ज्यादा महंगी होने के कारण जीवन रक्षक दवाइयां पहुंच से बाहर

Monday, Oct 31, 2016 - 03:17 PM (IST)

नई दिल्लीः जीवन रक्षक दवाइयां अब भी बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर हैं क्योंकि बाजार की गतिशील रुझान और बायोसिमिलर्स समेत अन्य जीवन रक्षक दवाइयों में सीमित प्रतियोगिता की वजह से इनकी कीमतों में बेहद कम कटौती हो पाई। हैरानी की बात यह है कि कीमतें घटाने की सरकारी कोशिशें भी बेकार साबित हो रही हैं। मरीजों के लिए यह दवाइयां मुहाल हो रही हैं क्योंकि इलाज में अक्सर लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं।

नैशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एन.पी.पी.ए.) ने ब्रेस्ट कैंसर की दवाई trastuzumab (400 mg) की कीमत 55,812 रुपए निर्धारत की है जबकि कंपनियों की ओर से तय कीमत (58,000 रुपए) से कुछ ही कम है। बायोसिमिलर्स कैंसर थेरपी, रुमेटॉइड ऑर्थराइटिस और दूसरी गंभीर बीमारियों में काम आती हैं। हेपटाइटिस बी और सी के इलाज में काम आने वाली sofosbuvir, tenofovir और entecavir जैसी दवाइयां भी मरीजों की पहुंच से बाहर ही हैं, बावजूद इसके कि सरकार ने इन्हें कीमत नियंत्रण वाली कैटिगरी में रखा हुआ है।

दवाइयों, मरीजों, अस्पतालों आदि पर नजर रखने वाली सामाजिक कार्यकर्ता लीना मेंघानी ने कहा, 'एन.पी.पी.ए. ने कीमत तय करने की जो व्यवस्था अपना रखी है, उससे कंपनियां दाम जानबूझकर बढ़ाने को प्रेरित होती हैं। इस तरह वो मरीजों तथा ग्राहकों के हितों के खिलाफ काम करती हैं। सरकार ने बहुराष्ट्रीय और देसी, दोनों कंपनियों को लोगों की बीमारी की कीमत पर मुनाफाखोरी की छूट दे रखी है और लाखों मरीजों की मौत हो रही है।'

नैशनल लिस्ट ऑफ इसेनशल मेडिसिन (एन.एल.ई.एम.) में शामिल दवाइयों की कीमत तय करते वक्त दवाइयों की लागत को ध्यान में रखा जाए। यही पैमाना इसलिए भी सटीक है क्योंकि कुछ ऑफ-पेटेंट रजिस्टर्ड दवाइयों की लागत बहुत कम होती हैं।

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