‘महिला सशक्तिकरण’ का श्रीगणेश तो कश्मीर से हुआ

punjabkesari.in Wednesday, Dec 11, 2019 - 04:17 AM (IST)

जब पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर के अलंकरण 370 और 35-ए हटे तो कश्मीर को जानने में मेरी रुचि बढ़ी। इसलिए मैंने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल जगमोहन द्वारा लिखित पुस्तक ‘माई फ्रोजन टर्बुलैंस इन कश्मीर’, एम.जे. अकबर द्वारा लिखित ‘कश्मीर बिहाइंड दा वेल’, रिटायर्ड मेजर सुलक्खन मोहन की पुस्तक ‘कश्मीर-इज देअर ए सोल्यूशन?’ या दयासागर द्वारा रचित ‘जम्मू-कश्मीर-ए विक्टम’ के पृष्ठों को पलटना शुरू किया। लगा यदि 12वीं शताब्दी में संस्कृत के महाकवि कल्हण ने अपने महाकाव्य ‘राज तरंगिनी’ की रचना न की होती तो हमें कश्मीर घाटी के बारे यकीनन कुछ भी पता न होता। कल्हण की राज तरंगिनी कश्मीर का काव्यात्मक इतिहास ही तो है। इन्हीं की जानकारी से मुझे ज्ञात हुआ कि महिला सशक्तिकरण तो कश्मीर घाटी से शुरू हुआ। 

कश्मीर के महान सम्राट ललितादित्य और अवन्तिवर्मन सशक्त महिलाओं की देन है। पाठकवृंद, मगध सम्राट जरासंध का नाम तो आप जानते होंगे? वही जरासंध जो द्रौपदी पर बुरी नजर रखता था और जिसका वध भगवान कृष्ण ने किया था। उसका सुपुत्र दामोदर अपने पिता का बदला लेने भगवान कृष्ण से जा भिड़ा था, उसका वध भी भगवान कृष्ण ने किया और दामोदर की मृत्यु के बाद उसकी विधवा जसुमति को कश्मीर का राज्य सौंपा था। तब गोनंद द्वितीय जसुमति के गर्भ में था। यहीं गोनंद वंश कश्मीर वैली पर सैंकड़ों वर्ष राज करता रहा। नौवीं शताब्दी में एक अन्य सशक्त महिला ‘जयदेवी’ ने कश्मीर में ‘उपताला वंश’ की नींव डाली। इसी उपताला वंश के प्रतापी राजा अवन्तिवर्मन हुए। जयदेवी एक गरीब परिवार में पैदा हुई। वह युवावस्था में विधवा हो गई। उसके रूप यौवन पर राजा जयपिदा फिदा हुए थे परन्तु वह शीघ्र स्वर्ग सिधार गए। उनका बेटा ललितपिदा गद्दी पर बैठा और जयदेवी कश्मीर के इस राजा की संरक्षक बनी। 

इसी बीच अपुष्ट-सा इतिहास में रानी सुगंधा हुई। जिसने 904 ईस्वी से 918 ईस्वी तक कश्मीर पर राज किया। उसके बाद 949 ईस्वी में प्रधानमंत्री पर्वगुप्त ने ब्राह्मण वंश के अंतिम सम्राट की हत्या कर अपना राज स्थापित किया। इसी गुप्त वंश में एक ऐसी यशस्वी महिला ने कश्मीर पर राज किया जिसने अपने क्रूर शासन द्वारा लगभग 50 साल तक कश्मीर में अपने नाम का परचम फहराया। 

इस शक्तिशाली महिला का नाम था ‘दीदा’ जिसने 950 से 1003 ईस्वी तक कश्मीर पर शासन किया। दीदा आज के पुंछ के लोहारा राजा की पुत्री थी। दीदा की शादी गुप्तवंश के राजा कसीम गुप्त से हुई जो तब कश्मीर के राजा थे। दो राज्यों के मिलने से कश्मीर और शक्तिशाली हो गया। दीदा ने पहले रानी के रूप में और फिर अपने पुत्र-पौत्रों की संरक्षिका के रूप में कश्मीर राज्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। यहां तक कि राजा कसीम गुप्त अपने नाम से पहले ‘दीदा’ उपसर्ग लगाकर जाने जाने लगे। दीदा को ‘कैथरीन ऑफ कश्मीर’ भी कहा जाता है। कैथरीन रशिया की सम्राज्ञी हुई, जिसने अपनी क्रूरता और योग्यता के बल पर रूस पर राज किया। दीदा ने 50 साल तक कश्मीर पर शासन किया। राजा की मौत पर उसने सती होने की जिद की परन्तु राज दरबार के आग्रह पर यह विचार छोड़ दिया। जिस प्रकार वीर हनुमान सारी मुसीबतों को पार कर समुद्र लांघ गए, ठीक उसी प्रकार रानी दीदा मुसीबतों को चीरते हुए 50 साल कश्मीर पर राज चलाती रहीं। 

