योग एक ईश्वरीय वरदान : योग को जीवन का अटूट अंग बनाने की जरूरत

Thursday, Jun 21, 2018 - 03:24 AM (IST)

भारतीय ऋषि-मुनियों ने अध्यात्म चिंतन में सबसे ऊंचे शिखर छुए थे परन्तु शरीर के संबंध में भी पूरा विचार किया था-‘शरीर माध्यम खलू धर्मसाधनम’-यह भारतीय चिंतन का एक प्रमुख आधार है। धर्म की साधना के लिए भी शरीर आवश्यक है। इसी आधार पर हजारों वर्ष पहले भारत में महर्षि पतंजलि ने विश्व को योग का वरदान प्रदान किया। 

भारत में योग कुछ आश्रमों तथा संस्थाओं तक सीमित रहा। स्वामी रामदेव जी ने पहली बार योग को जन-जन तक पहुंचाने का अत्यंत प्रशंसनीय और ऐतिहासिक काम किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र संघ द्वारा योग को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्रदान करवाई। ये सब भारत के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। 21 जून को पूरे विश्व में योग दिवस मनाया जाता है। आज पेइचिंग से लेकर पैरिस तक सब योग कर रहे हैं। 

योग के शारीरिक और आध्यात्मिक 2 पक्ष हैं। विभिन्न आसनों द्वारा पूरे शरीर का व्यायाम करके शरीर स्वस्थ रहता है। प्राणायाम द्वारा मन की शुद्धि होती है और ध्यान द्वारा जब सब ओर से मन का केन्द्रीयकरण होता है तो शरीर और मन का तनाव समाप्त होता है। तनाव ही तन और मन की सभी बीमारियों का मुख्य कारण है। योग का महत्वपूर्ण पक्ष आध्यात्मिक है। योग मुझे उससे मिलाता है जो मैं हूं। मैं केवल शरीर नहीं-केवल मन नहीं, मैं इस शरीर और मन से भी भीतर वह हूं जो इस शरीर से पहले भी था और इस शरीर के समाप्त होने के बाद भी रहेगा। मैं इस ब्रह्मांड का संचालन करने वाली उस शाश्वत परम सत्ता का अंश हूं। मैं आत्मा हूं, केवल यह शरीर नहीं-यह अनुभूति मनुष्य को एक बड़े  व्यापक धरातल पर खड़ा करती है। यही भारतीय आध्यात्मिक चिंतन का कर्म है। हम  सब उस एक परम सत्ता का अंश हैं इसीलिए कहा था-‘वसुधैव कटुम्बकम’। सारा विश्व एक परिवार है। 

वसुधैव कटुम्बकम,स्वामी , स्वामी विवेकानंद एक बार बीमार हुए। एक शिष्य ने पत्र में चिंता प्रकट की और लिखा, ‘‘यदि आपको कुछ हो गया तो हम कहां जाएंगे।’’ स्वामी जी ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे कभी कुछ हुआ नहीं और न ही कभी कुछ होगा। यह बीमारी शरीर को है, मुझे नहीं है।’’ एक विदेशी शिष्य ने चिंता में भावुक होकर स्वामी जी को एक कविता लिखी। स्वामी जी ने उसे कविता में ही उत्तर दिया। उस कविता का अनुवाद हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्री निराला ने किया। कुछ पंक्तियां मैं गुनगुनाता रहता हूं। आप भी गुनगुनाया करिए : 

बहुत पहले-बहुत पहले जबकि रवि शशि और उड्गन भी नहीं थे इस धरा का भी न था अस्तित्व कोई और जब यह समय भी उपजा नहीं था मैं सदा था, आज भी हूं और आगे भी रहूंगा अर्थात मैं तब भी था जब प्रलय के बाद अभी सृष्टि प्रारंभ नहीं हुई थी। यही भारतीय अध्यात्म चिंतन का सारांश है जिसे पढ़ कर जर्मन के प्रसिद्ध विद्वान प्रो. मैक्समूलर ने कहा था, ‘‘अध्यात्म की इतनी ऊंचाइयों पर भारतीय ऋषि ही सांस ले सकते थे, कोई और पहुंचता तो नसें फट गई होतीं।’’ स्वामी विवेकानंद जी की प्रो. मैक्समूलर से भेंट भी हुई थी। 

