क्या तरनतारन उप-चुनाव के नतीजे अकाली गुटों के लिए जनमत संग्रह माने जाएंगे?
punjabkesari.in Friday, Nov 14, 2025 - 05:01 AM (IST)
तरनतारन उप-चुनाव, जिसके नतीजे आज दोपहर से पहले घोषित होने की उम्मीद है, पंजाब के निवासियों के साथ-साथ दुनिया भर में रहने वाले पंजाबियों, खासकर सिखों और देश भर के राजनीतिक विशेषज्ञों का ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस विधानसभा क्षेत्र को पंथक निर्वाचन क्षेत्र इसलिए कहा जाता है क्योंकि अगर 1966 में पंजाबी सूबा के गठन के बाद हुए चुनावों के नतीजों की बात करें तो इस निर्वाचन क्षेत्र में हुए 14 चुनावों में से 8 बार अकाली, 3 बार कांग्रेस, 2 बार निर्दलीय और एक बार आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार जीते हैं। पंथक निर्वाचन क्षेत्र माने जाने के बावजूद, इस निर्वाचन क्षेत्र में 2017 और 2022 में हुए दो विधानसभा चुनावों में एक बार कांग्रेस और एक बार आम आदमी पार्टी ने लगातार दो बार पंथक पार्टी को हराने में कामयाबी हासिल की है।
पाठकों के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि तरनतारन चुनाव में पंजाब की सभी पाॢटयां हिस्सा ले रही हैं और अकाली दल के साथ-साथ अन्य पार्टियां भी यहां से जीतती रही हैं तो फिर इस चुनाव के नतीजों को सिर्फ अकाली दल के गुटों के लिए जनमत संग्रह कैसे कहा जा सकता है। इसे समझने के लिए हमें अकाली दल के पिछले इतिहास को जानना होगा। जब पिछले 3 दशकों से अकाली दल बादल पंजाब के पंथक क्षेत्र में एक निॢववाद पार्टी के रूप में मौजूद था। लेकिन इस दशक में अकाली दल को लगातार 2 विधानसभा चुनावों और एक लोकसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा। 2024 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद,पार्टी के दूसरे दर्जे के नेतृत्व ने इन हार के लिए पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को जिम्मेदार ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग शुरू कर दी और सुखबीर सिंह बादल ने इस्तीफा देने से साफ इंकार कर दिया।
सुखबीर सिंह बादल द्वारा इस्तीफा न दिए जाने से नाराज इस्तीफा मांगने वाले नेताओं ने अकाल तख्त साहब का दरवाजा खटखटाया और सुखबीर सिंह बादल पर कई गंभीर आरोप लगाए और अकाल तख्त से कड़ी सजा की मांग की, जिसके चलते 2 दिसंबर को अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने सुखबीर सिंह बादल, उनके साथियों और शिकायत करने वाले नेताओं को धार्मिक और राजनीतिक सजा सुनाई। इन सभी ने धार्मिक सजा तो भुगती लेकिन अकाली दल बादल राजनीतिक सजा भुगतने से बच गया। इसके चलते सुखबीर सिंह बादल के विरोध में एक नया अकाली दल, अकाली दल पुनर सुरजीत अस्तित्व में आया, जिसके चलते अकाली दल बादल के कई बड़े नेता इस अकाली दल के सदस्य बन गए। इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान खडूर साहिब से जीते आजाद उम्मीदवार भाई अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से आजाद उम्मीदवार के तौर पर जीते सरबजीत सिंह खालसा ने मिलकर नया अकाली दल ‘अकाली दल वारिस पंजाब दे’ बनाया।
तरनतारन में हो रहे उप-चुनाव के लिए अकाली दल ने सुधीर कुमार सूरी और सूबा सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद संदीप सिंह सनी के भाई मनदीप सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। अकाली दल पुनर सुरजीत, अकाली दल अमृतसर और अन्य पंथक दलों ने इस उम्मीदवार को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। दूसरी ओर, अकाली दल बादल ने भी एक धर्मनिष्ठ सैनिक की पत्नी सुखविंदर कौर को अपना उम्मीदवार बनाया है और अकाली दल बादल ने उन्हें जिताने के लिए हर संभव प्रयास किया है। अकाली दल के दोनों गुट, असली पंथक होने का दावा करने के अलावा,अपने उम्मीदवारों से पंथक वोट पाने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि वे एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं जिसने अपने प्राणों की आहूति दी है।
इसलिए, तरनतारन उपचुनाव को न केवल अकाली गुटों के भविष्य के लिए बल्कि पंजाब में पंथक राजनीति की दिशा के लिए भी एक महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ माना जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में धार्मिक मुद्दों और पंथक प्रतीकों के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर बढ़ते टकराव ने सिख राजनीति को बुरी तरह से विभाजित कर दिया है। ऐसे में इस चुनाव के नतीजे यह स्पष्ट कर देंगे कि आम पंथिक मतदाता किस तरफ खड़ा होना चाहता है। इस चुनाव को जहां अकाली गुटों के लिए अन्य राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को अपने पक्ष में करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं इसे दो अकाली गुटों के लिए आपसी टकराव ज्यादा माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों की राय में तरनतारन चुनाव के नतीजे अकाली दलों के लिए जनमत संग्रह माने जाएंगे। इस चुनाव में जो अकाली दल आगे आएगा, उसे पंथक पार्टी के रूप में मान्यता मिलेगी और वही गुट पंथक राजनीति का केंद्र बनेगा। लेकिन अगर नतीजे मिले-जुले रहे तो अगले विधानसभा चुनाव तक पंथक राजनीति में उथल-पुथल मची रहेगी।-इकबाल सिंह चन्नी
