बजट में लोगों की जेब पर बोझ नहीं डालेंगे जेतली

punjabkesari.in Friday, Feb 20, 2015 - 11:15 AM (IST)

नई दिल्लीः वित्त मंत्री अरुण जेतली 28 फरवरी को आम बजट पेश करते हुए डायरेक्ट टैक्स की दरों में बड़े बदलाव का प्रस्ताव कर सकते हैं। वह एक इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली माहौल बनाने और कन्जयूमर सेंटिमेंट को मजबूत करने के लिए ऐसे कदम उठा सकते हैं।

पर्सनल इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स के ढांचे में अच्छा-खासा बदलाव हो सकता है। इससे लोगों और कंपनियों के हाथ में ज्यादा रकम बच सकती है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में विचार-विमर्श हो रहा है। उन्होंने कहा, ''''इसका मकसद इन्वेस्टमेंट में तेजी लाना और बेवजह की बाधाएं हटाना है।''''

पर्सनल इनकम के मामले में टैक्स स्लैब बदले जा सकते हैं। बचत और हाउसिंग में इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देने के लिए इनसेंटिव्स दिए जा सकते हैं। अपने पहले बजट में एनडीए सरकार ने एग्जेम्प्शन लिमिट को 50,000 रुपए बढ़ा दिया था। हालांकि तब टैक्स स्लैब्स को जस का तस रहने दिया गया था। इन्वेस्टमेंट्स पर टैक्स छूट देने वाले सेक्शन 80सी और होम लोन इंटरेस्ट पेमेंट्स की लिमिट भी 50-50 हजार रुपए बढ़ाई गई थी। टैक्स रेवेन्यू की रफ्तार सुस्त होने और डिवेलपमेंट के लिए ज्यादा फंड रखने की जरूरत के बावजूद सरकार कन्जयूमर सेंटिमेंट मजबूत करना चाहती है, जिसे फिलहाल इकॉनमी को रिवाइव करने का क्विक फॉर्मूला बताया जा रहा है।

आर.बी.आई. सहित फाइनैंशल सेक्टर के अन्य रेग्युलेटर्स ने भी हाउसहोल्ड सेविंग्स के लिए इनसेंटिव्स बढ़ाने की वकालत की है। ताजा आंकड़ों से पता चल रहा है कि 2013-14 में सेविंग्स रेट ग्रॉस नैशनल डिस्पोजेबल इनकम के 30 फीसदी पर आ गई, जो इससे पहले वाले साल में 33 फीसदी पर थी। उधर, इनडायरेक्ट टैक्स रिफॉर्म्स के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं है। गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स 1 अप्रैल 2016 से लागू करने की तैयारी है।

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि टैक्स के कुछ जटिल प्रावधानों के मामले में स्पष्टता लाने पर फोकस होगा क्योंकि पिक्चर क्लीयर न होने से इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन के रूप में देश की इमेज को झटका लगता है।

इंडस्ट्री की नजर भी इन्वेस्टमेंट साइकल को रफ्तार देने की जेटली की कोशिशों पर है। कंपनियां चाहती हैं कि टैक्स के नियमों में स्थिरता रहे और ये पिछली तारीख से लागू न किए जाएं।

मिनिमम ऑल्टरनेट टैक्स के फ्रेमवर्क में स्पष्टता लाने, डिस्प्यूट सेटलमेंट के मेकनिज्म को बेहतर बनाने, रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्टों के मामले में टैक्स की तस्वीर साफ करने के अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग पर असर डाल रहे प्रावधानों को दुरुस्त करने पर भी फोकस रहेगा। मैट का रेट फिलहाल 18.5 फीसदी है। इसे घटाया जा सकता है। अगर सभी कंपनियों के लिए ऐसा नहीं किया गया तो कम से कम स्पेशल इकनॉमिक जोन के मामले में ऐसा हो सकता है।

टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि एशिया में सबसे ज्यादा टैक्स भारत में लगते हैं और कस्टम्स ड्यूटी की तर्ज पर टैक्स स्ट्रक्चर को बदलने की काफी गुंजाइश है। पीडब्ल्यूसी के लीडर (डायरेक्ट टैक्स प्रैक्टिस) राहुल गर्ग ने कहा, ''जटिल टैक्स पॉलिसीज को सरल बनाना चाहिए।''


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