धीरूभाई अंबानी पुण्यतिथिः भजिया के ठेले से बिजनेसमैन बनने तक की कहानी

Thursday, Jul 06, 2017 - 01:46 PM (IST)

नई दिल्लीः मजबूत इरादों और दमदार शख्सियत की वजह से धीरूभाई ने जो मुकाम तीन दशक में हासिल किया वो शायद ही कोई तीन जन्म में भी पा सके और यही वजह है कि धीरूभाई अंबानी बिजनेस जगत के शिखर पर पहुंच गए।

एेसे बने युवाओं के हीरो
धीरूभाई के विश्वास और लोगों को जोड़कर रखने की उनकी काबिलियत का पता तब चला जब उन्होंने जूनागढ़ के नवाब के आदेश का विरोध किया। जूनागढ़ के नवाब ने अपनी रियासत में रैलियों पर पाबंदी लगा दी थी। धीरूभाई ने न सिर्फ इस पाबंदी का विरोध किया बल्कि तिरंगा फहराकर देश की आजादी का जश्न भी मनाया। उस वक्त धीरूभाई ने अपना पहला भाषण दिया। वह युवाओं के लिए हीरो बन चुके थे। युवाओं के लिए धीरूभाई किसी हीरो से कम नहीं थे। उनके भाषण से उत्साहित होकर युवाओं का झुंड पुलिस और दूसरे अधिकारियों का विरोध कर रहा था और आजादी के नारे लगा रहा था।

1932 में हुआ जन्म
आजादी के बाद जूनागढ़ के नवाब भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे। उस वक्त धीरूभाई ने प्रजा मंडल के विरोध प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। धीरूभाई ने जूनागढ़ को भारत में शामिल कराने की हर मुमकिन कोशिश की। आखिरकार जूनागढ़ के नवाब ने हार मानी और यह रियासत भारत का हिस्सा बना। 16 साल के धीरूभाई को समाजवाद और राजनीति काफी आकर्षित करती थी। इनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को हुआ था। जूनागढ़ के चोरवाड़ गांव में पैदा हुए धीरूभाई अंबानी के बारे में कोई नहीं जानता था कि वह देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव रखेंगे। धीरूभाई अंबानी का निधन 6 जुलाई 2002 को मुंबई में हुआ था।

बीच में छोड़नी पड़ी पढ़ाई
पिता गोवर्धनदास अंबानी की गिरती सेहत और कमजोर माली हालत के कारण धीरूभाई को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। धीरूभाई अंबानी के चार भाई-बहन थे। स्कूल टीचर के बेटे होने के बावजूद धीरूभाई का दिमाग पढ़ाई में कम और धंधे में ज्यादा लगता था। गांव में शुरुआती 5 साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें जूनागढ़ भेज दिया गया। इसके बावजूद उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा। बचपन से ही उनका दिमाग धंधे पर ज्यादा रहता था। किशोर उम्र में उन्होंने पकौड़े की एक दुकान जमाई। इस दुकान से होने वाली कमाई से धीरूभाई अपने घर खर्च में हाथ बंटाते थे।

पहली नौकरी
धीरूभाई अपने सपनों को हकीकत बनाने के लिए जब यमन के पोर्ट एडेन पहुंचे, तो वह दुनिया का सबसे बिजी एयरपोर्ट था। यहां उन्होंने क्लर्क के तौर पर अपनी नौकरी शुरू की। इलाके के सबसे बड़े ट्रेडिंग फर्म ए. बेसेस एंड कंपनी से जुड़ने के बाद धीरूभाई ने ट्रेडिंग, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट, होलसेल बिजनेस, मार्केटिंग, सेल्स और डिस्ट्रीब्यूशन की बारीकियां सीखीं।

शादी
धीरूभाई ने यहां अलग-अलग देशों के लोगों से करेंसी ट्रेडिंग सीखी। अपने हुनर को निखारते निखारते उन्हें यह समझ आ गया था कि ट्रेडिंग में उनकी खास दिलचस्पी है। 1954 में कोकिला बेन से विवाह करने के बाद उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। उनकी कंपनी ने उन्हें एडेन में शुरू होने वाली शेल ऑयल रिफाइनरी कंपनी में काम करने के लिए एडेन भेजा। यहां से ही धीरूभाई ने अपनी रिफाइनरी कंपनी का सपना देखना शुरू कर दिया था। 50 के दशक के बाद वह एडेन से देश वापस लौट आए।

एेसे पड़ी रिलायंस की नींव 
धीरूभाई कोई दुकान खोलकर नहीं बैठना चाहते थे। हमेशा से वह कुछ बड़ा करना चाहते थे। वह एक बड़े और कामयाब बिजनेसमैन बनना चाहते थे। इसी दौरान उन्होंने अरब के कुछ कारोबारियों से संपर्क किया। धीरूभाई ने उन्हें मसाले, चीनी और दूसरी चीजें निर्यात करना शुरू किया लेकिन उनका मार्जिन बेहद कम था। इसके बाद उन्होंने थोक कारोबार शुरू किया और रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन की नींव पड़ी। अपनी जबरदस्त सर्विस से धीरूभाई ने अपने कारोबार का सिक्का पूरी तरह जमा लिया। अब तक धीरूभाई ने अपने दिमाग का लोहा मनवा लिया था। कारोबार के दौरान उन्हें जब भी पैसों की जरूरत होती थी वह गुजरात के साहूकारों से उधार लेते थे। अपनी बात के पक्के धीरूभाई ने हमेशा कहे वक्त पर भी पैसा लौटाया।

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