पैट्रोलियम पर जी.एस.टी. को लेकर राज्यों में डर

Saturday, Sep 23, 2017 - 11:17 AM (IST)

नई दिल्ली : राज्य सरकारें पैट्रोलियम पर वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू किए जाने की इच्छुक नहीं हैं। नए अप्रत्यक्ष कर से होने वाले राजस्व नुक्सान पर पहले 5 साल तक राज्यों को मुआवजे का प्रावधान किया गया है लेकिन उन्हें डर है कि पैट्रोलियम पर जी.एस.टी. लागू होने से वे लचीलापन गंवा देंगे जबकि पैट्रोलियम पर कर राज्यों की आमदनी का प्रमुख स्रोत है। 5 पैट्रोलियम उत्पाद कच्चा तेल, पैट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस और विमान ईंधन (ए.टी.एफ.) जी.एस.टी. के दायरे से अभी बाहर हैं। जी.एस.टी. परिषद ने इन्हें नए कर के दायरे में लाने पर चर्चा नहीं की है, हालांकि परिषद इस पर 2 साल में फैसला कर सकती है। 

पैट्रोलियम पर उत्पाद शुल्क मेंं कटौती न करने की वजह से केंद्र की आलोचना हो रही है, वहीं राज्यों को पैट्रोलियम के दाम में बढ़ौतरी से ज्यादा लाभ हो रहा है। राज्यों की ओर से लगाया जाने वाला मूल्यवॢधत कर या बिक्री कर पैट्रोलियम के दाम के मुताबिक लगता है जबकि केंद्र सरकार विशेष शुल्क लगाती है। कुछ राज्य जैसे महाराष्ट्र ने वैट और विशेष शुल्क दोनों लगाए हैं।केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सी.बी.ई.सी.) के चेयरमैन सुमित दत्त मजूमदार केंद्र व राज्यों को जी.एस.टी. के मसले पर मध्यस्थ रह चुके हैं, ने कहा कि राज्यों का तर्क था कि उन्हें भरोसा नहीं है कि पैट्रोलियम पर जी.एस.टी. का संग्रह किस तरह से व्यवहार करेगा इसलिए वे चाहते हैं कि नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से इसे बाहर रखा जाए।

मजूमदार ने कहा कि राज्य सरकारें वैट राजस्व का 50.55 प्रतिशत पैट्रोलियम से पाती हैं और ऐसे में वे इस पर संप्रभुता खोना नहीं चाहतीं। डेलॉयट के एम.एस. मणि ने कहा कि राज्यों के वैट में पैट्रोलियम की बड़ी हिस्सेदारी होती है इसलिए वे इसे जी.एस.टी. के तहत लाए जाने को लेकर अनिच्छुक हैं लेकिन अगर जी.एस.टी. के कारण राजस्व का नुक्सान होता है तो राज्यों को पूर्ण मुआवजा देने का प्रावधान रखा गया है, इसके बारे में मणि ने कहा कि राज्यों को अलग-अलग दरों को लेकर लचीलापन मिलता है और जी.एस.टी. से देश भर में एक दर हो जाएगी जिसका असर राज्यों के ऊपर पड़ेगा।
 

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