खतरे में पड़ सकती है करोड़ों रुपए मूल्य की बेनामी संपत्तियों की कुर्की

Sunday, Jun 03, 2018 - 04:48 PM (IST)

नई दिल्लीः सरकार बेनामी संपत्तियों के मामलों के निपटान के लिए नया कानून बनाने के डेढ़ साल बाद अभी भी इन मामलों की सुनवाई के लिए न्यायिक प्राधिकरण का गठन ही नहीं कर पाई है। इससे करोड़ों रुपए मूल्य की 780 से अधिक सम्पत्तियों की कुर्की की कार्रवाई की वैधता निकट भविष्य में खतरे में पड़ सकती है।



नवंबर 2016 में लागू किया गया था एक्‍ट
मौजूदा सरकार ने बेनामी संपत्ति लेनदेन कानून (1988) को संशोधित और मजबूत कर उसे एक नवंबर 2016 से लागू किया। उसी महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कालेधन से निपटने के लिए नोटबंदी जैसे बड़े कदम की घोषणा की थी। इस कानून की धारा 7 के तहत 7 साल तक के कड़े कारावास व संपत्ति के बाजार मूल्य के 25 फीसदी तक जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून के तहत सकार को 3 सदस्य वाला एक निर्णायक प्राधिकार गठित किया जाना है जो आयकर विभाग द्वारा इस कानून के तहत की जाने वाली कुर्की की वैधता का फैसला करेगा।



डेढ़ साल से नहीं बनी है यह अथॉरिटी
बीते डेढ़ साल में ऐसा कोई प्राधिकार गठित नहीं किया गया है। सरकार इस तरह के मामले एडहॉक बेसिस पर निपटा रही है और फौरी तौर पर इसका जिम्मा मनी लांड्रिंग निरोधक कानून (पीएमएलए) के निर्णायक प्राधिकार को दे रखा है। यह प्राधिकार पहले ही काम के बोझ से दबा है।



780 मामले अब भी लंबित 
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार कर विभाग ने इस तरह के 860 से अधिक मामलों को अंतिम रूप देकर निर्णायक प्राधिकार के पास भेजा है। इनमें से केवल 80 पर ही फैसला किया जा सका है। करोड़ों रुपए मूल्य की संपत्तियों की कुर्की के 780 मामले अब भी लंबित हैं। ये मामले कई नामचीन लोगों, राजनेताओं व अधिकारियों आदि से जुड़े हैं। इस प्राधिकार ने भी सरकार को नोटिस दे रखा है। इसमें इसने कहा है कि अगर नया प्राधिकार गठित नहीं होता हैऔर सदस्यों व कर्मचारियों की मौजूदा खाली पदों को नहीं भरा जाता है तो उसके लिए बेनामी संपत्ति मामलों को तय समयसीमा में निपटाया जाना असंभव होगा।

सरकार के लिए शर्मिंदगी वाला मामला 
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "अगर बेनामी मामलों में तय समयावधि में फैसला नहीं होता है तो यह सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी वाला मामला हो सकता है क्योंकि काले धन के खिलाफ अपने अभियान के तहत वह इसी पर जोर देती रही है। प्रधानमंत्री मोदी भी विभिन्न मंचों व चुनावी रैलियों में इस बारे में बोल चुके हैं।"

jyoti choudhary

Advertising