लॉकडाउन के बीच राजधानी में दशहरी ने दी दस्तक

Sunday, May 10, 2020 - 12:53 PM (IST)

नई दिल्लीः लॉकडाउन के बीच दक्षिण भारतीय आमों के साथ अपने स्वाद के लिए मशहूर दशहरी ने राष्ट्रीय राजधानी के बाजारों में दस्तक दे दी है। पीले रंग का बंगनापल्ली और चटक सिंदूरी रंग का स्वर्णरेखा वर्षों से राजधानी के बाजारों में आता रहा है लेकिन इस बार दशहरी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर लोगों को हैरत में डाल दिया है। दशहरी उत्तर भारत की किस्म नहीं है बल्कि कई वर्षों से इसे दक्षिण भारत में किसान लगाने का प्रयोग कर रहे थे जो अब सफल होता दिख रहा है। 

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ (सीआईएसएच) के निदेशक शैलेन्द्र राजन ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और महाराष्ट्र के किसान उत्तर भारतीय आम दशहरी के पौधे लगाने में दिलचस्पी ले रहे थे। बड़ी संख्या में इनके पौधे इन राज्यों में भेजे गए थे। दक्षिण भारत में आम की फसल उत्तर भारत से पहले तैयार हो जाती हैं। बंगनापल्ली जिसे सफेदा नाम से भी जाना जाता है, 70 से 100 रुपए किलो और अपने रंग से लुभानेवाले स्वर्णरेखा का भी लगभग यही दाम है लेकिन स्वाद में यह अपने रंग के विपरीत है। दशहरी अपने आकर्षक पीले रंग में तो नहीं है लेकिन यह फिलहाल पचास रुपए किलो की दर से उपलब्ध है। 

डॉ राजन के अनुसार आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली बाजार में मार्च-अप्रैल मे ही आने लगता है और मिल्कशेक और दूसरे व्यंजनों में लोग इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। अधिक लाभ कमाने के चक्कर में दक्षिण भारत के किसान इसे बहुत जल्दी तोड़ देते हैं और गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते हैं। फलस्वरूप फलों को खाने के बजाय आम का स्वाद लेने के लिए लोग इसे मिल्कशेक और दूसरे व्यंजनों में मिलाकर प्रयोग में लाते हैं। धीरे-धीरे समय के साथ सफेदा आम भी गुणवत्ता वाला हो जाता है। देखने में तो यह आकर्षक है और जल्दी खराब नहीं होने के कारण इसे काफी दिनों तक रखा जा सकता है। इस वर्ष दक्षिण भारत के बागों में आम की पैदावार कम है। 

आंध्रप्रदेश में तो कई स्थानों पर कुल उत्पादन का केवल 25 प्रतिशत ही आम की फसल लगी थी। बहुत ही आकर्षक लाल रंग के कारण स्वर्णरेखा आम की भी काफी मांग रहती है। देखने में यह आम खूबसूरत है परंतु स्वाद रंग रूप के अनुरूप नहीं होता है। यह आम लखनऊ और दिल्ली के बाजारों में काफी मात्रा में आ चुका है। आंध्र प्रदेश तथा ओडिशा के दक्षिण भारत से सटे हिस्से से स्वर्णरेखा और बंगनापल्ली, दोनों की ही आवक उत्तर भारत के बाजारों में हर साल लगभग तय है। उत्तर भारतीयों को दशहरी के मुकाबले दूसरे दर्जे का स्वाद रखने वाले इन आमों को खाकर ही आजकल काम चलाना पड़ता है। 

डॉ शैलेंद्र राजन ने बताया कि आंध्र प्रदेश में दशहरी की खेती के प्रति किसानों का रुझान बढ़ा है। संस्थान से हजारों पौधे किसानों को वहां पर उपलब्ध कराए गए हैं हालांकि दशहरी का असली रंग रूप वहां देखने को नहीं मिलता है लेकिन फिर भी दशहरी का स्वाद तो दशहरी का ही है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य स्थानों पर दशहरी लगाने का मुख्य कारण इस किस्म की कई खासियत है। 
 

jyoti choudhary

Advertising