7.6 फीसदी से अधिक रह सकती है भारत की विकास दर: IMF

Friday, Oct 14, 2016 - 06:25 PM (IST)

नई दिल्लीः अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) के मुख्य अर्थशास्त्री मॉरिश ऑब्सफेल्ड ने आज कहा कि यदि भारत आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया जारी रखता है तो उसकी विकास दर 7.6 प्रतिशत से भी ज्यादा रह सकती है। आई.एम.एफ. ने भारत की विकास दर चालू तथा अगले वित्त वर्षों में 7.6 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है। 

ऑब्सफेल्ड का मानना है कि अच्छे मानसून से कृषि क्षेत्र में संभावनाएं बेहतर हुई हैं और इसके साथ यदि भारत अपने आर्थिक सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ता रहा तो विकास दर उसके अनुमान को भी पार कर जाएगी। ऑब्सफेल्ड ने कहा, 'जब वैश्विक अर्थव्यवस्था 3.2 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है तथा दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमरीका तथा चीन की विकास दर क्रमश: 2.6 फीसदी तथा 6.9 फीसदी है, भारत का दुनिया की चमकदार अर्थव्यवस्था बन जाना अब कोई चौंकाने वाली बात नहीं है।' हालांकि, उन्होंने कहा कि इसके लिए आर्थिक सुधारों की गति और तेज करनी होगी तथा वृहद आर्थिक नीति को भी उसी दिशा में ले जाना होगा।  

संसद के वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) विधेयक पारित करने की प्रशंसा करते हुए ऑब्सफेल्ड ने कहा ढांचागत चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। उन्होंने कहा कि विकसित देशों में व्यापार को लेकर अस्थायी तौर पर अवरोध के कारण भारत तथा अन्य एशियाई देशों के लिए चुनौतियां बढ़ी है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय तथा अमेरिकी लोगों के मन में व्यापार को लेकर गलत अवधारणा थी। इसका कारण उन देशों में सुस्त पड़ते विकास तथा उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का बेहतर प्रदर्शन है। उन्हें डर है कि उनका व्यापार छिन रहा है। आई.एम.एफ. के मुख्य अर्थशास्त्री का मानना है कि यह डर बेवजह था। उन्होंने कहा, 'ब्रिटेन, अमरीका तथा फ्रांस के कुछ धड़े चाहते हैं कि उनका देश पीछे हट जाए। ब्रेग्जिट (ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने के फैसले) के पीछे भी यही भावना थी। अमरीका में (राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार) ट्रंप भी देश को पीछे हटाने की मांग कर रहे थे लेकिन सवाल यह है कि किससे पीछे हटने की बात है?'

ऑब्सफेल्ड ने कहा कि विकसित देशों की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को लेकर भारत तथा अन्य उभरते बाजार वाले देशों के लोगों की सोच ज्यादा सकारात्मक रही है। उन्होंने कहा कि उभरते बाजार वाले देशों को चरणबद्ध तरीके से ढांचागत सुधार अपनाने चाहिए तथा संसाधनों के बेतरीब वितरण से उत्पन्न अक्षमता से बचने और रोजगार सृजन के लिए वृहद आर्थिक नीति का सहारा लेने चाहिए। उन्होंने मानव संसाधन को ज्यादा दक्ष बनाने के लिए शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर पर्याप्त निवेश की भी अपील की।  

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