येस बैंक : आखिर ‘जवाबदेही’ किसकी

Sunday, Mar 15, 2020 - 02:18 AM (IST)

एक बैंक वर्तमान खातों सेविंग अकाऊंट्स तथा फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में धन प्राप्त करता है तथा उस पर ब्याज देता है (धन की लागत)। डिपाजिट का एक महत्वपूर्ण अंश आर.बी.आई. की शर्तों को पूरा करने के लिए रिजर्व के तौर पर रखा जाता है। बैंक केवल बाकी राशि को ही उधार पर दे सकता है तथा इस पर ब्याज हासिल कर सकता है। हालांकि वह राशि भी छाया में रहती है जिसे सी.आर.ए.आर. या फिर कैपीटल टू रिस्क एसैट्स रेशो कहा जाता है। आमतौर पर इसे कैपीटल एडीक्वेसी रेशो के नाम से जाना जाता है। ब्याज आय तथा फंड की लागत के बीच का फर्क नैट इंट्रस्ट मार्जिन (एन.आई.एम.) होता है और यह बैंक का लाभ होता है क्योंकि एन.आई.एम. हमेशा ही सकारात्मक होता है तभी एक बैंक लाभ कमा सकता है। 

उधार देने वाले बैंक के लिए यह अपेक्षित है कि वह खाताधारक के खाते पर कड़ी निगाह रखे। उसे यह देखना होता है कि क्या ब्याज निरंतर दिया जा रहा है। क्या तय तिथियों पर मूल की किस्तें दोबारा दी जा रही हैं। क्या बैलेंसशीट, लाभ तथा हानि की स्टेटमैंट को आडिट किया गया है तथा क्या यह खाताधारक की सही वित्तीय स्थिति को प्रकट कर रहा है। 

बैंकों के निरीक्षण के बहु स्तर हैं
पहला बैंक की वित्तीय कमेटी है, दूसरा बोर्ड आफ डायरैक्टर्स हैं। तीसरा अंदरूनी आडिटर हैं। चौथा बाहरी समवर्ती आडिटर तथा पांचवां आर.बी.आई. द्वारा मान्य वैधानिक आडिटर है। छठा शेयर होल्डरों की वाॢषक आम बैठक है। सातवां आर.बी.आई. में डिपार्टमैंट आफ बैंकिंग आप्रेशन्स तथा डिवैल्पमैंट (डी.बी.ओ.डी.) और सबसे अंतिम विश्लेषकों की पैनी नजर है। इन सबसे ऊपर अदृश्य मार्कीट है जो कम्पनी द्वारा सूचीबद्ध किए गए बैंक के मामले में सजा या फिर पुरस्कार देती है। इसके अलावा वित्त मंत्रालय में डिपार्टमैंट आफ फाइनैंशियल सर्विसिज (डी.एफ.सी.) भी है जो कुछ आकार के अनुसूचित कमर्शियल बैंकों पर निगाह रखता है जिसमें सभी पब्लिक सैक्टर बैंक भी शामिल हैं। 

बहुपरतों वाले निरीक्षण के बावजूद कुछ ऋण वास्तविक बिजनैस असफलताओं के कारण नॉन परफाॄमग हो जाते हैं। कौन-सा ऋण नान परफाॄमग एसैट की सूची में पड़ता है इसको तय आर.बी.आई. के दिशा-निर्देश करते हैं। एक बार ऋण एन.पी.ए. के तौर पर वर्गीकृत हो गया तो बैंक के पास प्रावधान है कि वह अपने लाभ को खा सके तथा अपनी क्षमताओं को प्रभावित करते हुए लाभांश अथवा कमाई को रिइन्वैस्ट घोषित कर सके। यदि कुल एन.पी.ए. बढ़ रहे हैं तब खतरे की घंटी बजा देनी चाहिए। येस बैंक लगता है कि सभी निरीक्षण के स्तरों से सुरक्षित निकल गया है तथा उसने सभी तिमाही के लाभों की घोषणा कर दी है। उसने जनवरी-मार्च 2019 में अपना पहला तिमाही घाटा घोषित किया, तब भी डी.बी.ओ.डी. तथा डी.एफ.सी. में खतरे की घंटी नहीं बजी। 

