे हैं। कालोनियां अनधिकृत रूप से बसी हैं। लिहाजा यहां ज्यादातर सम्पत्तियों की खरीद-बिक्री में रजिस्ट्री का मतलब नहीं। चूंकि ज्यादातर अवैध हैं, ऐसे में वैध रास्ते से जाने का कोई मतलब ही नहीं बनता। बाकी बची जमीन सरकार के हिस्से में आती है जिसमें भी करीब 16 से 17 प्रतिशत जगह ही पूरी दिल्ली में बची है। ऐसे में काम करना मुश्किल हो चुका है।

छोटे डिवैल्परों के लिए कुछ नहीं बचा
जी.एस.टी. लागू होने के बाद माना जा रहा था कि दिल्ली की 2 करोड़ रुपए तक की सम्पत्ति की कीमत 6 से 10 लाख रुपए तक कम हो जाएगी। 30 लाख रुपए तक के फ्लैट्स में भी 5 प्रतिशत तक की कमी आएगी। इसके लागू होने के बाद डिवैल्परों को आंशिक मगर खरीदारों को काफी फायदा होगा। उम्मीद थी कि इस दायरे में दिल्ली की अनधिकृत कालोनियों में मौजूद प्रॉपर्टी पर भी लाभ मिलेगा परंतु चीजें इतनी साफ हो गई हैं कि रियल एस्टेट में छोटे स्तर पर काम करने वाले अब कुछ बचा नहीं सकते। जानकारों के अनुसार दिल्ली में अब छोटे स्तर के डिवैल्परों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने बताया कि अब रजिस्ट्री अनिवार्य हो गई है और इसी के आधार पर जमीन की कीमत और लोन तय होता है। ऐसे में केवल बड़े बिल्डरों के लिए ही इस कारोबार में सम्भावनाएं हैं। 


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