घाटे का रिकार्डः 3 माह में सरकारी बैंकों के डूबे 50,000 करोड़ रुपए!

Friday, May 25, 2018 - 09:43 AM (IST)

मुंबईः सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का घाटा (पी.एस.बी.) जनवरी-मार्च 2018 तिमाही यानी कि 3 माह में 50,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा छूने जा रहा है। यह अपने आप में रिकार्ड और जनवरी-मार्च 2017 में हुए 19,000 करोड़ रुपए के घाटे के दोगुने से भी ज्यादा है। बैंकों को यह भारी-भरकम घाटा रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया (आर.बी.आई.) की सख्ती की वजह से हुआ है। दरअसल आर.बी.आई. ने सभी लोन-रिस्ट्रक्चरिंग स्कीम को खत्म कर दिया। इस वजह से सरकार पर पूर्वनिर्धारित रकम से ज्यादा पैसे बैंकों में डालने का दबाव बढ़ गया है।

15 बैंकों के हुए परिणाम घोषित
जिन 15 सरकारी बैंकों ने पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के परिणाम घोषित कर दिए हैं, उनमें इंडियन बैंक एवं विजया बैंक को छोड़कर सभी 13 नुक्सान में रहे हैं। इन सभी 15 बैंकों की कंसॉलिडेटिड अॄनग्स (समेकित आमदनी) में 44,241 करोड़ रुपए का घाटा सामने आया है। बाकी 6 बैंकों के रिजल्ट आने पर घाटे का यह आंकड़ा बढ़कर 50,000 करोड़ रुपए से पार करने की आशंका है। अभी आई.डी.बी.आई. बैंक, बैंक ऑफ  इंडिया, बैंक ऑफ  बड़ौदा, यूनाइटेड बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक आदि के रिजल्ट आने बाकी हैं। इनमें सिर्फ  बैंक ऑफ बड़ौदा ने अक्तूबर-दिसंबर 2017 तिमाही में मुनाफा कमाया था।

एन.पी.ए. का अनुपात बढ़ा
रेटिंग एजैंसी इक्रा के सीनियर वाइस प्रैजीडैंट और फाइनैंशियल सैक्टर रेटिंग्स के ग्रुप हैड कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा कि कैपिटलाइजेशन के बावजूद रिजल्ट घोषित करने वाले 15 में 5 बैंकों की टियर-1 कैपिटल पोजिशन 7 प्रतिशत की न्यूनतम अनिवार्य सीमा के आसपास है। बैंकों को हुए घाटे की प्रमुख वजह बैड लोन के लिए प्रोविजनिंग करना है। केयर के प्रमुख अर्थशास्त्री मदन सबणवीस के मुताबिक वित्त वर्ष 2018 की तीन तिमाहियों में कुल लोन में एन.पी.ए. का अनुपात 11.12 प्रतिशत पर स्थिर था जो चौथी तिमाही में बढ़कर 13.41 प्रतिशत पर पहुंच गया।
 

Supreet Kaur

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