संसद का शीतकालीन सत्र एक बार फिर ‘धुलने’ की आशंका

punjabkesari.in Friday, Dec 02, 2016 - 01:36 AM (IST)

(कल्याणी शंकर): संसद का 16 नवम्बर को शुरू हुआ शीतकालीन सत्र एक बार फिर से धुलने की आशंका है। दुर्भाग्य से संसद के दोनों सदनों में अभी तक कोई प्रमुख कार्य नहीं किया जा सका है। इस बार टकराव का मुद्दा 8 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विमुद्रीकरण की कार्रवाई तथा इसके बाद सरकार और रिजर्व बैंक द्वारा स्थिति से निपटने की तैयारी का न होना है। नि:संदेह लोगों को इस कार्रवाई का मतलब समझने में कुछ समय लगा। रातों-रात आम व्यक्ति के पास अपने रोजमर्रा के खर्चों हेतु लेन-देन के लिए कोई नकदी नहीं बची। विपक्ष, जिसके पास मुद्दों की कमी थी, ने तुरंत इसे झपटलिया। 

ऐसा नहीं है कि सरकार के प्रबंधकों को तूफानी सत्र की आशा नहीं थी, वे इसके लिए तैयार थे। सरकार ने एक सर्वदलीय बैठक आयोजित कर विपक्ष तक पहुंचने का प्रयास किया। इस सत्र के पहले दिन  मोदी ने मीडिया से कहा था, ‘‘मैं आशा करता हूं कि इस सत्र में भी बहुत अच्छी चर्चा होगी। सभी पाॢटयां अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान डालेंगी। सरकारी कार्यों को पूरा करने के लिए सभी पाॢटयों को साथ लाने के लिए बेहतरीन प्रयास किए जाएंगे।’’ यद्यपि उनकी इस घोषणा के बावजूद कि सरकार सभी मुद्दों पर चर्चा करना चाहती है, सत्र को हर रोज राजनीतिक कारणों से बाधित किया जा रहा है।

सरकार को इस सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवाने हैं। इसके एजैंडे में भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक 2013, व्हिसल बलोअर सुरक्षा (संशोधन) विधेयक 2015, मातृत्व लाभ विधेयक 2016 जैसे कई विधेयक हैं। अन्य महत्वपूर्ण विधेयक जी.एस.टी. से संबंधित हैं। ये विधेयक जी.एस.टी. के लिए जी.एस.टी. परिषद के 4 स्तरीय ढांचे के बाद लाए जाएंगे, जिसमें ऊपरी सीमा 28 प्रतिशत की है। सरकार की योजना एक अप्रैल 2017 से जी.एस.टी. को पूरी तरह से लागू करने की है। 

विधायी कार्यों के अतिरिक्त कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा की जानी है जैसे कि हालिया आतंकी हमले, एल.ओ.सी. के पार भारत की सर्जिकल स्ट्राइक्स, जम्मू-कश्मीर की स्थिति तथा पूर्व सैनिकों के लिएएक रैंक एक पैंशन जिस पर संसद के ध्यान की जरूरत है।

इसलिए यह संसद के लिए आवश्यक हो जाता है कि एक परिणामजनक सत्र सुनिश्चित करे। आखिरकार संसद एक वर्ष में मात्र लगभग 100 दिनों की औसत से कार्य करती है। संसद को चलाने की बजटीय लागत प्रति वर्ष लगभग 600 करोड़ रुपए बैठती है। यह लागत प्रति मिनट लगभग 2.5 लाख रुपए है। बिना कोई कार्य किए सदन में बैठने वाले सांसद इस धन को बेकार करते हैं। 

