गेहूं की मदद लेने वाले भारत से चावल आयात पर tariff की धमकी तक: कैसे अमेरिका पर उलट गई बाजी
punjabkesari.in Wednesday, Dec 10, 2025 - 12:59 PM (IST)
बिजनेस डेस्कः अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में संकेत दिया कि वे भारत से आने वाले कृषि उत्पादों—खासकर चावल—पर नए टैरिफ लगा सकते हैं। उनका आरोप है कि भारत, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है, अमेरिका में 'डंपिंग' कर रहा है। डंपिंग का मतलब है किसी देश द्वारा अपना अतिरिक्त उत्पादन बहुत कम कीमत पर दूसरे देश में बेचना, जिससे स्थानीय उद्योग को नुकसान हो सकता है।
दिलचस्प बात यह है कि 1960 के दशक में यही भारत अमेरिका से खाने के लिए गेहूं की मदद मांगता था। उस समय अमेरिका ने भारत को जो गेहूं भेजा, वह अक्सर पशु आहार जैसी निम्न गुणवत्ता का होता था। यह गेहूं अमेरिका के Public Law 480 “फूड फॉर पीस” कार्यक्रम के तहत भेजा जाता था। भारत को हर साल 1 करोड़ टन से अधिक अमेरिकी गेहूं मिलता था, जिसे लाल गेहूं या “लाल गेंहू” कहा जाता था। इसमें parthenium घास के बीज भी मिले होते थे, जिससे बाद में पूरे देश में कांग्रेसी घास फैल गई।
अकाल, भूख और अमेरिकी दबाव का दौर
1960 के दशक में भारत गरीबी, कम कृषि उत्पादन और भूख से जूझ रहा था। 1965 में खराब मानसून के कारण अनाज उत्पादन लगभग 20% गिर गया। बिहार में 1966 में अकाल पड़ा और हजारों लोगों की मौत हुई। इसी दौरान अमेरिका ने भारत को गेहूं दिया लेकिन इसके बदले भारत पर राजनीतिक दबाव भी बनाया—यहां तक कि वियतनाम युद्ध पर भारत की आलोचना रोकने के लिए गेहूं की लोडिंग रोक दी गई थी।
यह दौर भारत के लिए “ship-to-mouth” समय कहा जाता है, क्योंकि जहाज से आने वाला गेहूं लोगों की रोज़मर्रा की भूख मिटाने का एकमात्र सहारा था।
ग्रीन रिवोल्यूशन से बदल गया भारत
1966–67 के भीषण संकट ने भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए मजबूर किया। एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हाई-यील्डिंग किस्मों के बीज, रासायनिक खाद, नहरों व ट्यूबवेल से सिंचाई, ट्रैक्टर-थ्रेशर का उपयोग और सरकारी MSP व्यवस्था लागू की गई।
इसके परिणाम बेहद चमत्कारिक रहे—
- 1974 तक भारत गेहूं उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर बन गया
- अगले दशकों में चावल उत्पादन भी तेजी से बढ़ा
- 2022 तक भारत दुनिया का नंबर-1 चावल निर्यातक बन गया, करीब 2.2 करोड़ टन वार्षिक निर्यात
अमेरिका में चावल की बढ़ती खपत और भारत का रोल
1970 के मुकाबले 2020 के दशक में अमेरिका की प्रति व्यक्ति चावल खपत दोगुनी हो गई है। एशियाई और हिस्पैनिक आबादी बढ़ने, ग्लूटेन-फ्री ट्रेंड और बासमती–जैसमीन जैसे सुगंधित चावलों की लोकप्रियता ने मांग को बढ़ाया है।
- 2024 में अमेरिका ने 1.61 अरब डॉलर का चावल आयात किया
- इसमें से लगभग 25% चावल भारत ने भेजा
- भारत से अमेरिका को बासमती और नॉन-बासमती मिलाकर 380 मिलियन डॉलर का चावल निर्यात हुआ
आज की स्थिति: अमेरिका को चेतावनी और भारत की मजबूती
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि भारत अपने किसानों को अधिक सब्सिडी देता है और इसलिए अमेरिकी किसानों को नुकसान होता है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका खुद अपने किसानों को अरबों डॉलर की सहायता देता है—जैसे ट्रंप द्वारा घोषित 12 अरब डॉलर का bailout package।
आज भारत न केवल भूख से आत्मनिर्भर है, बल्कि—
- दुनिया के 120 से अधिक देशों को चावल–गेहूं–दालें निर्यात करता है
- अमेरिका सहित कई देशों को खाद्य सहायता भी भेजता है
- 80 करोड़ से अधिक नागरिकों को PDS के जरिए अनाज वितरित करता है
सिर्फ छह दशक में भारत “अनाज सहायता लेने वाले देश” से दुनिया के सबसे बड़े खाद्य निर्यातकों में बदल चुका है। यही कारण है कि अमेरिकी टैरिफ की धमकियां आज पहले जितनी प्रभावी नहीं रहीं।
