हाऊसिंग प्रोजैक्ट्स को पूरा करने के लिए बिल्डर्स ने छोटे डिवैल्परों को जोड़ा अपने साथ

Saturday, Dec 24, 2016 - 02:21 PM (IST)

नई दिल्लीः पांच वर्ष से लगातार मंदी की मार और उसके बाद अब नोटबंदी के चलते ब्लैक मनी पर चोट ने रियल एस्टेट की कमर तोड़ दी है। हालात ये हैं कि अब बिल्डरों द्वारा अपने प्रोजैक्टों को अन्य राहों और मोटी ब्याज दरों पर रकम लेकर पूरा करना पड़ रहा है। यही नहीं इसी के चलते कई प्रोजैक्ट फिलहाल बंद कर दिए गए हैं साथ ही बायर्स को सूचना देकर आग्रह तक किया गया है कि उनके प्रोजैक्ट करीब डेढ़ से दो साल तक लेट होंगे। इसी संबंध में रियल एस्टेट से जुड़ी क्रेडाई ने भी वित्त मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय सहित इस सैक्टर के लिए कुछ योजनाओं पर कार्य करने की बात कही है। यही नहीं वर्तमान में कई बड़े बिल्डर ग्रुप्स ने अब छोटे बिल्डरों का सहारा लेकर अपने प्रोजैक्टों को पूरा करने की जुगत लगानी शुरू कर दी है। इस नए फंडे के तहत अब बनने वाले हाऊसिंग प्रोजैक्ट के ग्रुप में छोटे-छोटे बिल्डर भी थर्ड पार्टी के रूप में शामिल हो गए हैं।

आम्रपाली समेत कई बिल्डरों ने किया करार
नोएडा के ही जाने-माने बिल्डर आम्रपाली ग्रुप पैसे की कमी और मुकद्दमेबाजी के चलते फंस गए। अपने कई प्रोजैक्ट्स में टावरों का बाकी काम पूरा करने के लिए थर्ड पार्टी कान्ट्रैक्टर्स से हाथ मिलाया है। आम्रपाली ग्रुप ने नोएडा गाजियाबाद के 8 प्रोजैक्टों को पूरा करने के लिए छोटे ग्रुप के 22 लोगों से करार किया है। इन्हें बाकायदा एग्रीमैंट के तहत कुछ फ्लैट्स देने की बात कही है। आम्रपाली के मुताबिक जो करार उन्होंने किया है उसके तहत ऐसी डील में कांट्रैक्टर एक ग्रुप में 4-5 टावर्स या कुछ हिस्सा बियर करेगा। कंस्ट्रक्शन शुरू करने के लिए अपनी ओर से शुरूआती पैसा लगाएगा और उस स्टेज तक ले जाएगा, जहां से कंस्ट्रक्शन ङ्क्षलक्ड पेमैंट होम बायर्स से लेने की स्थिति बन जाए।

मंदी के चलते फिलहाल कई प्रोजैक्टों पर ब्रेक
इसी तरह ग्रार्डिनिया ग्रुप ने भी अपने सैक्टर-78 और ग्रेनो वैस्ट के 3 प्रोजैक्टों को पूरा करने के  लिए 7 थर्ड पार्टी एग्रीमैंट किए हैं। तय शर्तों के मुताबिक सभी को एक-एक टावर का हिस्सा दिया गया है। इसकी लागत को ये लोग खर्च करेंगे, साथ ही इन्हें इन फ्लैटों को बेचने का अधिकार भी होगा। इस संबंध में कंपनी के निदेशक संजीव सिंह ने बताया कि मंदी के चलते फिलहाल कई प्रोजैक्टों पर ब्रेक लग गई है।

छोटे बिल्डर्स से मिलाया जा रहा है हाथ
बिल्डिंग रैगुलेटिंग एक्ट मार्च में आने वाला है,उससे पहले  ही बिल्डर इस तैयारी में हैं कि किसी तरह से वे अपने सभी पुराने प्रोजैक्टों को पूरा कर लें। इससे जहां बायरों का कंपनी पर विश्वास बना रहता है, वहीं हमें फंड मिल जाता है। उन्होंने बताया कि सरकार को भी इस बारे में सोचना चाहिए, हमारी बैंक की लोन दरें कम नहीं हो रहीं और ऊपर से मंदी की मार तथा नोटबंदी के बाद कोर्ट हमारे खिलाफ ही फैसले दे रही है, जिसके चलते यह रास्ता अपनाया गया है। हाल में जे.पी. ग्रुप ने भी नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रैस वे पर जे.पी. विश टाऊन में अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोजैक्ट्स को बेचने के लिए कुछ छोटे बिल्डर्स को अपने साथ मिलाया और उनसे फंड लिया है ताकि वे अपने प्रोजैक्टों को समय पर पूरा कर पाएं।