विपक्ष कार्रवाई को बाधित क्यों करता है? कुछ उदार सोच वाले व्यक्ति कहते हैं कि यह उनकी वास्तविक चिंता है। कुछ अन्य का कहना है कि वे मतदाताओं का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। कार्रवाई के जीवंत प्रसारण से भी सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों को उनके प्रति अपनी चंता दिखाने का अवसर मिलता है। दूसरे, राजनीतिक दलों को अपने खुद के हित साधने होते हैं। तीसरे, एक अच्छी चर्चा तथा वाद-विवाद की बजाय बहिर्गमन तथा बायकॉट से उन्हें समाचारों की सुर्खियों में स्थान मिल जाता है। अंतिम, यह जैसे को तैसे की राजनीति है। कांग्रेस, जो आज विपक्ष में है, भाजपा को उसी तरह लौटाना चाहती है जैसा उसे अपने शासनकाल के दौरान उससे मिला था। परिणामस्वरूप सत्तापक्ष तथा विपक्ष गतिरोध के लिए एक-दूसरे पर दोष मढ़ते रहते हैं। 

सांसदों के 4 महत्वपूर्ण कार्य हैं। वे विधायी कार्य करते हैं, उनका निरीक्षण करते हैं, जिम्मेदारी से प्रतिनिधित्व करते हैं तथा धन को जिम्मेदारीपूर्वकखर्च करते हैं। सांसदों को ये सभी कार्य करने को तैयाररहना चाहिए। उदाहरण के लिए प्रश्रकाल, जिसमें सदस्य सरकार से सूचना अथवा जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं, को बाधित नहीं करना चाहिए। इसी तरह से शून्य काल में अल्प नोटिस के प्रश्रों तथा मोशन्स के माध्यम से सरकार से महत्वपूर्ण सूचना प्राप्त की जा सकतीहै। 

आखिरकार एक संसदीय सरकार को चर्चा द्वारा चलाई जाने वाली सरकार कहा जाता है। इसलिए वाकआऊट, अध्यक्ष के आसन के पास जाकर प्रदर्शन करने तथा सत्र का बहिष्कार करके व्यवधान पैदा करने की बजाय सरकार को सामना करने के लिए बाध्य करना चाहिए। विमुद्रीकरण के मुद्दे में विपक्ष के पास ऐसा करने का एक अच्छा अवसर था। यदि वे लोगों की दुर्दशा बारे संसद में चर्चा तथा वाद-विवाद करते तो आम लोग शायद उनकी प्रशंसा करते। 

दूसरी ओर सरकार विपक्ष को दोफाड़ करने में सफल रही है। गत एक सप्ताह या उससे पहले विपक्ष की एकता में स्पष्ट दरारें दिखाई दीं,जद(यू) अध्यक्ष तथा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा विमुद्रीकरण का समर्थन करने के बाद जद(यू) ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया। बीजद ने प्रतीक्षा करो और देखो की नीति अपनाई है। सपा इसमें पूरी तरह से शामिल नहीं है। रालोद भी अब इस कार्रवाई का समर्थन कर रहा है।

दूसरे, वित्त मंत्री अरुण जेतली ने नकदी रहित अर्थव्यवस्था के लिए तरीके सुझाने हेतु आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू की अध्यक्षता में मुख्यमंत्रियों का एक पैनल गठित करने का प्रस्ताव किया है। सरकार यह महसूस करती है कि जनता को परेशानी के बावजूद उसका समर्थन मिलने के कारण उसकी स्थिति मजबूत है। जहां मध्यम तथा निम्न मध्यम वर्ग के लोग नकदी की कमी महसूस कर रहे हैं, गरीब खुश हैं कि अमीर लोगों को रातों-रात उनके अवैध धन से महरूम कर दिया गया। गुजरात तथा महाराष्ट्र में हालिया पंचायत चुनावों में मिली विजय ने सरकार को इस सप्ताह कराधान कानून (दूसरा संशोधन विधेयक) 2016 लाने को प्रोत्साहित किया। 

हालांकि गतिरोध को तोडऩे की जरूरत है। विपक्ष का कहना है कि सदन को चलाना सरकार की जिम्मेदारी है जबकि सरकार विपक्ष से रचनात्मक सहयोग की आशा करती है। सदन की सुगम कार्रवाई के लिए दोनों पक्षों को नीति मामलों तथा विधेयक बनाने के लिए चर्चा करने की जरूरत है। देश संसद सत्र को एक बार फिर से धुलते बर्दाश्त नहीं कर सकता। 


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