संकट में 48,000 करोड़ की नवीकरणीय परियोजनाएं

Tuesday, Aug 29, 2017 - 11:22 AM (IST)

नई दिल्ली: नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लिए जोर-शोर से जारी नीलामी प्रक्रिया का इस क्षेत्र पर बुरा असर पड़ रहा है क्योंकि अधिकतर वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) हाल के वर्षों में ऊंची टैरिफ दरों पर हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौतों (पी.पी.ए.) के लिए दोबारा मोलभाव करके कम दर पर नए सिरे से समझौता करना चाहती हैं।

क्रिसिल की ताजा शोध रिपोर्ट के मुताबिक उच्च टैरिफ दरों से सौर और पवन क्षेत्र की लगभग 48 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर संकट के बादल मंडरा रहे है। इनमें सौर ऊर्जा की सात गीगावाट की वे परियोजनाएं शामिल हैं, जिनकी निविदा वित्त वर्ष 2015-16 में 5 से 8 रुपए प्रति यूनिट की दर से दी गई थी। इसके अलावा वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाही के बीच आवंटित पवन ऊर्जा क्षेत्र की दो से तीन गीगावाट  की परियोजनायें हैं। 

क्या है मुख्य वजह?
अधिकतर डिस्कॉम डिवैल्पर्स को छूट देने के लिए बाध्य करने के वास्ते भुगतान में देर और ग्रिड कर्टेलमेंट जैसे कदम उठाते हैं। मई 2017 में सौर ऊर्जा की नीलामी टैरिफ दर 2.44 रुपए प्रति यूनिट बोली गई जबकि मार्च 2016 में 4.43 रुपए प्रति यूनिट की बोली लगी थी। पवन ऊर्जा की नीलामी टैरिफ भी फरवरी 2017 में 3.46 रुपए प्रति यूनिट बोली गयी जो टैरिफ की न्यूनतम दर 4.16 रुपए प्रति यूनिट से भी 17 प्रतिशत कम है।

इसी वजह से कई डिस्कॉम कंपनियों ने करीब 3 मैगावाट के लिए किए गए पी.पी.ए. समझौतों या लेटर ऑफ इंटेंट को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। इसमें आंध्र प्रदेश की 1.1 गीगावाट क्षमता, गुजरात की 250 मेगावाट क्षमता, कर्नाटक तथा तमिलनाडु की 500-500 मैगावाट क्षमता वाली परियोजनाओं के पी.पी.ए. समझौते किए गए। ये समझौते कुछ वर्ष पूर्व मौजूदा नीलामी टैरिफ से कहीं अधिक दर पर किए गए थे। 

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