पक्की नौकरी दें निजी कंपनियां तो सरकार भरेगी कर्मचारियों का PF

Monday, Oct 02, 2017 - 09:34 AM (IST)

नई दिल्ली: हर साल 2 करोड़ नई नौकरियां देने के वादे के साथ केंद्र की भाजपा सरकार सत्ता में आई थी। फिलहाल इस मोर्चे पर सरकार को कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी है। अब नौकरियां बढ़ाने के लिए सरकार कई अहम फैसले लेने जा रही है। इनमें से पहला यह है कि अगर कोई कंपनी युवाओं को ज्यादा परमानैंट नौकरी देगी तो उनके पी.एफ . में कंपनी की तरफ से जो भी योगदान होगा, वह सरकार ही 2 साल तक देगी। यह प्रस्ताव श्रम मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को भेजा था। इस पर सैद्धांतिक तौर पर मुहर लग गई है। राहत पैकेज की घोषणा के साथ या बाद में इस योजना की घोषणा की जा सकती है। सुस्त इकॉनमी में गति लाने के लिए राहत पैकेज की घोषणा अक्तूबर के आरंभ में हो सकती है।

कंपनियों पर बढ़ रहा था वित्तीय बोझ
श्रम मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नौकरियां बढ़ाने को लेकर जब कंपनियों से बातचीत की गई तो अधिकांश कंपनियों का कहना था कि वे परमानैंट जॉब इसलिए नहीं दे रहीं क्योंकि उन पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है इसलिए वे अस्थायी तौर पर युवाओं को भर्ती कर रही हैं। यही बात सरकार को परेशान कर रही है। अस्थायी तौर पर भर्ती को मार्कीट और एक्सपर्ट नौकरी नहीं मानते। उनका कहना है कि कंपनियां ऐसी भर्तियां 3 महीने, 6 महीने या सालभर के लिए करती हैं और बाद में नए लोगों को नौकरी पर रख लेती हैं। इससे उन्हें सैलरी बढ़ाने की भी जरूरत नहीं पड़ती। यही कारण है कि श्रम मंत्रालय ने इस बाबत वित्त मंत्रालय को यह सिफारिश भेजी कि ज्यादा परमानैंट नौकरी देने वाली कंपनियों को टैक्स राहत के साथ पी.एफ. के योगदान में राहत दी जाए जिसे सैद्धांतिक तौर पर मंजूर कर लिया गया है। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार संगठित क्षेत्र में पिछले 3 साल में मात्र 6.70 लाख नई नौकरियां पैदा हो सकी हैं, जबकि हर साल करीब 1 करोड़ से ज्यादा युवाओं को नौकरी की दरकार होती है।

हर साल 1 करोड़ नौकरियों की जरूरत
इकॉनमी की धीमी होती रफ्तार और डिमांड कम होने से हर साल लाखों आई.टी. इंजीनियर रखने वाली कंपनियां अब कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं। एग्जीक्यूटिव सर्च फर्म हैड हंटर्स इंडिया के आंकड़े तो और भी डराने वाले हैं। फर्म का अनुमान है कि अगले 3 सालों में आई.टी. कंपनियों के 5.6 लाख कर्मचारी बेकार हो सकते हैं। हालांकि आई.टी. कंपनियों की बॉडी नैस्कॉम ने इस अनुमान को खारिज कर दिया है। दूसरे सैक्टरों में भी नई नौकरियों के अवसर पैदा होने की रफ्तार बेहद धीमी है। लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कारोबारी साल में मैन्यूफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्ट, हैल्थ और एजुकेशन समेत 8 सैक्टरों में सिर्फ  2.30 लाख नौकरियां ही क्रिएट हो सकीं जबकि देश में हर साल 1.80 करोड़ लोग वर्कफोर्स में जुड़ जाते हैं। पिछले साल बेरोजगारों की संख्या 1.77 करोड़ थी और वह इस साल 1.78 करोड़ तक जा सकती है।

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