बैंकों के बढ़ते घोटालों पर स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के पूर्व निदेशक अश्विनी गुप्ता ने किया यह दावा

Wednesday, Feb 28, 2018 - 10:37 AM (IST)

जालंधरः हीरा व्यापारी मेहुल चौकसी तथा नीरव मोदी के पी.एन.बी. से किए गए बैंक घोटाले के बाद रोटोमैक विक्रम कोठारी तथा हीरा व्यापारी द्वारका दास सेठ का करीब 400 करोड़ रुपए का बैंक घोटाला सामने आया है। पिछले एक महीने से बैंकों के साथ हुए घोटालों की यह कतार बढ़ती जा रही है। ‘पंजाब केसरी’ के संवाददाता नरेश कुमार ने स्टेट बैंक ऑफ पटियाला के 6 वर्ष से ज्यादा समय डायरैक्टर रहे सीनियर चार्टर्ड अकाऊंटैंट अश्विनी कुमार गुप्ता से बातचीत कर यह जानने की कोशिश की कि आखिर बैंक घोटाले क्यों हो रहे हैं तथा घोटालों के असली जिम्मेदार कौन हैं? गुप्ता के कार्यकाल दौरान स्टेट बैंक ऑफ पटियाला ने 6 साल में करीब 30 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को मंजूरी दी गई थी। गुप्ता के मुताबिक देश में बैंकों द्वारा दिए गए करीब 100 लाख करोड़ रुपए के कर्ज में से करीब 30 लाख करोड़ रुपए का कर्ज असुरक्षित कर्ज है और इस पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी। पेश है अश्विनी कुमार के साथ हुई बातचीत का पूरा ब्यौरा-

प्रश्न : बैंक में ऋण देने की प्रक्रिया क्या होती है?
उत्तर :
यदि किसी भी व्यक्ति ने ऋण लेना हो तो सबसे पहले संपर्क बैंक की शाखा से किया जाता है। यह शाखा बैंक तथा ग्राहक के मध्य एक कड़ी का काम करती है। हर शाखा की ऋण देने की अपनी एक सीमा निर्धारित होती है। यह निर्धारित सीमा बैंक की शाखा के सालाना बिजनैस पर निर्भर करती है जिन बैंकों की शाखा का बिजनैस होगा वही ज्यादा ऋण दे सकेंगी। आमतौर पर 50 करोड़ रुपए तक का लोन जोनल मैनेजर या डी.जी.एम. स्तर पर ही दे दिया जाता है परंतु जब ऋण की रकम 100 करोड़ के ऊपर हो जाती है तो ऐसी अर्जी को बैंक का बोर्ड ही पास करता है।

प्रश्न : बोर्ड में कौन-कौन होता है?
उत्तर :
बोर्ड में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा नियुक्त किए गए डायरैक्टर के अलावा वित्त मंत्रालय द्वारा नियुक्त किए डायरैक्टर भी होते हैं। इसके अलावा कार्यालय के नुमाइंदे डायरैक्टर तथा इंडीपैंडैंट डायरैक्टर भी बोर्ड का हिस्सा होते हैं। बोर्ड में 50 फीसदी हिस्सेदारी इंडीपैंडैंट डायरैक्टरों की होती है। ये डायरैक्टर शेयर होल्डरों और सरकार की तरफ से नामित किए जाते हैं।

प्रश्न : क्या सारे ऋण बैंकों की छोटी ब्रांचों की ओर से होते हैं?
उत्तर :
असल में बड़े ऋण देने के लिए बैंकों ने कमर्शियल ब्रांच नाम का कन्सैप्ट शुरू किया है तथा बैंकों द्वारा दिया जाने वाला करीब 20 प्रतिशत ऋण इन कमर्शियल ब्रांचों द्वारा ही दिया जाता है। आज भी देश के तमाम बैंकों ने 100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज दे रखा है। इनमें सार्वजनिक क्षेत्र के सरकारी बैंकों के अलावा को-ऑप्रेटिव बैंकों का कर्ज भी शामिल है। इस कुल कर्ज में से करीब 30 लाख करोड़ ऐसा कर्ज है, जिसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं है और यह असुरक्षित कर्ज है। इस कर्ज पर हमेशा तलवार लटकी रहती है। इस कमर्शियल ब्रांच ने निचले स्तर पर बैंकिंग को कमजोर किया है। कमर्शियल ब्रांच द्वारा ऋण पास करवाए जाने तथा बैंक के बोर्ड की ऋण को मंजूरी होने के चलते निचले स्तर पर बैंक की ब्रांच संबंधित ऋण को लेकर गंभीर नहीं होती तथा ऋण के मामले में छोटी-मोटी अनियमितताएं नजरअंदाज कर दी जाती हैं।

प्रश्न : ऋण देने के मामले में बोर्ड किस तरह काम करता है?
उत्तर :
जब ऋण की रकम बड़ी होती है तो प्रस्ताव पूरे बोर्ड के पास जाता है तथा बोर्ड को एजैंडा भेजा जाता है। यह एजैंडा जनरल मैनेजर द्वारा बोर्ड के सदस्यों को पढ़कर सुनाया जाता है तथा ऋण की अर्जी देने वाले दावों तथा तथ्यों बारे जानकारी दी जाती है। सारे प्रस्ताव को सुनने के बाद बोर्ड तय करता है कि ऋण देना है या नहीं देना। 99 प्रतिशत केसों में सारे बोर्ड सदस्यों द्वारा सहमति मिलने पर ही ऋण देने का फैसला लिया जाता है।

