क्या योगी भाजपा के चुनावी वायदों को पूरा कर सकेंगे

Tuesday, Mar 21, 2017 - 11:19 PM (IST)

‘देश में मोदी, प्रदेश में योगी’ यह एक नया नारा है जो देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में गोरखनाथ मठ के मठाधीश योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने पर सुनाई देने लगा है। भाजपा (वास्तव में आर.एस.एस.-विहिप) द्वारा योगी का चयन यू.पी. की जीत को हिन्दुत्व के पक्ष में मतदान के रूप में परिभाषित करता है जबकि आधिकारिक वायदा विकास का था। 

दिलचस्पी की बात है कि अपने प्रचंड हिन्दुत्ववादी तेवरों के लिए विख्यात योगी ने भी पद ग्रहण करने के जल्दी ही बाद यह राग अलापना शुरू दिया कि ‘‘सबका साथ सबका विकास मेरी पहली प्राथमिकता होगी।’’ आशावादियों का कहना है कि योगी को एक मौका दिया जाना चाहिए जबकि निराशावादियों का दावा है कि उनके नेतृत्व में यू.पी. हिन्दुत्व के मार्ग पर बहुत आगे बढ़ जाएगा। विकास की बातें करते हुए वह क्या नरेन्द्र मोदी की तरह ही हिन्दुत्व का शंख भी अपने झोले में डाल कर नहीं चलेंगे? 

जहां यू.पी. की विजय का श्रेय नि:संदेह मोदी को ही जाता है, वहीं बहुसंख्य हिन्दू वोट को भाजपा के पक्ष में सुदृढ़ करने में आदित्यनाथ ने भी कुंजीवत भूमिका अदा की थी। वह चुनावी अभियान में हिन्दुत्व के सबसे प्रभावी और जाने-पहचाने ‘पोस्टर ब्वॉय’ थे जिन्होंने सैंकड़ों रैलियों को संबोधित किया था। उनका पूर्वी यू.पी. के 10 जिलों में फैली 65 विधानसभा सीटों पर दबदबा है और 2014 के चुनावों में उन्होंने 3 लाख वोटों के भारी-भरकम अंतर से अपनी संसदीय सीट जीती थी। 

जब से उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है, उनके समर्थक केवल एक ही नारा लगाते रहे हैं : ‘‘गोरखपुर में रहना है, तो योगी-योगी कहना है।’’5 बार के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन करके भाजपा ने बुलंद आवाज में यहसंदेश दिया है कि यह हिन्दुत्व एजैंडे को आगे बढ़ाना चाहती है। योगी प्रमुख रूप में मोदी की तुलना में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) की पसन्द अधिक हैं। इसका तात्पर्य यह है कि उनके एजैंडे पर राम मंदिर का सबसे ऊंचा स्थान है। 

आदित्यनाथ के चुनावी प्रचार में ‘लव जेहाद’, राम मंदिर और कैराना कस्बे का मामला सबसे प्रमुख मुद्दे थे और यही वे मुद्दे हैं जिन्हें कथित उदारवादी व सैकुलर चिमटे से भी छूने को तैयार नहीं। योगी ने बार-बार कहा है कि राम मंदिर उनके लिए व्यक्तिगत रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है। अब तो उन्हें 325 से भी अधिक विधायकों का समर्थन हासिल है तो विहिप द्वारा उत्साहित किए जाने पर वह शायद और भी दिलेरी से आगे कदम बढ़ाएंगे।

योगी आदित्यनाथ ने यदि 2019 के लोकसभा चुनावों में कुछ उल्लेखनीय कारगुजारी दिखानी है तो आगामी 2 वर्षों दौरान उन्हें काफी बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यू.पी. इस मामले में महत्वपूर्ण है क्योंकि 2014 में इसने 80 में से 71 संसदीय सीटें भाजपा की झोली में डाली थीं और विधानसभा चुनावों में भी इसे सबसे अग्रणी बनाया है। इस काम के लिए योगी को यह सुनिश्चित करना पड़ा कि उनका एजैंडा मोदी महत्वाकांक्षा के साथ किसी टकराव में न आए।

ऐसा कोई प्रमाण मौजूद नहीं कि मोदी के विकास एजैंडे को लागू करने के लिए आदित्यनाथ ही आदर्श ‘विकास पुरुष’ हैं। योगी को कोई प्रशासकीय अनुभव नहीं है। अब उनके सामने केवल 2 ही रास्ते हैं या तो विकास के पथ पर आगे बढ़ें या फिर हिन्दुत्व का एजैंडाअपनाएं और मतदाताओं का इससे भी अधिक ध्रुवीकरण करें।गत 3 वर्षों से भाजपा ‘लव जेहाद’ का मुद्दा उठाते हुए मुस्लिम युवकों पर दोष लगा रही है कि वे अपनी पहचान बदलकर या छुपाकर हिन्दू लड़कियों को झूठे वायदों से अपनी मोहब्बत के जाल में फंसाते हैं। यू.पी. चुनाव के दौरान बार-बार वह यह वायदा दोहराते रहे हैं कि ‘लव जेहाद की चुनौती’ से निपटने के लिए एक ‘रोमियो स्क्वायड’ गठित करेंगे। क्या सत्ता की जिम्मेदारियों के चलते वह कुछ संयम से काम लेंगे? 