ऋण बुक में उछाल 
अप्रैल 2014 से येस बैंक उधार देने की होड़ में था। बैंक की बैलेंसशीट के आधिकारिक आंकड़े यहां पर प्रस्तुत किए गए हैं: 
वर्ष समाप्ति        ऋण बकाया
मार्च 2014        55,633 करोड़  
मार्च 2015        75,550 करोड़
मार्च 2016        98,210 करोड़
मार्च 2107        1,32,263 करोड़ 
मार्च 2018        2,03,534 करोड़ 
मार्च 2019        2.41,499 करोड़
मार्च 2014 से लेकर मार्च 2019 तक उछाल देखने को मिला। लोन बुक 35 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ी। नोटबंदी के तुरंत बाद 2016-17 तथा 2017-18 के 2 वर्षों में भी यह वृद्धि नोटिस की गई। 

कुछ प्रासंगिक सवाल उठते हैं
कौन सी कमेटी या फिर कौन अधिकृत था जिसने मार्च 2014 के बाद नए ऋणों को दिया? क्या आर.बी.आई. तथा सरकार जागरूक नहीं थे कि येस बैंक निरंतर ऋण दे रहा था? क्या आर.बी.आई. या फिर सरकार में ऐसा कोई भी नहीं था जिसने प्रत्येक वर्ष की समाप्ति पर बैंक की बैलेंसशीट को पढ़ा? सी.ई.ओ. बदल जाने के बाद तथा जनवरी 2019 में आर.बी.आई. द्वारा नए सी.ई.ओ. की नियुक्ति के बाद क्यों कुछ नहीं बदला? मई 2019 में क्यों आर.बी.आई. के पूर्व डिप्टी गवर्नर की येस बैंक के बोर्ड में नियुक्ति के बाद कोई बदलाव नहीं हुआ? जनवरी-मार्च 2019 में येस बैंक द्वारा अपने पहले तिमाही घाटे की रिपोर्ट पेश करने के बाद खतरे की घंटी क्यों नहीं बजी? 7 मार्च 2020 में उठाए गए सवालों का जवाब आर.बी.आई. या फिर सरकार देना नहीं चाहती। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार की ऐसी कामना है कि लोगों के दिमाग से येस बैंक की कहानी निकल जाए। मगर सोशल मीडिया के चलते ऐसी कोई संभावना नहीं है। पिं्रट तथा टी.वी. मीडिया के पास ऐसी स्टोरी पर रिपोर्टिंग करने के अलावा कोई चारा नहीं था। 

येस बैंक में व्यक्तियों पर आर.बी.आई. द्वारा जवाबदेही तय करने से पूर्व इस सारे संकट में सी.बी.आई. तथा ई.डी. के शामिल होने से मैं प्रभावित नहीं। अब मुझे डर है कि उस समय तक जवाबदेही तय न होगी जब तक कि जांच पूरी नहीं हो जाती। लोगों तथा संसद को यह मांग करनी होगी कि खाताधारकों (विशेष तौर पर कुछ बड़े आरोपियों) के नामों को प्रकाशित किया जाए तथा व्यक्तियों या फिर कमेटियों जिन्होंने ऋण का अनुमोदन किया उनसे पूछा जाना चाहिए। इसके अलावा हमें यह भी मांग करनी होगी कि ऐसे व्यक्ति जिनकी डी.बी.ओ.डी. तथा डी.एफ.सी. में निरीक्षण की सीधी जिम्मेदारी थी, उनकी पहचान की जाए तथा उन पर जवाबदेही तय की जाए। मुझे शंका है कि हम न केवल बेपरवाह चूक को खोजेंगे बल्कि आपराधिक लापरवाही का भी पता लगाया जा सकेगा। आर.बी.आई. तथा सरकार को एक बचाव योजना को लागू करना होगा जिसका विचित्र तौर पर वर्णन किया जा सकता है। 12 मार्च को घोषित योजना द्वारा एस.बी.आई. 7250 करोड़ अन्यों के साथ मिलकर निवेश करेगी। 10 रुपए प्रति शेयर से कम की कीमत पर येस बैंक की पुनर्गठन पूंजी में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी जब बैंक का कुल मूल्य शायद जीरो होगा और इसके शेयर बेकार हो जाएंगे! बुरे के बाद अच्छा पैसा फैंकने से पहले यहां पर कुछ विकल्प हैं जिनका पता लगाया जाना चाहिए।-पी. चिदम्बरम

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