क्या फिर विवादों में आएगा एस.आई.आर.
punjabkesari.in Sunday, Nov 09, 2025 - 04:31 AM (IST)
बिहार के बाद देश भर में विशेष मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण अभियान या एस.आई.आर. की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। चुनाव आयोग ने भले बिहार में एस.आई.आर. हर दृष्टि से सफलतापूर्वक सम्पन्न किया और उसके आधार पर विधानसभा चुनाव भी हो रहा है पर इसका यह अर्थ नहीं कि विरोधी इसे स्वीकार कर खामोश रहेंगे। 12 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 28 अक्तूबर से 7 फरवरी तक चलने वाले एस.आई.आर. को लगातार विवादों में लाया जाएगा।
ध्यान रखिए, जिन 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गहन पुनरीक्षण अभियान हो रहा है उनमें अगले 3 वर्षों के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव 2026 में, गोवा, गुजरात, उत्तर प्रदेश में 2027 में और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान में विधानसभा चुनाव 2028 में हैं। इसी में अंडेमान निकोबार व लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रदेश हैं। अगले वर्ष असम में भी चुनाव हैं जबकि उसे शामिल नहीं किया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का स्पष्टीकरण है कि भारतीय नागरिकता कानून में असम के लिए अलग प्रावधान है। उच्चतम न्यायालय की देखरेख में वहां नागरिकता की जांच लगभग पूरी होने वाली है। इसलिए असम के लिए अलग से संशोधन के आदेश जारी किए जाएंगे।
भाजपा और उसके कुछ साथी दलों को छोड़कर अनेक विरोधी चुनाव आयोग को निशाना बनाएंगे और संभव है फिर यह मामला न्यायालय में जाए। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बिहार में एस.आई.आर. पर रोक की अपील को स्वीकार नहीं किया। इसके लिए दिए गए ज्यादातर तथ्य गलत पाए गए। लेकिन जैसा हम जानते हैं पिछले काफी समय से भारत के चुनावों को विवादास्पद बनाने, उसे संदेह के घेरे में लाने की जिस तरह की कोशिश होती रही है वह जारी रहेगी। जिस तरह बिहार में इतने सशक्त, सघन और आक्रामक विरोधों तथा अस्वीकार्य आरोपों व लांछनों के बावजूद चुनाव आयोग ने अपना काम पूरा किया वैसे ही देश में भी यह पूरा होगा। जैसा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बताया इसके लिए एन्यूमरेशन फॉर्म को प्रिंट करने से लेकर राजनीतिक दलों के बी.एल.,बूथ लैवल एजैंट तथा सरकारी बी.एल.ओ. या बूथ लैवल आफिसर आदि का प्रशिक्षण 28 अक्तूबर से 3 नवम्बर तक चलेगा और उसके बाद 4 नवम्बर से 4 दिसम्बर तक घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी जुटाई जाएगी।
दावे और आपत्तियों की अवधि 9 दिसंबर, 2025 से 8 जनवरी, 2026 होगी तथा 9 दिसंबर, 2025 को अंतरिम मतदाता सूची सार्वजनिक की जाएगी। सूचना चरण यानी सुनवाई और सत्यापन 9 दिसंबर, 2025 से 31 जनवरी, 2026 तक चलेगा तथा अंतिम सूची 7 फरवरी 2026 को जारी होगी। इसके बाद भी किसी को आपत्ति होगी तो वह निहित प्रक्रिया के तहत अपना नाम जुड़वा सकते हैं। संक्षेप में देखें तो जैसा बिहार में हुआ वही सभी राज्यों में होगा। यानी अभी तक की मतदाता सूचियों के मतदाताओं को बी.एल.ओ. द्वारा विशिष्ट गणना फार्म दिया जाएगा। जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में होंगे उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज की आवश्यकता नहीं होगी। जिनके माता-पिता के नाम सूची में होंगे उन्हें भी कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा। निश्चित रूप से दस्तावेज जुटाने में समस्याएं आती हैं। किंतु बिहार में अगर पात्र मतदाता वंचित नहीं रहे तो मान कर चलना चाहिए कि देश में भी ऐसा ही होगा। वास्तव में चुनाव आयोग की भूमिका समय-समय पर मतदाता सूची को अद्यतन करना है किंतु विशेष पुनरीक्षण अभियान सामान्य अद्यतन प्रक्रिया नहीं है। एक अंतराल के बाद मतदाता सूची में शामिल अनेक व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी होती है तो अनेक स्थान बदल लेते हैं। स्थान बदलने से कई बार एक व्यक्ति के नाम कई जगह शामिल हो जाते हैं। कुछ अवैध नाम भी मतदाता सूची में शामिल कर लिए जाते हैं।
इस नाते इनका शुद्धिकरण आवश्यक होता है और यही एस.आई.आर. का लक्ष्य है। संविधान की धारा 326 के तहत कोई भी पात्र व्यक्ति मतदाता बनने से वंचित न रहे तो कोई अपात्र भी उसमें शामिल नहीं होना चाहिए। यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है। जरा सोचिए, मतदाता सूची के शुद्धिकरण का काम 21 साल पहले 2002-04 में हुआ था। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का यह कहना सही है कि बिहार में एस.आई.आर. सफल रहा है। वहां एक भी अपील नहीं आई। इसका मतलब है कि चुनाव कर्मियों ने बढिय़ा काम किया है। बिहार में कुल 68.66 लाख मतदाताओं के नाम कटे जबकि मतदाता सूची में 21,53,343 नए मतदाता शामिल किए गए हैं। राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव, सारे कम्युनिस्ट नेताओं ने इसे लेकर न जाने क्या-क्या कहा,पहले की मतदाता सूची में 22,34,136 मतदाता मृत पाए गए, 6.85 लाख मतदाताओं के नाम दोहरी प्रविष्टि वाले थे तो 36,44,939 मतदाताओं के स्थान स्थायी रूप से बदल चुके थे। राहुल गांधी और अनेक नेता, एक्टिविस्ट, पत्रकार आरोप लगाते ही हैं कि मोदी सरकार ने सारी संस्थाओं को अपने नियंत्रण में ले रखा है। इसलिए चुनाव में पराजित होने के बाद उनके द्वारा चुनाव आयोग को भी सरकार के नियंत्रण में काम करने वाली संस्था साबित करना बिल्कुल स्वाभाविक है।-अवधेश कुमार
