क्या ‘ट्रम्प-मस्क’ की तल्खी और बढ़ेगी?

punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 04:48 AM (IST)

एक ओर दुनिया में कई अंतर्राष्ट्रीय समीकरण बदल रहे हैं। दूसरी ओर दुनिया का सबसे शक्तिशाली बल्कि दारोगा कहलाने वाला देश खुद आपसी कलह और निजी होड़ की तपिश झेल रहा है। क्या इसके मायने ये हैं कि इन सबके लिए राष्ट्रपति ट्रम्प ही जिम्मेदार हैं या बिजनेसमैन ट्रम्प? यह प्रश्न खुद अमरीकियों के लिए बड़ी पहेली और उससे ज्यादा अमरीका की खनक और धमक भरे भविष्य को लेकर परेशानी का सबब बना हुआ है। ट्रम्प-मस्क विवाद राजनीति और व्यापार के स्वार्थ भरे घालमेल के चलते उस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है जिसका सीधा असर वहां अंदरूनी राजनीति पर पडऩा तय है। एक तरफ सबसे अमीर इंसान, टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी कम्पनियों का मालिक एलन मस्क है तो दूसरी तरफ दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प। यह तो समझ आ गया कि सिर्फ भारत ही नहीं, अमरीका में भी अमीरों का असर कैसे राजनीति का रुख बदलता है।

ट्रम्प का चर्चित वन बिग ब्यूटीफुल बिल तो एक तरफ रह गया लेकिन दुनिया के बड़े कारोबारी और अमरीकी  राजनीति और अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकने वाले एलन मस्क की नई पार्टी बनाने की घोषणा ने कहीं न कहीं बड़बोले ट्रम्प को नई चुनौती तो दे ही डाली। मस्क ने नई पार्टी का संभावित नाम ‘द अमरीका पार्टी’ बता अपने एक्स खाते पर पोल तक करा लिया। इसमें 56 लाख लोग शामिल हुए और करीब 80.4 प्रतिशत यानी 44 लाख ने समर्थन किया। ट्रम्प के खिलाफ बदले रुख के साथ वहां की राजनीति ने बड़े उथल-पुथल की जनभावनाओं को हवा दे दी। क्या यह पोल वहां स्थापित दो दलीय व्यवस्था के लिए भी चुनौती साबित होगा? अनचाहे ही सही, इससे यह संकेत भी मिले कि अमरीकी राजनीति की दोनों प्रमुख पाॢटयों ने वहां की जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाया है। यह भी सच है कि ट्रम्प के चुनाव के बाद मस्क की संपत्ति में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ। महज 45 दिन में उनकी संपत्ति 170 बिलियन  डॉलर बढ़ी। जबकि मस्क ने ट्रम्प के चुनाव अभियान में 277 मिलियन डॉलर खर्चे। निश्चित रूप से इसे गिव एंड टेक कह सकते हैं। शायद ट्रम्प को लगा हो कि अतिमहत्वकांक्षी मस्क हर मोर्चों पर उनसे आगे न निकल जाएं? यही तो मस्क के पर कतरने की वजह नहीं?

सच्चाई ट्रम्प जानें लेकिन बात बहुत आगे जा चुकी है। इसका खामियाजा तय है। ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल शुरू से विवादित रहा। शपथ लेते हीउन्होंने जो कदम उठाए उससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में उथल-पुथल मची। पहले कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बताया फिर मैक्सिको खाड़ी का नाम बदला, पनामा नहर को वापस मांगा, गाजा पर कब्जे की बात कही, यूक्रेन को भरोसे में लिए बिना युद्ध खत्म कराने खातिर रूस के साथ सऊदी अरब में बातचीत की। इससे भी अधिक अमरीका पहुंचे यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ नोंक-झोक की जिसे यूरोपीय देशों ने गंभीरता से लिया। इतना ही नहीं यह ट्रम्प की व्यापारिक मानसिकता थी जो यूक्रेन से मदद के बदले खनिजों की हिस्सेदारी मांग बैठे जिससे खूब किरकिरी हुई। रूस-यूक्रेन युद्ध रुका भी नहीं और ट्रम्प की गुटरगूं बेकार हुई। अभिव्यक्ति की आजादी यानी ‘फ्री स्पीच’ पर दुनिया का चौधरी बनने की अमरीकी कोशिशें भी चर्चाओं में रहीं। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टॉर्मर के पहली बार अमरीका पहुंचने पर वहां ओवल दफ्तर में प्रैस कांफ्रैंस के दौरान अमरीकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस, कीर स्टॉर्मर से उलझ गए तो पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रम्प ने स्टॉर्मर पर ऐसी-ऐसी टिप्पणियां कीं कि खूब ठहाके लगे। यह अशोभनीय था। 

वहीं ट्रम्प के हालिया रेसीप्रोकल टैरिफ ने दुनिया की जबरदस्त ङ्क्षचता बढ़ा ही रखी थीं कि ट्रम्प-मस्क की दोस्ती के दुश्मनी में बदलते ही अमरीका की राजनीति इस सदी में उस दौर में आ  खड़ी हुई है जहां ट्रम्प के लिए चुनौतियां ही चुनौतियां हैं।अपने पूर्व करीबी सलाहकार मस्क को हल्के से लेते हुए ट्रम्प फिर बड़बोलेपन पर उतारू हैं। उनका कहना कि मैं चीन, रूस, ईरान और कई अहम मुद्दों पर व्यस्त हूं। एलन के बारे में सोचने का वक्त नहीं। एलन मस्क के पास अकूत दौलत, तकनीकी ताकत, और अब दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है। अमरीका में एक नए राजनीतिक दल का मस्क का बोया बीज कैसा आकार लेगा नहीं पता। लेकिन कहीं यह मौजूदा उफानों की तरह फैल गया तो अमरीकी राजनीति का दो दलीय आकार बदलना तय है। दिखता भी है कि अमरीकियों की दिलचस्पी और हवा का रुख अभी ट्रम्प से ज्यादा मस्क की ओर है। बस देखना है कि आगे-आगे होता है क्या?

यह नहीं भूलना होगा कि वही ट्रम्प हैं जो बार-बार भारत-पाकिस्तान के हालिया तनाव को खत्म करने की एकतरफा बात कहते नहीं थकते यह उनका उकसाने वाला जैसा बयान है। उधर, कनाडा के तत्कालीन विवादित प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दौर में भारत-कनाडा संबंध बेहद तल्खी भरे रहे। लेकिन अब नए प्रधानमंत्री का खुद बढ़कर हमारे प्रधानमंत्री से बात कर आमंत्रित करना और जी7 के 51वें  वाॢषक सम्मेलन में आमंत्रित करना भारत की दुनिया में हैसियत दिखाने के साथ बहुत बड़ा संदेश भी है।-ऋतुपर्ण दवे
     


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