‘कौमार्य परीक्षण’ विरुद्ध एकजुट हुए कंजरभाट समुदाय के नौजवान

punjabkesari.in Tuesday, Dec 26, 2017 - 03:21 AM (IST)

कंजरभाट समुदाय के 35 युवाओं ने मिल कर उस प्राचीन कुप्रथा के विरुद्ध लडऩे का फैसला लिया है जिसके अंतर्गत जाति पंचायत के युगों पुराने नियम नई दुल्हन को सुहागरात से पहले कौमार्य परीक्षण में से गुजरने को मजबूर करते हैं। यदि वह इस परीक्षण में सफल न हो पाए तो उसे  अपने समुदाय में अपमान और तिरस्कार तो झेलना ही पड़ता है, ऊपर से उसकी शादी भी रद्द हो जाती है। 

टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसिज (टिस्स) के 28 वर्षीय छात्र विवेक तमईचाइकार बहुत दिलेरी से इस आंदोलन को दिशा दे रहे हैं। यह आंदोलन अब व्हाट्सएप जैसे सामाजिक मंचों तक फैल चुका है और कंजरभाट समुदाय के अनेक युवक इसके समर्थन में उतर आए हैं। इस  समूह में पुणे के 21 वर्षीय सिद्धांत तमईचाइकार जैसे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने 24 दिसम्बर को पुणे में एक विशाल मीटिंग का आयोजन केवल इसलिए किया कि भविष्य की दिशा तय की जा सके। रैगुलेटरी गवर्नैंस में स्नातकोत्तर अध्ययन कर रहे विवेक प्रादेशिक महिला विकास निगम (एस.डब्ल्यू. डी.सी.) की सहायता से महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर अपना थीसिस तैयार कर रहे हैं। उनका मानना है कि उनका और उनकी भावी पत्नी के प्राइवेसी अधिकार का जाति पंचायत की सामंतवादी प्रथा की बलिवेदी पर उल्लंघन नहीं होना चाहिए। 

विवेक की मंगनी हो चुकी है और वह शादी की तैयारी कर रहा है। उसने बताया, ‘‘दीवाली के मौके पर मुझे अपने परिजनों के साथ झगड़ा करके उन्हें इस बात के लिए राजी करना पड़ा कि दुल्हनों का कौमार्य परीक्षण किसी अत्याचार से कम नहीं और यह हमारी प्राइवेसी का हनन है। मैंने अपने परिजनों को दो टूक शब्दों में कह दिया कि मैं इस परम्परा का अनुसरण नहीं करूंगा। खुद के लिए आवाज बुलंद करने के बाद मैंने यह सोचना शुरू कर दिया कि मुझे दूसरों के लिए भी आवाज उठानी होगी। तब मैंने अपने समुदाय के युवाओं से चर्चा शुरू कर दी। अधिकतर युवा इस कौमार्य परीक्षण परम्परा के विरुद्ध हैं लेकिन सामाजिक दबाव इतना अधिक है कि कोई भी जाति पंचायत के विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं करता। 

सिद्धांत भी विवेक की तरह कौमार्य परीक्षण के विरुद्ध लड़ रहे हैं। उनका कहना है, ‘‘मैं यह महसूस करता हूं कि यह परीक्षण बेशक क्रूरतापूर्ण नहीं तो भी नव दम्पति के प्राइवेसी अधिकार का हनन अवश्य है। यदि हम इसके विरुद्ध आवाज बुलंद नहीं करते तो यह परम्परा कभी खत्म नहीं होगी। ’’इस समूह ने अन्य युवाओं को भी आगे आने और अपने अधिकारों के पक्ष में जुटने का आह्वान किया है क्योंकि ये अधिकार उन्हें संविधान द्वारा दिए गए हैं। 

गत जून में मुम्बई मिरर पत्रिका ने कंजरभाट समुदाय में प्रचलित इस कुप्रथा का प्रमुखता से खुलासा किया था। इसने एक मामले का उदाहरण दिया था जिसमें अहमदनगर जिले  में इस समुदाय की जाति पंचायत ने  पुलिस में भर्ती होने का सपना देख रही एक 20 वर्षीय युवती की शादी केवल इसलिए रद्द कर दी क्योंकि वह कौमार्य परीक्षण में पास नहीं हो पाई थी। बाद में उसने अपने पति के पास लौटने का फैसला कर लिया और पुलिस में शिकायत नहीं की क्योंकि उसे डर था कि ऐसा कदम उठाने से  उसके भाई-बहनों की शादियां खटाई में पड़ सकती हैं या फिर बिरादरी द्वारा उनके परिवार का बहिष्कार किया जा सकता है।-डी. अल्का


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