क्या भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति पर बुलडोजर चलेगा

punjabkesari.in Monday, Jun 20, 2022 - 06:01 AM (IST)

प्रयागराज में मोहम्मद जावेद की पत्नी की मिल्कियत वाला मकान प्रशासन ने बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया। जावेद पर प्रयागराज में पत्थरबाजी करवाने व दंगे भड़काने का आरोप है। आरोप सिद्ध होने तक वह फिलहाल हिरासत में है। प्रशासन की इस कार्रवाई से कई कानूनी सवाल पैदा हो गए हैं। इस विषय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोविंद माथुर ने एक अखबार से हुई बातचीत में बताया कि ‘यह पूरी तरह से गैरकानूनी है। भले ही आप एक पल के लिए भी मान लें कि निर्माण अवैध था, लेकिन करोड़ों भारतीय भी ऐसे ही रहते हैं, यह अनुमति नहीं है कि आप रविवार को एक घर को ध्वस्त कर दें, जब उस घर का निवासी हिरासत में हो। यह कोई तकनीकी मुद्दा नहीं है बल्कि कानून के शासन का सवाल है।’ 

जस्टिस माथुर ने समझाया कि प्रशासन द्वारा बुलडोजर से केवल किसी संपत्ति का अवैध रूप से निर्मित हिस्सा या तो गिराया जा सकता है या उस पर जुर्माना लगा कर उसे कम्पाऊंड कर दिया जाता है। अगर मकान का कोई हिस्सा या अधिकतर भाग वैध रूप से निर्मित है तो उसे कभी भी ध्वस्त नहीं किया जा सकता। दंगे भड़काने के आरोपी को सजा देने के कई प्रावधान भारतीय दंड संहिता में हैं, लेकिन उसकी निजी संपत्ति गिराने का कोई प्रावधान कानून में नहीं है। किसी भी आरोपी के मकान या संपत्ति को केवल कुर्क किया जा सकता है, वह भी तब, जब वह फरार हो और भगौड़ा घोषित हो। 

जो आरोपी हिरासत में है, उसकी संपत्ति इस तरह नहीं गिराई जा सकती। इसलिए इस विषय पर देश के न्यायविदों में बहस छिड़ गई है। सरकार के विरोधी उस पर प्रशासन, पुलिस व न्यायपालिका तीनों की भूमिका एक साथ निभाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका आरोप है कि इस तरह हमारे लोकतंत्र में स्थापित चारों स्तम्भों का संतुलन बिगड़ जाएगा, जिससे कानून का नहीं, केवल डंडे का शासन चलेगा, जिससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चाहने वाले उनके इस अवतार से बेहद खुश और प्रभावित हैं। पिछले कुछ महीनों से योगी जी को एक नया नाम ‘बुलडोजर बाबा’ भी दे दिया गया है, जो शायद उन्हें भी सुहाता है, तभी पिछले चुनावों में इस नाम का भरपूर प्रचार किया गया। दरअसल पुलिस और कानून की जटिल व बेहद लम्बी प्रक्रिया से आम आदमी त्रस्त है। इसलिए वह तुरंत समाधान को कानून की प्रक्रिया से बेहतर मानने को विवश है। भारत जैसे सामंतवादी देश में राजा का कड़ा या अधिनायकवादी होना उसके प्रशंसकों को अच्छा लगता है। पर इसके बहुत सारे खतरे भी हैं। 

जिस तरह तेलंगाना में पुलिस ने 4 बलात्कारियों को अपनी हिरासत में फर्जी एनकाऊंटर में मार गिराया और आम जनता की वाह-वाही लूटी थी, उससे भी यह संदेश गया कि इस तरह सीधी सजा देना जनता को ज्यादा पसंद है। पर बाद में जब यह सिद्ध हो गया कि इन आरोपियों को पुलिस वालों ने अवैध तरीके से मारा, तो अब वे पुलिस वाले ही हत्या के आरोप का मुकद्दमा झेल रहे हैं। कानून की प्रक्रिया लम्बी व जटिल जरूर है, पर इसके पीछे एक पवित्र लक्ष्य है कि भले ही सौ अपराधी क्यों न छूट जाएं, पर किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। 