प्रश्न : बड़े ऋण आसानी से मिलते हैं परंतु आम व्यक्ति को ऋण क्यों नहीं मिलता?
उत्तर : ऐसा बैंकिंग के नियमों कारण होता है। यदि किसी ने घर बनाना है तो उसे होम लोन के लिए जमीन की रजिस्ट्री बैंक के पास गिरवी रखनी पड़ती है परंतु इसके उलट यदि किसी ने नया प्रोजैक्ट लगाना है तो उसकी प्रोजैक्ट रिपोर्ट के आधार पर ही बड़ा ऋण पास कर दिया जाता है। ऐसे प्रोजैक्ट रिपोर्ट प्रोजैक्ट अप्रेजल कम्पनियों की ओर से बनाए जाते हैं। यह प्रोजैक्ट अप्रेजल कम्पनियां बैंक द्वारा ही खोली जाती हैं। भूषण स्टील, किंगफिशर्ज जैसे बड़े ऋण इन कम्पनियों की प्रोजैक्ट रिपोर्ट पर ही दिए जाते हैं। यह सिलसिला पिछले कुछ वर्षों से शुरू हुआ है तथा इन रिपोर्टों के आधार पर ही देश में बैंकों द्वारा बड़े ऋण दिए जा रहे हैं। अक्सर देखने में आता है कि एक बैंक द्वारा बड़ी रकम का ऋण पास किए जाने के बाद आवेदन कम ऋण लेता है तथा दूसरे बैंकों के पास भी उसी रिपोर्ट के आधार पर ऋण की अर्जी लगा दी जाती है। दूसरे बैंक एक बैंक की रिपोर्ट पर भरोसा करके ही ऋण जारी कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर किंगफिशर वाले मामले में कई बैंकों ने कम्पनी को ऋण दे दिया था।

प्रश्न : ऐसे घोटाले पकड़े  क्यों नहीं जाते?
उत्तर : असल में ऐसे घोटाले शुरूआती दौर में सामने आ जाते हैं परंतु बैंक पर एन.पी.ए. (नॉन प्रोफार्मिंग एसैट) बढ़ने का दबाव इतना ज्यादा है कि बैंक सब कुछ देखते हुए भी नजरअंदाज कर देते हैं तथा गलत हुए ऋण को ठीक करने के लिए और ऋण दिया जाता है परंतु  इस बीच कम्पनी बैठ जाती है तथा घोटाले की रकम बढ़ती जाती है। बैंकों में 3 तरह के ऑडिट होते हैं जिनमें इंटर्नल ऑडिट, एक्सटर्नल ऑडिट तथा सैचुएटिरी ऑडिट शामिल हैँ परंतु ऑडिटर्स पर काम का इतना दबाव होता है कि वे गलत को भी नजरअंदाज कर जाते हैं। कई जगह यह भी देखने को मिलता है कि ऑडिटिंग के काम पर कम तजुर्बेकार ऑडिटर ऑडिट करते हैं। बैंकों द्वारा ऑडिटरों को ऑडिट के बदले दी जाने वाली रकम के कम होने के कारण गैर तजुर्बेकार ऑडिटर्स ऑडिट करते हैं। आर.बी.आई. यदि ऑडिटरों को दी जाने वाली रकम में वृद्धि करे तो ऑडिट दौरान बड़े घोटाले पकड़े जा सकते हैं।

प्रश्न : घपलों के लिए बैंक का अंदरूनी ढांचा कितना जिम्मेदार है?
उत्तर : असलियत में बैंक का अंदरूनी ढांचा बहुत कमजोर है तथा यही घोटालों का कारण भी है। पी.एन.बी. के मामले में लैटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी कर दी गई तथा दूसरे बैंक ने बिना जांच-पड़ताल किए इस अंडरटेकिंग के तहत पैसा भी जारी कर दिया। असलियत में बैंकिंग का सारा ढांचा कर्मचारी की ईमानदारी पर निर्भर करता है। यदि आप एफ.डी. करवाने जाते हैं और कर्मचारी आपको एफ.डी. की रसीद दे परंतु उसकी एंट्री बैंक के खाते में न पड़े तो वह पैसे घर भी लेकर जा सकता है। इस प्रक्रिया को मजबूत किए जाने की जरूरत है। तकनीक का इस्तेमाल करके इस पर काबू पाया जा सकता है। आप बैंक जाकर पैसे जमा करवाते हैं तो उसकी बैंक स्टेटमैंट उसी समय आपके मोबाइल पर आनी चाहिए। मैंने स्टेट बैंक ऑफ पटियाला में बतौर डायरैक्टर रहते हुए हाऊसिंग लोन फ्रॉड रोकने के लिए बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव को बाकी बैंकों ने भी लागू किया तथा जाली रजिस्ट्रियों के आधार पर होने वाले बैंक के हाऊसिंग लोन फ्रॉड रुक गए थे। 

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