पहलवानों का धरना प्रदर्शन, बदलाव का आह्वान

punjabkesari.in Wednesday, May 10, 2023 - 06:01 AM (IST)

भारत में कुश्ती पहलवान संघर्ष कर रहे हैं। इन पहलवानों में ओलंपिक पदक विजेता भी शामिल हैं। पिछले कई दिनों से पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पूनिया और अन्य दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं और उनका यह धरना कुश्ती संघ के अध्यक्ष भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध है, जिन पर ‘मी टू’ का आरोप लगाया गया है और ये पहलवान उनके त्यागपत्र और गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।

किंतु धरने-प्रदर्शन से काम नहीं चला, फलत: पहलवानों को उच्चतम न्यायालय की शरण में जाना पड़ा और उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद कुश्ती संघ के अध्यक्ष के विरुद्ध पुलिस ने एफ.आई.आर. दर्ज की। पहलवानों ने आगे की कार्रवाई के बारे में निर्णय करने के लिए दो समितियां बनाई हैं। कुश्ती संघ के अध्यक्ष सिंह ने यह कहते हुए त्यागपत्र देने से इंकार कर दिया कि वह निर्दोष हैं और यदि वह ऐसा करते हैं तो उन्हें अपराधी माना जाएगा।

सरकार पहलवानों को आश्वासन दे रही है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच की जाएगी। हालांकि अभी सरकार ने मैरीकॉम समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को सार्वजनिक नहीं किया, जिसे पहलवानों द्वारा जनवरी में दर्ज की गई शिकायतों की जांच के लिए गठित किया गया था। विभिन्न खेलों से जुड़े कुछ खिलाडिय़ों के अलावा तृणमूल की ममता, ‘आप’ के केजरीवाल सहित विपक्ष के शीर्ष नेता पहलवानों के समर्थन में आए हैं। इसी तरह हरियाणा की विभिन्न खापों के नेता, उत्तर प्रदेश के किसान संगठन भी पहलवानों के समर्थन में आए हैं।

भाजपा का आरोप है कि यह विरोध-प्रदर्शन कांग्रेस के हुड्डा द्वारा राजनीति से प्रेरित होकर चलाया जा रहा है क्योंकि ये पहलवान उनके घनिष्ठ हैं। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी अभी तक मौन हैं, हालांकि उनकी पार्टी 6 बार के सांसद रहे बृजभूषण का समर्थन कर रही है, जिनका राजपूतों में अच्छा जनाधार है और यदि उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई  की जाती है तो 4-5 लोकसभा सीटों और शहरी स्थानीय निकाय के चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। बृजभूषण कोई संत नहीं हैं। उनके विरुद्ध 40 से अधिक मामले दर्ज हैं।

उत्तर प्रदेश के बाहुबली ने एक हत्या की बात स्वीकार की और इस मामले में वह जेल भी गए। पार्टी लोगों की मांग को नजरंदाज कर रही है और यौन उत्पीडऩ के एक मामले का राजनीतिक समाधान ढूंढना चाहती है, जबकि कानून स्पष्ट कहता है कि ऐसे मामलों में महिलाओं का बयान आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त है, किंतु सरकार इस मामले की गहराई में जाने और व्यवस्था और स्थिति में सुधार लाने की बजाय, समय लेना चाहती है, ताकि महिला खिलाडिय़ों को भविष्य में इस तरह का अपमान न सहना पड़े।

ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं, जब महिलाओं ने अपने साथ अत्याचार करने वालों के विरुद्ध शिकायत करने का साहस किया। हरियाणा में पूर्व खेल मंत्री और पूर्व हॉकी कप्तान संदीप सिंह को तब त्यागपत्र देना पड़ा, जब एक कनिष्ठ कोच ने उन पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया और पुलिस में शिकायत की। फिल्म निर्माता साजिद खान पर 10 महिलाओं ने यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया। इसी तरह पत्रकार से विदेश राज्य मंत्री बने अकबर को त्यागपत्र देना पड़ा था।

कांग्रेस के एन.एस.यू.आई. के अध्यक्ष, अभिनेता नाना पाटेकर, फिल्म निर्देशक विवेक बहल, संगीत निर्देशक अनु मलिक, लेखक चेतन भगत, ऐडमैन सुहेल आदि पर महिलाओं को गलत तस्वीरें भेजने का आरोप लगाया गया। इस सबकी शुरूआत तब हुई थी जब अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने 2008 में एक फिल्म के सैट पर नाना पाटेकर द्वारा उन पर यौन हमला करने की बात बताई थी। जब उन्होंने इस पर आपत्ति व्यक्त की तो अभिनेता के गुंडों ने उनके साथ दुव्र्यवहार किया, जिस कारण उन्हें फिल्म उद्योग और देश छोडऩा पड़ा।
 