रानी दीदा की सुंदरता और लंगड़ेपन पर युवा दिल पलकें बिछाने को थे तैयार
जिस प्रकार अंग्रेजी साहित्य के मूर्धन्य कवि लार्ड वायरन ‘लंग’ मारते थे, ठीक वैसा ही ‘लंग’ रानी दीदा के पैर में भी था। जिस प्रकार लार्ड वायरन पर अंग्रेज औरतें फिदा थीं, वैसे ही रानी दीदा पर हर दरबारी मोहित था। उसकी सुंदरता और लंगड़ेपन पर युवा दिल पलकें बिछाने को तैयार रहते। रानी दीदा को ‘डांसिंग लैप्प’ भी पुकारा जाता था। उसके शासनकाल में जो सामने आया या तो उसने अपने साथ मिला लिया या मौत की नींद सुला दिया। राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए उसने अपने शत्रुओं से शारीरिक संबंध तक बनाने से भी गुरेज नहीं किया। गद्दी पर बने रहने की खातिर अपने तीन पौत्रों तक को मरवा दिया। उसका अंतिम प्रेमी ‘तुंगा’ एक खासी जाति का गडरिया था। रानी दीदा ने अपनी क्रूरता से षड्यंत्रों, हत्याओं और धोखाधड़ी का सहारा लेकर 50 साल तक कश्मीर में एक योग्य शासक का परिचय दिया। न केवल यह, उसने अपने नाम पर सिक्के भी चलाए। मठों और मंदिरों का निर्माण भी करवाया। 

1003 से 1028 ईस्वी तक राजा संग्राम सिंह ने राज किया। इसी वंश के एक राजा ने पंजाब के जालंधर राज्य के शाही परिवार से संबंध स्थापित किए। जालंधर राज्य की राजकुमारी सूर्यमति ने कश्मीर में फैले असंतोष को सख्ती से कुचल दिया। सूर्यमति के पति अनंता एक कमजोर प्रशासक थे। वह प्राय: डिप्रैशन में ही रहते। राजा अनंता की मृत्यु पर राजकुमारी सूर्यमति सती हो गई। 1320 से 1342 ईस्वी के बीच एक अन्य महिला ने कश्मीर में अपना नाम कमाया। उसका नाम था ‘कोटा रानी।’ 

हब्बा खातून और यूसुफ शाह की प्रेम कहानी आज भी जिंदा
1320 में तुर्कीस्तान के एक लुटेरे दुलाचा ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन कश्मीर के राजा सूहदेव एक कमजोर शासक थे। दुलाचा ने कश्मीर को पैरों तले रौंद डाला। कश्मीर से बच्चों और स्त्रियों को दास बना कर ले गया। दुलाचा के जाने के बाद रामचंद्र ने अपने को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया। रामचंद्र ने एक लद्दाखी बौद्ध भिक्षु रिनचिन को अपना प्रधानमंत्री बनाया। एक दिन बौद्ध भिक्षु रिनचिन ने अपने सैनिकों को पंडितों के वेष में रामचंद्र के महल में भेज कर राजा रामचंद्र की हत्या करवा दी। उसके परिवार के सदस्यों को बंदी बना लिया।  

लोगों का दिल जीतने के लिए रामचंद्र के पुत्र को राजा घोषित कर दिया। उसकी बेटी को अपनी रानी बना लिया। 1323 ईस्वी में रिनचिन की मृत्यु हो गई। वह अपने पीछे एक बेटा हैदर छोड़ गया। दरबारियों ने सूहदेव के भाई उदयन देव को राजा घोषित कर दिया। उदयन देव ने रिनचिन की विधवा से शादी कर ली। ऐसे समय में एक मुसलमान सेना कमांडर शाहमीर ने कश्मीर की रक्षा की। कोटा रानी ने उपद्रवग्रस्त कश्मीर की बागडोर संभाली। एक बार पुन: कोटा रानी ने शाहमीर की सहायता से हालात पर काबू पाया। अचला के चले जाने पर उदयन देव वापस कश्मीर लौट आया। 1338 ईस्वी में उदयन देव की मृत्यु हो गई। कोटा रानी ने अपने पति की मृत्यु को चार दिन तक गुप्त रखा। 

कोटा रानी ने इंद्रकोट के किले में पहुंच कर अपने को कश्मीर की रानी घोषित कर दिया। शाहमीर ने किले को घेर लिया। रानी कोटा पराजित हो गई। शाहमीर ने रानी कोटा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। विवाह मंडप में रानी कोटा ने छुरा घोंप कर आत्महत्या कर ली। इस्लाम के आगमन पर हब्बा खातून और यूसुफ शाह की प्रेम कहानी कश्मीर घाटी में लोक गीतों के रूप में आज भी जिंदा है। 1589 में मुगलों ने कश्मीर पर अपना आधिपत्य जमा लिया। यूसुफ शाह को दिल्ली दरबार भेज दिया गया। यूसुफ शाह कश्मीर का कवि हृदय सम्राट था। हब्बा खातून की खूबसूरती के चर्चे सारे कश्मीर में थे। लगभग एक हजार साल बाद कश्मीर में बारी आई एक अन्य महिला मुफ्ती महबूबा की, जिसने 6 अप्रैल 2016 को एक बार पुन: नारी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री का पद संभाला। यह अलग बात है कि पी.डी.पी. अध्यक्षा की भारतीय जनता पार्टी से नहीं निभी परन्तु है तो वह नारी का सशक्त रूप। 

प्राय: हम नारी को कोमलांगी, नाजुक, छुई-मुई, अबला, शीघ्र वश में हो जाने वाली कहते हैं। परन्तु कश्मीर घाटी की उपरोक्त महिलाओं का चरित्र पढऩे से तो लगता है कि वे समय आने पर आग के रोशन अंगारों पर भी चल सकती हैं। नारी सशक्तिकरण तो कश्मीर से शुरू हुआ लगता है। हम तो कश्मीर को पत्थरबाजों का शहर मानते रहे।-मा.मोहन लाल


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