विदेशी बाजारों में मजबूती के बीच बीते सप्ताह लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहन कीमतों में सुधार का रुख

Sunday, Sep 03, 2023 - 02:36 PM (IST)

नई दिल्लीः विदेशों में खाद्य तेलों के दाम मजबूत होने के बीच बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहनों के थोक भाव में मजबूती का रुख देखने को मिला। बाजार सूत्रों ने कहा कि अगस्त माह के दौरान विदेशों में खाद्य तेलों के दाम लगभग तीन प्रतिशत मजबूत हुए हैं, क्योंकि मलेशिया और अमेरिका में मौसम की स्थिति को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है और इस संबंध में आगामी मौसम की रिपोर्ट आने पर ही स्थिति साफ होगी। 

उन्होंने कहा कि प्रमुख तेल संगठन इंदौर स्थित ‘सोपा' ने भी सोयाबीन उत्पादक राज्यों में शुष्क मौसम के बीच सोयाबीन की उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका जताई है और कहा है कि सितंबर में होने वाली बरसात उत्पादन की स्थिति को तय करेगी। मौसम विभाग का अनुमान है कि सितंबर के महीने में बरसात बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि सस्ते आयातित तेल की वजह से तेल-तिलहन बाजार की धारणा कमजोर बनी हुई है और देशी तिलहन किसानों की फसल मंडियों में खप नहीं रही है। 

देश की तेल पेराई मिलों को थोक में दाम घटाकर अपने खाद्य तेलों को बेचना पड़ रहा है और उन्हें 4-5 रुपये किलो का नुकसान सहना पड़ रहा है। देश के तिलहन किसानों को भी सरसों और सूरजमुखी तिलहन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम दाम मिल रहे हैं। उपभोक्ताओं को भी लगभग 100 रुपए लीटर के थोक भाव वाला सरसों तेल लगभग 150 रुपए में मिल रहा है। इसी प्रकार बंदरगाह पर 76 रुपए लीटर वाला आयातित सूरजमुखी तेल उपभोक्ताओं को 140-145 रुपए लीटर मिल रहा है जबकि इस तेल का दाम लगभग 105 रुपए लीटर बैठना चाहिए। तो ऐसी स्थिति में देश में खाद्य तेलों के सस्ते आयात का क्या मायने रह जाता है? 

सूत्रों ने कहा कि लगभग 10 लाख टन सोयाबीन की पेराई के बाद करीब 1,75,000 टन सोयाबीन तेल की महीने में आपूर्ति संभव होती है। मौसम की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सोयाबीन अगर उपलब्ध नहीं हुआ, तो सोयाबीन तेल का उत्पादन भी कम होगा। देश में मूंगफली और बिनौला की उपलब्धता पहले ही नगण्य रह गयी है। ऐसे में सोयाबीन, मूंगफली और बिनौला की कमी को सूरजमुखी तेल पूरा कर रहा था। 

उल्लेखनीय है कि सूरजमुखी तेल की कमी को सोयाबीन पूरा नहीं कर सकता। इसलिए त्योहारों के दौरान देश में ‘सॉफ्ट आयल' (नरम तेल) की आपूर्ति और जुलाई-अगस्त में आयात के लिए हुए लदान का विवरण कम से कम तेल संगठनों को सरकार के सामने रखना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि कुल मिलाकर आगे जाकर देश के तेल-तिलहन क्षेत्र का भविष्य अच्छा नजर आता है और अगर यह आशंका अगले चार-पांच साल में सही साबित हुई तो उसकी जवाबदेही कौन लेगा यह स्पष्ट नहीं है। 
 

jyoti choudhary

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