‘घृणा तथा दया का वर्ष-2020’

punjabkesari.in Thursday, Dec 31, 2020 - 04:23 AM (IST)

कोविड-19 ने हमें आराम क्षेत्र से बाहर निकाल दिया है। हमारे लिए सामाजिक दूरी बनाना आसान नहीं था जैसा कि हमें परामर्श दिया गया था। नवजात शिशु ने जब अपनी आंखें खोलीं तो उसने मुखौटों के साथ मानव को देखा। जब भविष्य में कुछ समय बाद (जैसे कि मुझे उम्मीद है कि निकट भविष्य में) उन्हें जब मानवीय चेहरे देखने को मिलेंगे तो वह डर से सहम जाएंगे। 

मेरी नानी प्लेग के दिनों को याद करती थीं जिसने उनके पति और मेरे नाना को छीन लिया। उनका नाम अभी भी मेरे जहन में है। वह 1897 में महामारी के कारण मृत्यु को प्राप्त हो गईं। तब उनका तीसवां जन्मदिन था। वे पहले गोवा वासी थे जिन्होंने शहर के विल्सन कालेज जो बाम्बे (अब मुम्बई) में स्थापित होने वाला पहला कालेज था, से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री प्राप्त की। विलियम ऐन्सवर्थ की किताब ‘ओल्ड सेंट पाल्ज’ में दर्ज लंदन की महान प्लेग का लेखाजोखा तथा फ्रांसीसी लेखक अल्बर्ट केम्स द्वारा वर्णित ‘अल्जीरिया में प्लेग’ के बारे में पता चलता है जो उस समय के जीवन के बारे में बताते हैं कि तब कैसा अनुभव किया गया। इस तरह आने वाली पीढिय़ां ऐसी अनेकों आपदाओं को झेलेंगी जिसमें परमात्मा का प्रकोप देखा गया। इसके अलावा सामाजिक दूरी तथा मास्क पहनना जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया। 

कोविड-19 ने हमारे परिवारों, पड़ोसियों, दोस्तों, सहयोगियों के जीवन तक को बदल दिया। इसने सभी गतिविधियों पर अंकुश लगा दिया। लाकडाऊन के पहले 6 माह के दौरान मैं और मेरी पत्नी अपनी बेटी के घर तक जाने के लिए एक कदम तक न बाहर निकाल सके। पिछले तीन महीनों के बाद जब हमने अपने फ्लैट में रहना फिर से शुरू किया तब सप्ताह में एक बार ही हम अपनी बेटियों के साथ लंच करने उनके घर में गए। हमारा एन.जी.ओ. जिसका नाम पब्लिक कन्सर्न फार गवर्नैंस ट्रस्ट (पी.सी.जी.टी.) है और यह मुम्बई के कालेजों के इर्द-गिर्द युवाओं के लिए कार्य करता है। उनके नेतृत्व कौशल तथा उन्हें एक अच्छे मानव में ढालने के प्रयास में हमने उन्हें विभिन्न श्रेणियों में कुछ सम्मानीय विशेषज्ञों से मिलवाया। कोविड फूटने से पहले हमने कालेजों में इन विशेषज्ञों के साथ उनकी बातचीत आयोजित करवाई मगर पिछले 8 महीनों में हमने इस बातचीत को डिजिटल प्लेटफार्म में बदल दिया। 

प्लेग की तरह कोविड भी एक यादगार बन कर रह जाएगा। विज्ञान में मानवीय सरलता और उन्नति प्रबल होगी मगर हमारे समाज में घृणा फैल गई है और साम्प्रदायिक विभाजन हो गया है। ये दोनों चीजें 2020 में बड़ी तेजी से आगे बढ़ी हैं। इनका उपयोग जानबूझ कर चुनावों को जीतने के मकसद से नीतियां बनाने के लिए किया जाता है। मुस्लिम एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय नहीं है। वह भारत की जनसंख्या का 15 प्रतिशत है। भाजपा एक अनियंत्रित व्यवस्था में गहराई से 15 प्रतिशत होने का जोखिम उठा सकती है। 

वर्तमान में उन्हें गौमांस खाने वालों को मारना, गाय व्यापारी, सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. जैसे कानून के माध्यमों से उन्हें बाहर रखने की नीतियों पर कार्य किया गया है। इनके माध्यम से उन्हें यह बताया गया कि देश में उनकी जरूरत नहीं। मुस्लिम बहुल राज्य के दर्जे को छोटा कर उसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया है। उन पर पाकिस्तानी आतंकी होने का लेबल लगाया गया। भाजपा शासित प्रदेशों में लव जेहाद जैसे कानूनों का सहारा लिया जा रहा है जो मतभेद उत्पन्न कर रहा है। सरकार की नीतियां भय उत्पन्न कर रही हैं और बहुसंख्या और सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच विभाजन किया जा रहा है। यह कदम इस तरह बढ़ गया है कि यह बारूद कभी भी आग पकड़ सकता है। 

कई बार मुझे आशा की किरणें दिखाई देती हैं जब प्रधानमंत्री ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे बयान देते हैं। उनके अनुसार देश को और अधिक शौचालयों की आवश्यकता है, पूजा स्थानों की नहीं लेकिन अगले ही दिन ङ्क्षलङ्क्षचग के मामले होते हैं। उनके प्रशंसक घृणा भरे भाषण देते हैं जहां गंभीर खतरे उत्पन्न हो जाते हैं। उनके प्रशंसक धमकियां देते हैं, संस्कार के लिए हिन्दुओं को आबंटित स्थान की बात की जाती है। ऐसे भड़काऊ निर्देश प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष एक चुनावी रैली के दौरान खुद ही दिए थे। इस तरह घृणा जंगल की आग की तरह देश के सभी हिस्सों पर फैल चुकी है। 

मुम्बई के झुग्गी-झोंपड़ी वाले इलाके में हिन्दू मुस्लिम विभाजन में एक सेतु बनाने के लिए मोहल्ला कमेटी आंदोलन के माध्यम से हमारे कार्यकत्र्ता प्रयासरत हैं। उनका कहना है कि पिछले 25 वर्षों के दौरान जो उन्होंने हासिल किया वो हाथों से निकल चुका है। मुझे गर्व है कि पूर्व पुलिस कमिशनर शिवानंदन तथा अनामी राय, नितई मेहता तथा गुलाम वाहन जैसे सम्मानीय नागरिक तथा पुलिस अधिकारियों ने किसी को भी भूखा नहीं रहने दिया। मैंने मोदी जी को सुना जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय टैलीविजन पर कहा कि उन्होंने लाकडाऊन के दौरान भूखों को खिलाने के लिए बहुत ज्यादा प्रबंध किया। ऐसा उन्होंने ‘पी.एम. केयर्ज’ के लेबल के तहत एकत्रित कोष के माध्यम से किया मगर मुम्बई में मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 


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