क्या विपक्षी एकता का नया सिक्का ढाल पाएंगे राहुल

Tuesday, Jan 31, 2023 - 05:45 AM (IST)

सोमवार की सुबह दिल्ली में देर रात जमकर बारिश के बाद धूप निकली। लेकिन क्या कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद विपक्ष के लिए भी कोई राहत या सत्ता के लिए धूप निकलेगी? यह बड़ा सवाल है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक पांच महीने और बारह राज्यों के बीच से होती आई करीब 4000 किलोमीटर से कुछ ज्यादा की इस लंबी नफरत छोड़ो, देश जोड़ो के नारे के साथ श्रीनगर के लालचौक में भारतीय तिरंगा फहराकर इस यात्रा का अंतिम चरण हुआ। 

इसके साथ ही आजादी के 75 साल में पं. जवाहरलाल नेहरू के बाद राहुल गांधी देश के दूसरे ऐसे बड़े नेता रहे, जो सार्वजनिक रूप से लालचौक पर यह काम कर पाए। लेकिन भाजपा यह कहने से नहीं चूकी कि झंडा फहराने के  हालात पैदा करने का काम तो भाजपा ने ही किया, पहले तीन दशकों तक क्या हाल रहा, देश जानता है। लेकिन राहुल गांधी की इस कमरकस मेहनत से जुड़ा सबसे अहम सवाल यह है कि क्या कांग्रेस को इससे कोई लाभ हुआ या होगा? क्या कांग्रेस के काफिले में यह यात्रा कुछ नए साथियों को जोडऩे में सफल रही? अगर कुछ नए साथी जुड़े भी तो क्या वे राजनीतिक रूप से इतने सशक्त हैं कि कांग्रेस बड़े लाभ की स्थिति में पहुंच जाए? 

क्या कांग्रेस प्रदेशों में अपनी खोई जमीन वापस ले पाएगी। क्या इस यात्रा से विपक्ष की एकता का कोई मजबूत सिक्का ढल पाया? यूं तो यात्रा का परोक्ष मकसद भले ही राजनीतिक न हो , लेकिन यात्रा पूरी तरह से राजनीतिक रही, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। यह सच है कि राहुल गांधी ने इस यात्रा से अपनी एक अलग छवि बनाई है, जुझारू नेता की। उन पर 24 गुणा 7 के नेता न होने के जो आरोप वर्षों से लगते थे कि वे अल्पकालिक नेता हैं , वो पांच महीने की यात्रा से एक क्रम में टूट गए। एक बार भी उन्होंने यात्रा को तोड़ा नहीं, छोड़ा नहीं। 

राहुल कह रहे हैं कि विपक्ष में कोई बिखराव नहीं है। हम संघ और भाजपा की विचारधारा के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। कैसे, का उनके पास कोई जवाब नहीं है। एक तरह से यात्रा के दौरान उन्होंने पूरे विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का न्यौता दिया। मगर स्थिति यह है कि विपक्ष के सभी बड़े नेता चाहे वह ममता बनर्जी हों, के.सी.आर.हों, अरविंद केजरीवाल हों, अखिलेश यादव हों, मायावती हों या नवीन पटनायक हों, कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट होने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं। 

‘भारत जोड़ो यात्रा’ जब देश के विभिन्न राज्यों से होकर गुजर रही थी तो वहां के प्रमुख विपक्षी नेताओं को यात्रा में शामिल होने का न्यौता जाता था। मगर कुछ चुनिंदा सहयोगी दलों को छोड़ दें तो बाकी सबने इस यात्रा से दूरी ही बनाकर रखी। जो पुराने साथी थे, वे भी नहीं आए। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस 135 दिन की इस यात्रा के बाद भी किसी अन्य दल या मोर्चे का नेतृत्व स्वीकार करेगी? राहुल के पास इसका कोई जवाब नहीं था और मुझे भी लगता है कि अगले 8-9 महीने तक कोई उत्तर ढूंढने की कोई कोशिश करनी भी चाहिए। 