सामान्य नागरिक संहिता और तिहरे तलाक को लेकर सुप्रीमकोर्ट में लड़ाई चल रही है। राज्य सरकार इस मामले में  ज्यादा कुछ नहीं कर सकती लेकिन मोदी ने चुनावी अभियान दौरान अवश्य ही वायदा किया है। धर्मान्तरण के बारे में योगी के अपने विचार क्या मोदी के विकास एजैंडे को भी धूमिल नहीं कर देंगे? उन्होंने एक बार कहा था : ‘‘यदि कोई भी सरकार- उदाहरण के तौर पर यू.पी. सरकार- यह चाहे कि वह धर्मान्तरण पर प्रतिबंध लगाएगी तो उसे समर्थन भी मिल जाएगा।’’ 

चुनावी अभियान दौरान योगी सहित भाजपा नेताओं ने यू.पी. में अवैध ढंग से चल रहे बूचडख़ानों का मुद्दा उठाया था। भाजपा ने आरोप लगाया था कि पश्चिम यू.पी. के कैराना कस्बे से हिन्दू सामूहिक रूप में पलायन कर गए हैं क्योंकि 2012-13 से लेकर वहां लगातार साम्प्रदायिक टकराव चल रहे हैं। इस संबंध में योगी क्या कार्रवाई करेंगे? सर्वप्रथम योगी को बढिय़ा गवर्नैंस सुनिश्चित करनी होगी। हिन्दू-मुस्लिम में किसी प्रकार का टकराव होता है तो उससे सामाजिक विद्वेष और भी बढ़ जाएगा तथा सामाजिक समरसता को नुक्सान पहुंचेगा। आदित्यनाथ की छवि ऐसे सशक्त और बाहुबली नेता की है जो यू.पी. में अमन-कानून की स्थिति से प्रभावी ढंग से निपट सकता है। 

दूसरी समस्या है रोजगार सृजन की। पार्टी के घोषणा पत्र में कहा गया है: ‘‘भाजपा सरकार अगले 5 वर्षों दौरान 70 लाख नौकरियां और स्वरोजगार के अवसर पैदा करेगी।’’ घोषणा पत्र में यह भी वायदा किया गया: ‘‘नए उद्यम स्थापित करने के उद्देश्य से 1000 करोड़ रुपए से एक ‘स्टार्ट-अप वैंचर कैपिटल फंड’  स्थापित किया जाएगा जो युवकों के लिए रोजगार भी पैदा करेगा।’’ क्या योगी ऐसा कुछ करपाएंगे? 

जहां तक कृषि क्षेत्र की ऋण माफी का सवाल है, उसका भी घोषणा पत्र में वायदा किया गया है। मोदी ने वायदा किया था कि नए मुख्यमंत्री द्वारा सबसे प्रथम फैसला ऋण माफी का ही लिया जाएगा। घोषणा पत्र में यह वायदा किया गया है कि छोटे तथा सीमांत किसानों के सभी कृषि ऋण माफ कर दिए जाएंगे जबकि भविष्य में उन्हें दिए जाने वाले ऋण पर कोई ब्याज नहीं लिया जाएगा। घोषणा पत्र में 24 घंटे की बिजली अपूर्ति तथा गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए मुफ्त बिजली का भी वायदा किया गया है।

इससे भी आगे कदम बढ़ाते हुए भाजपा ने देश के इस सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य को गन्ने की बिक्री के 14 दिन के अंदर भुगतान दिलाने का वायदा किया है और इसके साथ-साथ मिल मालिकों एवं बैंकों के साथ भी तालमेल बनाया जाएगा ताकि गन्ना उत्पादकों के पुराने बकाया भुगताए जा सकें। इन समस्त वायदों को पूरा किए जाने की जरूरत है लेकिन इसके लिए पैसे की जरूरत होगी। 

अभी यह बता पाना समयपूर्व बात होगी कि योगी कौन-कौन से काम करेंगे, इसलिए उदारपंथियों को उनके विकास को प्राथमिकता देने के वचन पर सवाल नहीं उठाने चाहिएं। योगी एक सफल मठाधीश सिद्ध हुए हैं और केन्द्र सरकार के निर्देशन में वह शायद इससे भी बढिय़ा कारगुजारी दिखाएंगे। इसलिए फिलहाल तो ‘‘तेल देखो, तेल की धार देखो’’ ही हमारा ध्येय वाक्य होना चाहिए।  

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