दूसरी तरफ पंजाब के आतंकवाद का उदाहरण है, जो किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा था तो वहां के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक के.पी.एस. गिल ने भी यही रास्ता अपनाया। आरोप है कि उन्होंने कुछ ही हफ्तों में सैंकड़ों आतंकवादियों को फर्जी एनकाऊंटर में मार गिराया, जिसका प्रभाव यह हुआ कि आतंकवाद काबू में आ गया। अब यह दोधारी तलवार है। मानवाधिकारों का संज्ञान लेकर अगर कानूनी प्रक्रिया से चला जाए तो दुर्दांत अपराधी को भी दशकों तक सजा नहीं होती। अगर फर्जी एनकाऊंटर वाला रास्ता अपनाया जाता है तो समस्या का तात्कालिक समाधान मिल जाता है, भले ही वह समस्या फिर से सिर उठा ले। 

अवैध निर्माण गिराने के मामले में तो एक और पेच है, वह यह कि अवैध निर्माण एकतरफा नहीं होते। उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश में जिस व्यापक स्तर पर अवैध निर्माण हो चुके हैं, वे विकास प्राधिकरणों, पुलिस व प्रशासन की मिलीभगत से ही हुए हैं, जिसके लिए बहुत मोटा पैसा रिश्वत में अफसरों को मिलता है। वरना अवैध निर्माण कोई चींटी का घर तो नहीं जो रातों-रात हो जाए। महीनों लगते हैं। तब ये अफसर क्या भांग पीकर सोए रहते हैं? पर संपत्ति ध्वस्त होती है केवल बनाने वाले की। तो इन अफसरों को क्या सजा मिलती है? कुछ नहीं। इसलिए अवैध निर्माण बेरोकटोक सालों साल चलते रहते हैं। 

सरकार चाहे किसी की भी हो। क्योंकि ऐसे अफसरों को अपने राजनीतिक आकाओं का संरक्षण प्राप्त होता है, जिनकी इस लूट में हिस्सेदारी होती है, इसलिए अवैध निर्माण की समस्या घटने की बजाय बढ़ती जा रही है। बुलडोजर बाबा को चाहिए कि एक सार्वजनिक अपील जारी करें, जिसमें अवैध भवनों के निर्माताओं को यह बताने के लिए प्रोत्साहित किया जाए कि उन्होंने यह अवैध निर्माण किन-किन अफसरों के कार्यकाल में, किस को कितने रुपए देकर किए थे। ऐसे नामों के सामने आने पर उनकी संपत्ति आदि की जांच की जाए और उन्हें कठोरतम सजा दी जाए। वरना मतदाता तो हर हाल में बर्बाद होगा ही, पर भ्रष्टाचारी अफसरों और नेताओं को कोई सबक नहीं मिलेगा। 

अगर जनता यह बताने में डरती है या संकोच करती है तो भी इन अफसरों को कड़ी सजा सिर्फ इस आधार पर ही दी जा सकती है कि इस अवैध निर्माण के दौरान वे उस शहर में संबंधित पदों पर तैनात थे और इन्होंने जानबूझ कर ऐसे अवैध निर्माणों के होते हुए उन पर से आंखें फेर लीं। अगर बुलडोजर बाबा पूरे प्रदेश में से 100-200 भ्रष्ट अफसरों को ऐसी सजा दे पाते हैं तो उनका डंका बजेगा। अगर नहीं कर पाते तो उनके बुलडोजर बाबा होने पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। आशा की जानी चाहिए कि अपनी दबंग छवि के अनुरूप योगी जी का बुलडोजर उन सैंकड़ों भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति पर भी उसी तीव्रता से चलेगा जिस तीव्रता से वे अपराधियों की संपत्ति को ध्वस्त करते आए हैं।-विनीत नारायण
 


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