चुप-चुप बैठे हो जरूर कोई बात है

Tuesday, Feb 14, 2023 - 04:24 AM (IST)

जब से राहुल गांधी सहित समूचे विपक्ष ने अडानी के मामले को संसद में उठाया है, शेयर मार्कीट का यह भूचाल अब देश की राजनीति में कम्पन पैदा कर रहा है। प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध ली है। दोनों सदनों के सभापति गौतम अडानी और नरेंद्र मोदी का नाम एक साथ लेने वाले को भी संसद की कार्रवाई से निकालने पर अड़े हैं। सरकार संयुक्त संसदीय समिति से जांच करवाने को भी तैयार नहीं है। इस अजीब प्रतिक्रिया से ‘चुप-चुप बैठे हो जरूर कोई बात है’ वाला संदेश जाता है। लोग सोचते हैं कि आखिर ऐसा क्या मामला है कि संसद में उसकी बात ही न हो सके? आखिर ऐसा कौन है जिसका नाम लेने से प्रधानमंत्री सकुचा रहे हैं? हो न हो, दाल में कुछ काला है। 

उद्योगपति गौतम अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते छुपे नहीं हैं। वर्ष 2000 में मोदी जी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले अडानी की कुल सम्पत्ति  3300 करोड़ रुपए थी। मोदी जी के मुख्यमंत्री काल में वर्ष 2014 तक यह  पांच गुना बढ़कर 16,780 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन असली खेल उसके बाद शुरू होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले पांच साल में गौतम अडानी की कुल दौलत पांच गुना बढ़ गई। उसके बाद के अढ़ाई साल में तो मानो जादू हो गया। लॉकडाऊन शुरू होने के समय मार्च 2020 में उनकी संपत्ति 66000 करोड़ रुपए थी। लेकिन जिन दो वर्षों में देश के 17 प्रतिशत परिवारों की आय और सम्पत्ति गिरी उसी समयावधि में गौतम अडानी की दौलत दस गुना बढ़ कर मार्च 2022 में 6.90 लाख करोड़ रुपए हो गई और अगले 6 महीने में एक और छलांग लगाकर 12 लाख करोड़ पार कर गई!

जाहिर है ऐसी जादुई बढ़ौतरी को लोग अडानी और मोदी की दोस्ती से जोड़ेंगे। मोदी जी और अडानी की तस्वीरों को राहुल गांधी ने लोकसभा में भी दिखाया। बेशक प्रधानमंत्री चुने जाने पर अडानी के हवाई जहाज में यात्रा करना और प्रधानमंत्री के विमान में गौतम अडानी का बैठना एक गाढ़ी दोस्ती का इशारा करता है लेकिन टी.वी. पर भाजपा के प्रवक्ता मासूमियत से ऐसी किसी सांठगांठ का प्रमाण मांगते हैं। प्रमाण के लिए बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है। पहला प्रमाण है शेयर बाजार में अडानी समूह की गड़बडिय़ों पर सरकारी संस्थाओं का आंखें मूंद कर बैठे रहना। सच यह है कि अमरीकी फर्म हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूह के बारे में किए गए खुलासों में कुछ भी नया नहीं था। 

शेयर बाजार का नियमन करने वाली संस्था सेबी को पूरी जानकारी थी कि अडानी कम्पनियों में मॉरिशस के कुछ गुमनाम फंड बहुत पैसा लगा रहे हैं। ‘पनामा पेपर’ के जरिए इसका खुलासा हो चुका था कि ये फंड गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी से जुड़े हैं। सवाल है कि यह सब जानते हुए भी सेबी ने पूरे शेयर बाजार पर असर डालने वाले इस मामले की जांच क्यों नहीं की? क्या उसे सरकार से चुप रहने का इशारा हुआ था? अडानी समूह की कमजोरी को जानते हुए भी सरकारी फंड ने अडानी कम्पनियों में भारी निवेश किया और सरकारी बैंकों ने उन्हें खुले हाथ से लोन दिए। 

पिछले 10 साल से अडानी के मुनाफे की तुलना में उसका कर्ज कई गुना ज्यादा है। यह देखकर म्यूचुअल फंड ने अडानी के शेयर से दूरी बनाए रखी। लेकिन एल.आई.सी. ने अडानी के शेयर में हजारों करोड़ रुपए का निवेश किया। अडानी के शेयर डूबने से देश के आम आदमी की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ रुपए भस्म हो गए। स्टेट बैंक और पंजाब नैशनल बैंक ने अडानी को 34,000 करोड़ रुपए का लोन दिया जिस पर अब खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। सवाल है कि देश की सम्पत्ति से खिलवाड़ की इजाजत किसने दी? 

ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण की भी कमी नहीं है जहां मोदी सरकार ने ऐसी नीतियां बनाईं जो सीधे अडानी समूह को फायदा पहुंचाती थीं। इधर अडानी ने ऑस्ट्रेलिया से भारत में कोयला आयात करना शुरू किया, उधर सरकार ने कोयला आयात का शुल्क खत्म कर दिया। अडानी ने ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की योजना घोषित की तो उसके तुरंत बाद सरकार ने ग्रीन मिशन के तहत उसे सबसिडी देने की योजना बना दी। इधर अडानी ने अनाज स्टोर करने के लिए साइलो बनाने शुरू किए उधर सरकार ने जमाखोरी के कानून में ढील देने का किसान विरोधी कानून संशोधित कर दिया। देश के अधिकांश बंदरगाहों और एयरपोर्ट पर अडानी का नियंत्रण हो सके इसके लिए सरकारी नियम बदले गए। वित्त मंत्रालय और नीति आयोग की आपत्तियों को दरकिनार किया गया। 

यह पार्टनरशिप केवल भारत तक सीमित नहीं थी। देखने में आया कि जहां-जहां प्रधानमंत्री मोदी विदेश गए वहां अडानी समूह को बड़े ठेके मिले। ऑस्ट्रेलिया, इसराईल, बंगलादेश और श्रीलंका में अडानी समूह ने अपने पांव फैलाए। श्रीलंका में तो इसका खुलासा हो गया जब वहां संसद के सामने श्रीलंका के बिजली बोर्ड के अध्यक्ष ने मान लिया कि उन्हें राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा था कि उन पर बिजली का ठेका अडानी को देने का दबाव खुद प्रधानमंत्री मोदी जी ने बनाया था। रा

जनीति और बिजनैस की जुगलबंदी का और प्रमाण क्या चाहिए? भारत में यह गठबंधन नया नहीं है। लेकिन अडानी और मोदी जी का यह रिश्ता अभूतपूर्व है। मेरे मित्र और किसान नेता डा. सुनीलम इसे विकास का ‘मोदानी मॉडल’ कहते हैं, यानी मोदी+ अडानी का गठबंधन मॉडल। हमें इसकी एक झलक तो मिली है कि मोदी जी ने अडानी के लिए क्या किया, लेकिन अडानी ने मोदी जी के लिए क्या किया इसकी तो हम कल्पना ही कर सकते हैं। क्या भाजपा की सफलता के पीछे अडानी का आशीर्वाद है?-योगेन्द्र यादव

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