संकट में ऑटो उद्योगः लाखों लोगों की नौकरियां गईं, 10 लाख लोगों के रोजगार पर खतरा

Saturday, Aug 17, 2019 - 03:55 PM (IST)

जालंधर (सोमनाथ): देश की ऑटो इंडस्ट्री बुरे दौर से गुजर रही है। जुलाई में एक बार फिर पैसेंजर्स व्हीकल्स की बिक्री में गिरावट आई है। यह लगातार 9वां महीना है जब पैसेंजर्स व्हीकल्स की बिक्री में सुस्ती देखने को मिली है। वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन सिआम ने मंगलवार को वाहन बिक्री और ऑटो सैक्टर में नौकरियों के हालात पर आंकड़े जारी किए। सिआम के महानिदेशक विष्णु माथुर ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि वाहन उद्योग में एक साल से जारी मंदी के कारण लाखों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। सबसे ज्यादा असर कांट्रैक्ट पर नौकरी करने वाले कर्मचारियों पर पड़ा है। जुलाई-2018 से जुलाई-2019 के बीच वाहनों की बिक्री में 36 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है। यही नहीं ऑटो यूनिट बंद तक हो रहे हैं। 

मीडिया के साथ बातचीत में मारुति सुजूकी के चेयरमैन आर.सी. भार्गव ने भी कहा है कि 2008-09, 2013-14 और 2018-19 में ऑटो उद्योग को काफी मंदी का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। इन सभी बदलावों का यह समय मंदी से जुड़ा हुआ है। इन हालात में ऑटो इंडस्ट्री ने सरकार से तत्काल राहत पैकेज की मांग की है। ऑटो इंडस्ट्री में मंदी के संबंध में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के बयान और मुलाकात के बाद वह निश्चित रूप से अधिक विश्वास में हैं कि स्थिति में शीघ्र सुधार होगा। उन्हें प्रधानमंत्री से काफी उम्मीदें हैं।

कंपोनैंट बनाने वाली कंपनियों पर सबसे बुरा असर
सिआम के मुताबिक सबसे बुरा प्रभाव वाहनों के कलपुर्जे (कंपोनैंट) बनाने वाली कंपनियों पर पड़ा है। रिपोर्टों के मुताबिक इस क्षेत्र में करीब 11 लाख लोगों के हाथ से रोजगार छिन गया है। इनमें एक लाख की छंटनी बड़ी कंपनियों तथा 10 लाख की छंटनी छोटे आपूर्तिकत्र्ताओं ने की है। करीब 300 डीलरशिप बंद हो चुकी हैं और डीलरों ने 2 लाख 30 हजार लोगों को नौकरी से निकाला है। सिआम ने जिन 10-15 वाहन निर्माता कंपनियों के आंकड़े एकत्र किए हैं उन्होंने भी 15 हजार लोगों को निकाला है। सबसे ज्यादा गाज अस्थायी कर्मचारियों पर गिरी है। 

नियमों में बदलाव का भी असर
आर.सी. भार्गव ने कहा कि वाहनों की बिक्री कम होने का एक कारण यह भी है कि एक तरह से लागत काफी बढ़ गई है, जिसका असर उपभोक्ता और मालिक दोनों पर पड़ा है। सुरक्षा नियमों में बदलाव का प्रभाव भी शामिल है, जिसमें ए.बी.एस. ब्रेक सिस्टम, एयरबैग और साइड बॉडी इंपैक्ट भी जुड़े हुए हैं। इस संबंध में बी.एस.-फोर से बी.एस.-सिक्स में बदलाव की लागत भी जुड़ी है। यह हमेशा एक समस्या रही है, क्योंकि दोनों किस्म के वाहनों को बनाने में काफी अधिक लागत आती है। इसके साथ ही इंश्योरैंस के हिस्से का भी काफी प्रभाव है। रोड टैक्स बढ़ गया है। एक बात मैं सांझी करने में संकोच नहीं करता कि सरकार की विभिन्न एजैंसियों में कोई तालमेल नहीं है। सभी एजैंसियां अलग-अलग ढंग से काम करती हैं। इन एजैंसियों को मिलकर काम करना चाहिए ताकि सभी प्रभाव एक साथ नहीं आएं। सब कुछ संभव हो सकता है यदि इसे एक योजनाबद्ध ढंग से किया जाए। यहां लागत में विस्तार हो कारोबारियों को मदद मिलनी चाहिए। 
आपका कहना है इस मदद में काफी गड़बड़ी का माहौल है? तो भार्गव ने कहा कि कुल लागत का प्रभाव बना हुआ है। हमने आंकड़े हासिल किए हैं और आंकड़े हम दे सकते हैं, लेकिन...। 

