गुजरात का प्रयोग क्या अन्य राज्यों में दोहराएगी भाजपा

punjabkesari.in Saturday, Dec 24, 2022 - 04:33 AM (IST)

गुजरात में भाजपा की प्रचंड विजय के बाद कर्नाटक, मध्यप्रदेश , राजस्थान और छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं को धुकधुकी हो रही है। इन नेताओं को लग रहा है कि गुजरात में भाजपा ने जीत के जिस फार्मूले पर अमल कर शानदार सफलता हासिल की उसके बाद तय है कि उनके राज्यों में भी ऐसा ही कुछ किया जाएगा लिहाजा उन पर तलवार लटकनी शुरू हो गई है। अगले साल के मध्य में कर्नाटक और साल के अंत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव हैं। कर्नाटक में जगदीश शटटार से लेकर ईश्वररप्पा मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री कमजोर विकेट पर हैं। छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को लग रहा है कि उनकी राज्य की राजनीति में सक्रिय वापसी हो जाएगी। 

राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की फेर में लगती हैं। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को लगता है कि चुनाव के बाद फिर से मुख्यमंत्री पद का नवीनीकरण हो जाएगा। लेकिन जिस तरह से गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी समेत करीब चालीस विधायकों को ठिकाने लगाया गया उससे साफ है कि भाजपा आलाकमान कोई नई नीति ला रहा है। इनमें से करीब एक दर्जन तो पिछला चुनाव 15 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। इनमें से कुछ तो पिछले 2-3 बार से चुनाव जीतते आ रहे थे। इनमें से काफी 75 साल से नीचे थे। (75 साल भाजपा में अघोषित रूप से रिटायरमैंट उम्र मानी जाती है।) 

अलबत्ता अधिकांश जिंदगी के 65 बसंत देख चुके थे। तो क्या यह माना जाए कि भाजपा आलाकमान राज्य के नेताओं के लिए  नई रिटायरमैंट उम्र ला रहा है। क्या यह माना जाए कि आला कमान ने युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है। क्या यह माना जाए कि आला कमान को लगता है कि लगातार दो-तीन-चार बार जीता हुआ विधायक सत्ता विरोधी रुझान पैदा करता है या फिर यह माना जाए कि गुजरात में जो हो रहा है वह चुनाव जीतने की एक नई रणनीति भर है और इसे नया राजनीतिक प्रयोग नहीं समझा जाए। 

इन नेताओं को लगता है कि हिमाचल में भी भाजपा ने ऐसे ही प्रयोग किए थे लेकिन वह चुनाव हार गई। यूं भाजपा आलाकमान अपने को हिमाचल में हारा हुआ नहीं मान रहा है। कुल मिलाकर 5 हजार वोटों का ही तो अंतर है ऐसा तर्क दिया जा रहा है। वैसे देखा जाए तो गुजरात के चुनाव में भाजपा का जीतना तय था लेकिन ऐसे प्रयोग करने से उनकी सीटों की संख्या बढ़ गई। अब अगर कोई प्रयोग एक बड़े राज्य में सफल हो जाता है तो कोई भी दल उसे अन्य राज्यों में दोहराना जरूर चाहेगा। 

अगर हम मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो साफ है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का बदलाव का नारा चला था। आखिर रमन सिंह के 15 साल हो गए थे और एक पीढ़ी ने कांग्रेस का शासन देखा तक नहीं था। वहां रायपुर से लेकर दंतेवाड़ा तक में युवा पीढ़ी यही कह रही थी कि रमन सिंह ने ठीक-ठाक शासन किया है लेकिन अब हम बदलाव चाहते हैं। एक बार कांग्रेस को आजमाना चाहते हैं। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश में भी दिख रहा था जहां मामाजी के शासन से वोटर का एक बड़ा वर्ग ऊबने लगा था। राजस्थान में तो खैर 5 साल बाद तवे पर रोटी पलट देने की तर्ज पर सरकार बदलने का रिवाज रहा है जिसे दोहराया गया लेकिन यहां भी वसुंधरा राजे को केन्द्रीय संगठन में लाकर संकेत दे दिए गए थे कि बस अब बहुत हुआ। 

ऐसा ही रमन सिंह के साथ भी हुआ। शिवराज सिंह चौहान ज्योतिरादित्य सिंधिया की मेहरबानी से फिर से सत्ता में आने और अन्य भाजपा नेताओं के बीच भारी खेमेबाजी का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री बन गए लेकिन वह भी जान रहे हैं कि 2023 के चुनावी नतीजों के बाद कुछ भी हो सकता है। कहा जा रहा है कि राजस्थान में भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे को संकेत दे रहा है कि उन्हें विधानसभा चुनाव नहीं लडऩा चाहिए। अपने बेटे की सीट झालावाड़ से 2024 का लोकसभा चुनाव लडऩा चाहिए और तीसरी बार बनने वाली  मोदी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालना चाहिए। लेकिन वसुंधरा राजे आसानी से मानने वाली नहीं हैं हालांकि आलाकमान अब सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात कर रहा है। मोदी के नाम पर चुनाव लडऩे की बात हो रही है। 

खैर, लौटते हैं गुजरात के प्रयोग पर। देखा जाए तो भाजपा आलाकमान ने केरल से सीख ली थी। केरल में वाम मोर्चे की सरकार के मुखिया पी. विजयन ने पिछले विधानसभा चुनाव में अनूठा प्रयोग किया था। उन्होंने लगातार दो बार जीते नेताओं के टिकट काट दिए। इसमें कोरोना काल में शानदार काम करने वाली स्वास्थ्य मंत्री भी थी। विजयन ने तर्क दिया कि बुजुर्ग अगर इसी तरह चुनाव जीतने के साथ बार-बार विधानसभा में लौटते रहेंगे तो फिर नौजवानों को कैसे मौका मिल सकेगा।

कुल मिलाकर एक वक्त सिटिंग गेटिंग चलता था यानी जो विधायक जीत जाता था वह अगले चुनाव में टिकट के प्रति 100 फीसदी आश्वस्त हो जाता था। उसका टिकट कटता भी नहीं था। लेकिन अब एक तिहाई से लेकर आधे विधायकों के टिकट काटे जाने लगे हैं। इसके साथ ही 10 हजार से कम वोटों से जीते विधायकों को दोहराने की संभावना भी कम होती जा रही है। यह एक नया प्रयोग है। जो हमेशा सफल नहीं होता लेकिन आमतौर पर सफल होता है। पंजाब में कांग्रेस ने दलित चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन कामयाब नहीं हो सके। इसकी वजह चन्नी से ज्यादा सिद्धू को माना गया लेकिन चन्नी का दो जगह से हारना बताता है कि कांग्रेस सियासी प्रयोग में भी पिछड़ती रही है। वहीं भाजपा को कामयाबी ज्यादा मिली है।-विजय विद्रोही


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