लेकिन लगता है कि अब भी राहुल के सलाहकार राजनीति में शतरंज का खेल ठीक से नहीं खेल पा रहे हैं। उन्हें अपने पैदल खिलाडिय़ों पर ज्यादा भरोसा है, जबकि आज की राजनीति घोड़े और हाथी की है। एक बोल से भाजपा एंड कम्पनी उन्हें निशाने पर लेने को आतुर है। समापन में राहुल गांधी ने एक और बड़ी बात कह दी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो कश्मीर में अनुच्छेद 370 को फिर से बहाल करेगी। उन्हें लगता है कि इससे उनके पास जम्मू-कश्मीर की सत्ता आ जाएगी। इसकी भी क्या गारंटी है? लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इसका असर देश के बाकी हिस्सों पर क्या पड़ेगा? शायद दक्षिण से उत्तर तक देश की यात्रा करने और लोगों से मिलने के बाद भी उनके मानस को समझने में अभी चूक हो रही है। 

इसलिए जरूरी है कि वह चाहें तो देश के पूर्व से पश्चिमी छोर तक की एक यात्रा और करें। खासकर उस हिंदी पट्टी की भावनाओं को बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करें, जहां से केंद्र की सत्ता का दरवाजा खुलता है। इससे उन्हें राजनीतिक परिपक्वता बनाने में मदद मिलेगी, जो यह समझ पैदा करती है कि किन मुद्दों पर मौन रहना है। राहुल का कहना रहा है कि वह नोटबंदी, जी.एस.टी. और चीन पर बात करना चाहते हैं मगर सदन में उनका माइक बंद कर दिया जाता है। वास्तविकता यह है कि नोटबंदी, जी.एस.टी. और चीन ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर जनता की राय बंटी हुई है। सरकार और भाजपा ने एक पार्टी के रूप में इन मुद्दों पर समाज में अधिकांश लोगों के बीच मीडिया के सहयोग से अपनी एक विशेष राय बना दी है। ऐसे में उसे काऊंटर करना कांग्रेस और राहुल के लिए अपनी तमाम ऊर्जा को जाया करना ही है। 

2024 से पहले राहुल या कांग्रेस नेताओं के कहने भर से कोई विश्वास नहीं करेगा। पिछले चुनाव गवाह हैं कि नोटबंदी, जी.एस.टी. और चीन नीति पर भाजपा जनता का विश्वास जीत चुकी है, इसलिए जरूरी है कि राहुल इन मुद्दों पर मौन के महत्व को समझें। ऐसे ही धर्म और हिन्दू-मुसलमान से जुड़े मुद्दों पर भी उन्हें और उनके पार्टी नेताओं को मौन का अभ्यास करना होगा। यात्रा के दौरान राहुल के भाषणों से जो भ्रम फैला या जो नुक्सान हुआ, उसे राहुल को समझना होगा। 

समझना होगा कि महाराष्ट्र में गोलवलकर पर हमला करना घातक रहा। मध्य प्रदेश में वनवासी और आदिवासी की बात करने से नुक्सान हुआ। समझना होगा कि धार्मिक बातों या आख्यानों में वह न ही पड़ें तो अच्छा होगा। हर-हर महादेव कहने-न कहने या कोई जयसिया राम कहता है-नहीं कहता है, उस पर सवाल उठाकर अपनी साख को राख में मिलाने की जरूरत नहीं है। भाषणों को लंबा करने के चक्कर में गाय, बैल और सूअर का उल्लेख करना लाभ नहीं देता। यात्रा की बड़ी उपलब्धि तभी होगी जब राहुल अपने सोए कार्यकत्र्ताओं को लगातार कार्यक्रम देते रहें। उनकी इस यात्रा से वे जागे हैं, अभी दौडऩे की स्थिति में नहीं हैं।-अकु श्रीवास्तव

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