रेट कट पर सरकार से टकरा सकते हैं रघुराम राजन

Saturday, Mar 07, 2015 - 12:28 PM (IST)

नई दिल्लीः महंगाई के अनुसार मौद्रिक नीति की दिशा तय करने को लेकर भले ही सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच आपसी सहमति बन गई हो लेकिन अहम निर्णय किस तरह लिए जाएं, इसको लेकर दोनों के बीच टकराव की संभावना खारिज नहीं की जा सकता है। दोनों पक्ष मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की स्थापना का समर्थन कर रहे हैं। इस कमिटी का प्रस्ताव औपचारिक रूप से 2014 में उस समय पेश किया गया था जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी और रघुराम राजन को आर.बी.आई. का गवर्नर बने हुए सिर्फ 4 महीना हुआ था।

मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी के गठन को लेकर दोनों पक्षों के बीच कुछ मामलों के लेकर सहमति नहीं है। आर.बी.आई. द्वारा गठित एक पैनल ने इसे 5 सदस्यी कमिटी बनाने का प्रस्ताव रखा जिसमें आर.बी.आई. के गवर्नर, डेप्युटी गवर्नर, आर.बी.आई. के ऐग्जिक्युटिव डायरेक्टर और केंद्रीय बैंक द्वारा चुने गए दो बाहरी सदस्यों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। इसके विपरित सरकार द्वारा गठित एक आयोग ने इस कमिटी में 7 सदस्यों को रखने का सुझाव दिया है।

आयोग की अनुशंसा के मुताबिक इस कमिटी में आर.बी.आई. के गवर्नर, आर.बी.आई. बोर्ड के एक ऐग्जिक्युटिव सदस्य, सरकार द्वारा चुने गए पांच बाहरी सदस्य जिनमें से दो का चयन आर.बी.आई. के परामर्श से किया जाएगा। इसके अलावा सरकार पॉलिसी को लेकर होने वाली मीटिंगों में एक प्रतिनिधि भेजेगी जिसके पास वीटो पावर नहीं होगा। हालांकि आयोग ने अनुशंसा की है कि कमिटी के निर्णय पर आर.बी.आई. के गवर्नर को वीटो पावर होगा लेकिन इसके बाद सार्वजनिक बयान देना होगा।

वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया, ''''आर.बी.आई. और वित्त मंत्रालय के बीच टकराव की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है।'''' वर्तमान में बड़े मामलों के लेकर दोनों पक्षों के बीच कुछ सौहार्द दिख रहा है। बुधवार को आर.बी.आई. के ब्याज दरों में कटौती के कदम का मंत्रियों ने स्वागत किया, जिसके बाद राजन ने कुछ दिनों पहले वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए आम बजट 2015-16 का कुछ हद तक समर्थन किया। राजन ने कहा, ''''यह अच्छी शुरूआत है और हम अपनी निगाहें बनाए रखेंगे।''''

जहां तक दरों में कटौती का सवाल है तो अब राजन के लिए माहौल अनुरूप होता जा रहा है। महंगाई दर में गिरावट आ रही है, 2013 की तुलना में चालू खाता घाटा भी संतुलित है, रुपए में स्थिरता आ गई है और अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ रही है। मॉनिटरी पॉलिसी कमिटियों की बात की जाए तो यह दुनिया के बड़े केंद्रीय बैंकों के बीच एक तरह का नियम बन गई है लेकिन भारत में यह कमिटी किस तरह काम करेगी, इसको लेकर अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि अधिकारियों ने प्रस्तावों पर प्राथमिक चरण की चर्चाएं की हैं।

अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय बैंक के उद्देश्य में किसी प्रकार के बदलाव के लिए सरकार को संसद के माध्यम से आर.बी.आई. ऐक्ट में संशोधन पारित करना होगा। केंद्रीय बैंक के फैसले में किसी प्रकार के हस्तक्षेप से निवेशकों में गलत संदेश जाएगा।

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