कुछ महिलाएं यह शिकायत भी करती हैं कि उन्हें पुरुष सहयोगियों द्वारा सैक्स की वस्तु के रूप में देखा जाता है। वे मनुष्य के रूप में जानवर होते हैं, जो उन्हें या तो उनकी बात मानने के लिए या प्रत्येक स्तर पर संघर्ष करने के लिए बाध्य करते हैं। पेशेवर रूप से आगे बढऩे के लिए उन्हें एक गॉडफादर की आवश्यकता होती है, जो उनके भविष्य को बना या बिगाड़ सकता है।ऐसे अनेक पेशे हैं जहां पर यौन उत्पीडऩ आम बात है और उनमें से फिल्म उद्योग भी एक है।

अभिनेत्रियां कासिंग काऊच की शिकायत करती हैं। जिसके चलते उन्हें फिल्म प्राप्त करना कठिन होता है। अभिनेत्रियों को न केवल अंग प्रदर्शन करने, अपितु निर्माता निर्देशक और अभिनेताओं के पास जाने के लिए भी कहा जाता है। विज्ञापन जगत में सहयोगी टिप्पणी करते हैं कि महिलाओं को ऐसे वस्त्र पहनने चाहिएं जो उन्हें उत्तेजक दिखाएं। कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ का सामना करने वाली अनेक महिलाएं चुप रह जाती हैं, ताकि उनका और उत्पीडऩ न हो और लोगों का उनकी ओर ध्यान न जाए। या वे इसलिए भी शिकायत करने के लिए हिचकिचाती हैं कि उन्हें अन्य लोगों द्वारा गलत चरित्र वाली कहा जा सकता है।

प्रश्न उठता है कि महिलाओं को एक सैक्स की वस्तु के रूप में क्यों देखा जाता है? शायद इसका संबंध हमारी पितृ सत्तात्मक और पुरुष प्रधान संस्कृति से है, जहां पर हम महिलाओं को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते। क्या वास्तव में ऐसा है? एक नेता का कहना है कि यदि महिलाएं अधिक अंग प्रदर्शन करेंगी तो यह गैसोलिन की तरह है, आग तो भड़केगी ही। एक अन्य नेता का कहना है कि लड़कियों को जींस और अन्य अंग प्रदर्शन वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिएं क्योंकि यह देशी सभ्यता के विपरीत है।
 

रात के 2 बजे तक ड्राइविंग करना उनका कार्य नहीं है। क्या यह बातें शोभा देती हैं? ऐसा समाज, जिसमें पुरातनपंथी सोच हो, महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता को अच्छा नहीं माना जाता। ‘मी टू’ अभियान के बावजूद ऐसी संस्कृति में, जहां पर लोग यह समझते हैं कि यौन उत्पीडऩ का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जहां पर यौन अपराधों को असंतुलित ङ्क्षलग अनुपात का परिणाम माना जाता है और जहां पर महिलाओं को सांस्कृतिक सम्मान या तो दिया ही नहीं जाता या बहुत कम दिया जाता है, वहां पर बदलाव लाना बहुत ही कठिन कार्य है।

फिर इस समस्या का समाधान क्या है? सबकी निगाहें अब इस ओर लगी है कि इस मामले में अब क्या होता है। वास्तव में यह एक बदलाव का आह्वान है। यौन उत्पीडऩ के बारे में हमारे दृष्टिकोण में बदलाव लाया जाना चाहिए। इसका एक विकल्प यह है कि महिलावाद को बढ़ावा दिया जाए जिसका सामाजिक प्रभाव पड़े और महिलाओं की सुरक्षा को लोगों, समाज और सरकार के लिए आस्था का विषय बनाया जाए।

खिलाडिय़ों, विशेषकर महिला खिलाड़ी के लिए सुरक्षित वातावरण बनाए जाने की आवश्यकता है। कठोर कानून बनाए जाने चाहिएं, ताकि पुरुष अपराध करने से पहले हजार बार सोचे, साथ ही पारर्दशिता, जवाबदेही और सुशासन स्थापित किया जाए। तभी भारत खेल जगत में एक बड़ी शक्ति बन प्रतिभावान खिलाडिय़ों की आकांक्षा को पूरा कर सकता है। -पूनम आई. कौशिश


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