बासमती पर भारी भैंस मांस का निर्यात

Monday, Jan 12, 2015 - 11:17 AM (IST)

नई दिल्लीः देश के कृषि निर्यात में सबसे ज्यादा आमदनी वाली जिंस के रूप में बासमती चावल की जगह भैंस के मांस ने ले ली है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले 7 महीनों यानी अप्रैल-अक्तूबर 2014 के दौरान भैंस के मांस के निर्यात की कीमत 16,083 करोड़ रुपए (266 करोड़ डॉलर) रही, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 16 फीसदी अधिक है। वहीं इस अवधि में बासमती चावल का निर्यात 15,789 करोड़ रुपए (262.1 करोड़ डॉलर) रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि से 2 फीसदी अधिक है।
 
मात्रा के लिहाज से चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्तूबर तक की अवधि में भैंस के मांस का निर्यात 8,17,844 टन रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में करीब 14 फीसदी ज्यादा है। भैंस के मांस के निर्यात में बढ़ौतरी में 2 कारकों का अहम योगदान रहा है। 
 
पहला, बूचडख़ानों के लिए कुछ मानक शर्तें तय की गई हैं, जिससे भारतीय भैंस के मांस की विदेशों में स्वीकार्यता बढ़ी है। दूसरा, चीन में भैंस के मांस की मांग बढ़ी है। चीन भारतीय भैंस के आंतरिक अंगों (लीवर, जीभ, कलेजा, पूंछ आदि) का सबसे बड़ा और एकमात्र ग्राहक है। भैंस के इन अंगों का भारत में उपभोग नहीं होता है।
 
करीब 45 फीसदी भैंस के मांस का निर्यात चीन को होता है। यह वियतनाम के जरिए होता है, क्योंकि चीन ने भारत से भैंस के मांस के आयात को अभी मंजूरी नहीं दी है। वर्ष 2013 में भारत और चीन ने भैंस के मांस के सीधे निर्यात के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इस करार को अभी क्रियान्वित नहीं किया गया है। वर्ष 2014 में अप्रैल से अक्तूबर तक वियतनाम को भैंस के मांस का निर्यात 7,152 करोड़ रुपए (118.1 करोड़ डॉलर) रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि से करीब 37 फीसदी अधिक है।
 
निर्यात में सुरक्षा मानकों को प्रोत्साहित करने के लिए विदेश व्यापार महानिदेशालय ने वर्ष 2011 में एक अधिसूचना जारी की थी। इसके मुताबिक जून 2012 तक मांस और मांस उत्पादों का निर्यात एपीडा से पंजीकृत बूचडख़ानों या समन्वित बूचडख़ानों के जरिए होना चाहिए। 
जूही एंटरप्राइजेज के निदेशक मुनाज्जा शेख ने कहा, ''इससे पहले निर्यात बिना उचित लेबल और निरीक्षण के होता था। डी.जी.एफ.टी. के फैसले से पश्चिम एशिया के देशों से मांग बढ़ी है।'' पहले से इतर अब चीनी खरीदार ऑर्डर देने के लिए भारत आ रहे हैं।  शेख ने कहा कि पहले भारतीय विक्रेता चीनी व्यापारिक समुदाय द्वारा आयोजित व्यापार मेलों में सौदे करते थे, लेकिन ये मेले साल में एक बार होते थे। 
 
Advertising