भारत में एक कार मालिक को औसतन कितना खर्च पड़ता है? तो उन्होंने बताया कि पिछले एक वर्ष में छोटी कारों पर लागत 10 से 12 प्रतिशत बढ़ गई है। बड़ी कारों पर रोड टैक्स काफी ज्यादा है जोकि लगभग 12-13 प्रतिशत है। इससे बड़ी कारों की कीमत काफी बढ़ गई है। एक साथ लागत बढऩे का असर बिक्री पर पड़ा है। 

हर 5 साल बाद मंदी का दौर
मारुति सुजूकी के चेयरमैन ने कहा कि मंदी कोई ऐसी बात नहीं है। यह कारोबार का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि हर पांच साल बाद उद्योग को इस तरह की मंदी का सामना करना पड़ता है। हमने 2008-09, 2013-14 और 2018-19 में भी मंदी का दौर देखा है। यह पूछे जाने पर कि क्या यह सबसे बड़ा मंदी का दौर है तो उनका कहना था कि ऐसा बुरा नहीं है। वर्ष की पहली तिमाही में यह खराब नहीं था। यह तीसरी तिमाही में मंदी लगभग उसी तरह थी जो पहली दो तिमाहियों में थी मगर जून की तिमाही में और जुलाई में वाहन बिक्री में गिरावट बहुत अलग थी। 

प्राइवेट कस्टमर्स को मारुति सुजूकी ई-कार के लिए अभी करना होगा इंतजार
चेयरमैन भार्गव ने बताया कि अगले साल तक मारुति सुजूकी ऊबर और ओला को इलैक्ट्रिक कार दे सकती है, क्योंकि उनके कस्टमरों की संख्या बहुत ज्यादा है लेकिन प्राइवेट कस्टमर्स को अभी मारुति की ई-कार के लिए इंतजार करना पड़ सकता है। यह इंतजार 2-3 साल तक का हो सकता है क्योंकि अभी मारुति की प्राइवेट कस्टमर्स को ई-कार देने की योजना नहीं है। 

19 साल में सबसे बड़ी गिरावट
दूसरी ओर सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमाबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सिआम) के आंकड़ों के मुताबिक घरेलू बिक्री में 18.71 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। यह 19 साल में सबसे तेज गिरावट है। इससे पहले दिसम्बर 2000 में 21.81 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई थी। फैडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के मुताबिक मंदी की वजह से पिछले 3 महीने में 2 लाख लोगों का रोजगार छिन गया। सिआम के महानिदेशक विष्णु माथुर के मुताबिक ऑटो इंडस्ट्री ने 3.7 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार दे रखा है। मंदी खत्म नहीं हुई तो और नौकरियां जाएंगी। एक रिपोर्ट में ऑटो कंपोनैंट मैन्युफैक्चरर्स ने आने वाले कुछ महीनों में 10 लाख नौकरियों पर खतरा बताया है। इंडस्ट्री के लोगों की मांग है कि सरकार को ऑटोमोबाइल सैक्टर में जी.एस.टी. की दर 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत करनी चाहिए। 

jyoti choudhary

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