प्रोजैक्टों में होगी हर बायर की भागीदारी
आने वाले समय में एक और बदलाव भी देखने को मिल सकता है, जिस तरह से बिल्डर्स छोटे-छोटे डिवैल्परों को मिले प्रोजैक्टों को पूरा करने का काम कर रहे हैं, अब उसी तरह से बिल्डर्स लॉबी चाहती है कि पूर्व की तरह वे हाऊसिंग सोसायटी की तर्ज पर काम करें। इसके लिए बाकायदा नोएडा अथारिटी को एक प्रपोजल भी भेजा गया है। इसके तहत बिल्डर लॉबी चाहती है कि उसे जमीन मुहैया करवाने से पहले कंपनी में कई लोगों की भागीदारी बनाने की छूट मिलेे। इसके तहत वे सीधे तौर पर पहले आम लोगों को उससे जोड़ कर और एक फंड का निर्माण कर भूमि लें, जिसमें एक करार के तहत आम लोगों के नाम ही एग्रीमैंट में शामिल किए जाएं। इसके बाद जब प्रोजैक्ट को शुरू किया जाए और उसे अंत तक बनाया जाए ताकि सीधे तौर पर आम आदमी और बायर उससे जुड़ा रहे। बिल्डर का तर्क है कि  इससे उन्हें मुनाफा बेहद कम होगा लेकिन जहां लोगों को घर मिल सकेगा, वहीं उन्हें फंड भी मिल जाएगा। यही नहीं किन्हीं कारणों से प्रोजैक्ट रुकता है जैसे एन.जी.टी. या सरकारी अड़चनों के चलते तो उसमें बायर का भी जोखिम जोड़ा जाए। ऐसे में डिवैल्पर्स के जिन प्रोजैक्ट्स की ओरिजिनल टाइमलाइन पार कर गई है या उनके प्रोजैक्ट्स एडवांस्ड स्टेज में हैं, वे इस समय का इस्तेमाल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं क्योंकि वे प्रोजैक्ट्स के री-रजिस्ट्रेशन के झंझट से बचना चाहते हैं। उन्हें डर है कि मौजूदा प्रोजैक्ट को रजिस्टर कराने की प्रक्रिया से इसमें और देरी हो सकती है।

कंस्ट्रक्शन की लागत में बढ़ौतरी
मौजूदा समय के जो हालात हैं, उसमें प्रापर्टी की हालत ठीक नहीं है। सरकार ने भी इस सैक्टर की तरफ कम ध्यान दिया है, रोज नए नियम बनाते हैं- पहले कोर्ट, फिर एन.जी.टी. और अब बिल्डिंग रैगुलेटिंग एक्ट। हम मानते हैं कि कुछ अंकुश जरूर होने चाहिएं लेकिन कुछ ऐसी भी छूट मिलनी चाहिए ताकि उस माहौल में काम किया जा सके। मौजूदा कंस्ट्रक्शन की लागत लगातार बढ़ रही है। कच्चा माल भी समय पर नहीं मिल पा रहा है। मजदूरों की बेहद कमी है और दूसरी तरफ बैंकों की ब्याज दरें कम नहीं हो रहीं। हमें उम्मीद थी कि सरकार बैंक की तरफ से हमें रियायत देगी लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया। इसके चलते हम लोगों ने ये कदम उठाए हैं। हमने नोएडा में लगभग 50 टावर पूरे करने के लिए 10 कांट्रैक्टर्स से हाथ मिलाया है। उन्होंने कहा, प्रोजैक्ट्स पूरे होने पर उन्हें रैगुलर फीस के अलावा हमारे प्रॉफिट में एक हिस्सा भी मिलेगा। ये कार्य हम नहीं बल्कि कई अन्य ग्रुप भी कर रहे हैं।

Advertising