क्या कांग्रेस नेतृत्व में परिवर्तन होगा

Saturday, Mar 23, 2019 - 04:36 AM (IST)

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस महासचिव (पूर्वी उत्तर प्रदेश) प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपना आधिकारिक चुनावी अभियान ‘गंगा यात्रा’ प्रारंभ कर दिया है। यह पहले से ही निश्चित था कि अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और इतिहास के कारण प्रियंका गांधी राजनीति में एक दिन प्रवेश जरूर करेंगी। किन्तु यक्ष प्रश्न है कि आगामी आम चुनाव से कुछ सप्ताह पहले कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें सक्रिय राजनीति में क्यों उतारा? 

हाल ही में अपने चुनाव प्रचार के दिन प्रियंका गांधी एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहती हैं, ‘‘देश और संस्थाओं पर आए संकट को देखकर मुझे घर से निकलना पड़ा है।’’ आखिर प्रियंका के इस वक्तव्य के पीछे की वास्तविकता क्या है? क्या यह सत्य नहीं कि नेहरू-गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी में वह पहली और एकमात्र ऐसी महिला हैं जिसके मायके और ससुराल अर्थात् मां, भाई और पति पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और सभी जमानत पर बाहर हैं? स्वतंत्रता के बाद से जिस प्रकार कांग्रेस  नेहरू-गांधी परिवार की छत्रछाया में रही है, उसमें निर्विवाद रूप से पं. नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का एक करिश्माई व्यक्तित्व था और जनता को स्वयं से जोडऩे में सभी पारंगत भी थे किन्तु वर्तमान कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी में इन दोनों गुणों का नितांत अभाव है। इस मामले में फिलहाल प्रियंका, राहुल की तुलना में कहीं बेहतर हैं। 

वर्ष 2004 से राहुल के दौर में कांग्रेस को कुछ अपवादों को छोड़कर कई चुनाव हारने का अनुभव हुआ है। उससे प्रियंका गांधी वाड्रा अभी तक मुक्त हैं। यही नहीं, राहुल अपनी निरंतर त्रुटियों की आदत और बौद्धिक  ज्ञान के लिए सोशल मीडिया में उपहास का पात्र बनते हैं, उससे भी प्रियंका गांधी अब तक बची हुई हैं। किन्तु क्या यह आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का भाग्य बदलने हेतु पर्याप्त होगा। इस पृष्ठभूमि में आवश्यक है कि देश के दो मुख्य राष्ट्रीय दल-सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस की वस्तुस्थिति का ईमानदार आकलन किया जाए। 

मोदी की लोकप्रियता 
देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है, इसके कई कारण हैं। हाल ही में केन्द्र सरकार ने सामान्य वर्ग में आॢथक रूप से कमजोर लोगों के लिए बिना किसी सामाजिक कठिनाई और संवैधानिक संकट के 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया है। मध्यम वर्ग के लोगों को 5 लाख की वार्षिक आय पर कर में छूट देने का निर्णय लिया है, जिससे देश के लगभग 80 प्रतिशत करदाता लाभांवित होंगे। ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के अंतर्गत किसानों को प्रतिवर्ष 6,000 रुपए देने की घोषणा की गई है। इस आय समर्थन योजना में 9 मार्च तक 2.6 करोड़ लाभार्थी किसानों के खातों में 2,000 रुपए के रूप में पहली किस्त स्थानांतरित भी कर दी गई है औ शेष 10 करोड़ किसानों को इस माह के अंत तक यह राशि पहुंचाने का लक्ष्य है। इन सभी किसानों को अप्रैल के पहले सप्ताह में दूसरी किस्त भी मिलने की संभावना है। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने और उनकी आय को दोगुना करने की दिशा में यह एक ठोस केन्द्रीय नीति की शुरूआत है। 

आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना के अंतर्गत लक्षित 10 करोड़ लाभार्थियों में से 2 करोड़ को 5 लाख रुपए के मुफ्त चिकित्सा का स्वास्थ्य कार्ड जारी किया गया है, जिसमें से 12 लाख अधिक लोगों को मुफ्त उपचार भी मिल चुका है। वहीं भारत में हर घर के पूरी तरह विद्युतीकृत होने के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना में 1.5 करोड़ परिवारों के लिए घर बनाए जा चुके  हैं। उज्जवला योजना के तहत 5 वर्षों में 7 करोड़ घरों में मुफ्त एल.पी.जी. रसोई गैस कनैक्शन वितरित कर दिए गए हैं। 

रोजगार अहम चुनावी मुद्दा 
राष्ट्रीय सुरक्षा और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ रोजगार भी महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है। भले ही विरोधी पक्ष देश में रोजगार नहीं होने और बेरोजगारी बढऩे का आरोप लगाए किन्तु इससे संबंधित सच का एक पक्ष खाड़ी देशों से आई एक खबर में मिल जाता है। मध्यपूर्व एशिया में वेतन घटने से भारतीय प्रवासियों-जिसमें केरल और पंजाब के लोगों की संख्या सर्वाधिक होती है-उन पर आर्थिक संकट आ गया है और वे अपने घरों का रुख करने लगे हैं। इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस की स्थिति क्या है? कांग्रेस नेतृत्व ने जैसे ही इस वर्ष 23 जनवरी को प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपते हुए पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया, वैसे ही कांग्रेस नेताओं के साथ पार्टी समर्थक बुद्धिजीवियों और मीडिया के एक वर्ग द्वारा विमर्श स्थापित करना प्रारंभ हो गया, जो अब भी हो रहा है कि प्रियंका गांधी में अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी की झलक दिखती है। क्या लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार और उसके द्वारा किए गए कामों का मुकाबला करने के लिए प्रियंका का गांधी परिवार से होना और उनकी एकमात्र लोकप्रिय उपलब्धि कि वह अपनी दादी जैसी दिखती हैं, काफी होगी। 

वास्तविकता तो यह है कि जिस तरह 16वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट कर रह गई थी, जिसमें गांधी परिवार की रायबरेली और अमेठी सीट मोदी लहर में बच गई थीं, उसमें से अमेठी में इस बार हार का खतरा मंडरा रहा है, तो रायबरेली में कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। सच तो यह है कि 17वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर एक दल के रूप में स्वयं से अधिक नेहरू-गांधी वंश के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने का संकट है। 

यदि परिणाम कांग्रेस के खिलाफ आते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि पार्टी के भीतर विद्रोह होगा और नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठेगी। तब शायद कांग्रेस नेतृत्व का वह घिसा-पिटा तर्क काम न आएगा कि तीन बार के सांसद  ‘‘युवा राहुल के पास अनुभव नहीं है।’’ ऐसी स्थिति पैदा होने पर तब कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारी किसी गैर-पारिवारिक सदस्य को देने की बजाय तुरंत प्रियंका को सौंप देगी, जिससे गांधी परिवार की पार्टी पर पकड़ बनी रहे और उनके द्वारा स्थापित बौद्धिक अधिष्ठान जीवित रह सकें। क्या प्रियंका को लोकसभा चुनाव से एकाएक पहले कांग्रेस नेतृत्व द्वारा राजनीति में औपचारिक रूप से उतारना, कांग्रेस को आगामी चुनाव में पराजय के अनुमान और कांग्रेस नेतृत्व में परिवर्तन की संभावना की मौन स्वीकारोक्ति नहीं है।-बलबीर पुंज

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