योग में जब ध्यान किया जाता है तो सबसे पहले चारों ओर से मन को हटा कर दोनों आंखों के बीच के बिन्दु पर लगाया जाता है। इस अभ्यास के बाद धीरे-धीरे साक्षी भाव द्वारा मनुष्य खुद को अलग करके अपने शरीर को देखता है। धीरे-धीर यह एकाग्रता इतनी तीव्र हो जाती है कि अ-मन की स्थिति आती है और जितना समय मन नहीं होता वह समय मनुष्य के आत्म मिलन का होता है। ध्यान की यह अवस्था जितनी अधिक होती है उतना ही तन और मन का तनाव कम होता है। तनाव जितना कम होता है शरीर और मन की बीमारियां उतनी ही दूर होती जाती हैं। इसी ध्यान की स्थिति के बाद समाधि की स्थिति आती है। आज का स्वास्थ्य विज्ञान यह स्वीकार करता है कि मनुष्य के शरीर में करोड़ों जीवाणु होते हैं। समय पाकर वे सुस्त होते हैं। फिर निष्क्रिय होते हैं और फिर बीमार होते हैं। शरीर के जिस अंग में जितने जीवाणु अधिक निष्क्रिय हो जाते हैं वहीं बीमारी शुरू होती है। प्राणायाम की विभिन्न क्रियाओं द्वारा शरीर में आक्सीजन का प्रवेश होता है। शरीर में जहां-जहां जितनी आक्सीजन पहुंचती है उतने ही जीवाणु सक्रिय रहते हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। 

मैं योग के लिए समर्पित हूं। मैं और मेरी धर्मपत्नी प्रात:काल योग, प्राणायाम और ध्यान से ही अपना दिन प्रारंभ करते हैं। हमने विवेकानंद ट्रस्ट द्वारा पिछले 13 वर्षों से पालमपुर में ‘कायाकल्प’ की स्थापना की है। कायाकल्प में भारत ही नहीं, विदेशों से भी लोग आते हैं। अमरीका की एक संस्था प्रतिवर्ष विद्यार्थियों को योग सीखने के लिए भेजती है। भारत सरकार द्वारा आयुष मंत्रालय का विशेष प्रमाण पत्र (NABH) और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का ISO : 9001-2008  कायाकल्प को प्राप्त हुआ है। यह भारत का एक प्रमुख योग केन्द्र बन गया है। 

पूरे विश्व में और भारत में योग का बहुत प्रचार हो रहा है पर मुझे एक चिंता है कि भारत की नई युवा पीढ़ी नई मोबाइल तकनीक और इंटरनैट से इतनी प्रभावित हो रही है कि यह कई जगह चिंता का विषय बन गया है। मोबाइल एक वरदान है परन्तु इसके अत्यधिक प्रयोग से कई जगह यह एक अभिशाप बनता जा रहा है। कुछ युवाओं में यह एक नशा बन रहा है। विश्व संगठन (WHO) ने गेमिंग को एक बीमारी घोषित करके उससे युवाओं को सावधान किया है। नई पीढ़ी कहीं भटक न जाए इसलिए योग की सबसे अधिक आवश्यकता नई पीढ़ी के लिए है। मैं भारत सरकार से यह आग्रह कर रहा हूं कि योग को शिक्षा के प्रारंभ से एक अनिवार्य विषय बनाया जाए। 

योग पढ़ाया जाए, बताया भी जाए और सिखाया भी जाए। यदि योग दैनिक जीवन का हिस्सा बन जाए तो बीमारियां नहीं आएंगी, आएंगी भी तो देर से आएंगी और बहुत कम आएंगी। कुछ वर्षों के बाद देश में स्वास्थ्य बजट आधा रह जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि विश्व में जितने लोग मरते हैं उनमें से आधे बीमारियों से मरते हैं और आधे दवाइयों के अत्यधिक गलत प्रयोग से तथा गलत जीवन शैली से मरते हैं। योग उन सबको बचा सकता है। 
21 जून केवल एक रस्म बन कर न रह जाए। योग हमारे दैनिक जीवन का एक आवश्यक हिस्सा बने तभी योग दिवस मनाना सार्थक होगा।-शांता कुमार

Punjab Kesari

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