क्या ‘आप’ दिल्ली में 2020 में फिर जीत पाएगी

Saturday, Aug 03, 2019 - 03:46 AM (IST)

यद्यपि दिल्ली में चुनाव अगले वर्ष के शुरू में होने हैं, आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा लिए गए अथवा प्रस्तावित विभिन्न निर्णय स्पष्ट संकेत देते हैं कि सरकार चुनावी मोड में है। समाचार पत्र खुशी देने वाले कार्यों, जो ‘आप’ ने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में लागू किए हैं, दिल्ली मैट्रो तथा दिल्ली परिवहन निगम की बसों में महिलाओं के लिए नि:शुल्क यात्रा के इसके प्रस्ताव संबंधी पूरे पृष्ठों के विज्ञापनों से भरे पड़े हैं और अब इसने दिल्ली में अवैध कालोनियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया संबंधी नीतियों की घोषणा की है। 

यह सब निश्चित तौर पर दिल्ली में मतदाताओं के कुछ वर्गों को खुशी प्रदान करेगा लेकिन गिरते हुए समर्थन आधार के साथ दिल्ली में एक और विजय प्राप्त करने के लिए क्या यह ‘आप’ के लिए पर्याप्त होगा? 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘आप’ की बुरी तरह से पराजय के बावजूद इस बात की अभी भी सम्भावना है कि दिल्ली के मतदाता एक अन्य कार्यकाल के लिए अन्यों के मुकाबले ‘आप’ को अधिमान देना चाहेंगे। 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणामों में प्रतिङ्क्षबबित मतदाताओं के मूड को देखते हुए यह एक बहुत बड़ा कार्य दिखाई देता है लेकिन असम्भव नहीं। 

इसके गिरते हुए समर्थन आधार को देखते हुए यह ‘आप’ के लिए एक अत्यंत कठिन कार्य दिखाई देता है। जब इसने 2013 में पहली बार दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव लड़े थे तो ‘आप’ को 29.4 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसने भाजपा तथा कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर दी थी, जिन्हें क्रमश: 33 तथा 24.5 प्रतिशत वोट मिले थे। 2015 के विधानसभा चुनावों में इसकी मत हिस्सेदारी उल्लेखनीय रूप से बढ़ कर 54.3 प्रतिशत हो गई जब इसने 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतीं। यह काफी हद तक कांग्रेस की कीमत पर था, जिसकी मत हिस्सेदारी गिर कर 9.5 प्रतिशत रह गई, जबकि भाजपा को 32.6 प्रतिशत वोट मिले थे और वह अपना महत्वपूर्ण जनाधार बनाए रखने में सफल रही थी। 

इन दो चुनावों के बीच जब 2014 के लोकसभा चुनाव हुए, ‘आप’ को 32.9 प्रतिशत जबकि भाजपा को 46.4 प्रतिशत वोट पड़े। ऐसा दिखाई देता है कि ‘आप’ के समर्थन आधार में नियमित गिरावट आई क्योंकि इसने 2017 में आयोजित स्थानीय निकाय चुनावों में खराब कारगुजारी दिखाते हुए भाजपा के 36.2 प्रतिशत वोटों के मुकाबले 26.25 प्रतिशत वोटें प्राप्त कीं। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इसकी कारगुजारी खराब रही क्योंकि इसने एक भी सीट नहीं जीती और इसे 18 प्रतिशत वोट मिले, जो कांग्रेस को मिले 22.5 प्रतिशत वोटों से कम थे। भाजपा को इन चुनावों में रिकार्ड 56.5 प्रतिशत वोट मिले। गत कुछ चुनावों के दौरान ‘आप’ की चुनावी कारगुजारी को देखते हुए हैरानी होगी यदि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में ‘आप’ पलड़े को अपने पक्ष में कर सके। 

कार्य कठिन लेकिन असंभव नहीं
कार्य कठिन हो सकता है लेकिन असम्भव नहीं। ‘आप’ यह देखते हुए अभी भी आशा कर सकती है कि दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार किया है और लोग अन्य पांच वर्षों के लिए पार्टी को शासन करने का एक अवसर दे सकते हैं, बेशक उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में इसे पूरी तरह से नकार दिया था। आखिरकार मतदाता अलग राजनीतिक विकल्प चुनने के लिए जाने जाते हैं, यहां तक कि जब चुनाव एक साथ आयोजित हों (2019 में ओडिशा में) या जल्दी-जल्दी आयोजित करवाए जाएं जैसे कि दिल्ली में 2013-2014 तथा 2015 में। 

‘आप’ द्वारा आशा रखने के पीछे कारण हैं, जैसे कि 2015 का जनादेश 2014 के शीघ्र बाद आया था, जिसे 2020 के विधानसभा चुनावों में दोहराया जा सकता है (हालांकि उतने बड़े पैमाने पर नहीं)। 2015 के जनादेश की पुनरावृत्ति ‘आप’ के लिए एक सपना ही हो सकती है लेकिन एक विजय अथवा करीबी टक्कर अभी भी सम्भावित है क्योंकि ‘आप’ समाज के सबसे निचले तथा निचले वर्गों में अभी भी लोकप्रिय बनी हुई है, जाति तथा वर्ग दोनों मामलों में। हालांकि मध्यम तथा उच्च मध्यम वर्ग में इसकी लोकप्रियता में नाटकीय रूप से गिरावट आई हो सकती है। प्राथमिक स्वास्थ्य तथा स्कूली शिक्षा इसकी  दो प्रमुख योजनाओं ने मुख्य रूप से निम्र तथा गरीब वर्गों से संबंधित लोगों को लाभान्वित किया। 

लोकलुभावन योजनाएं
डी.टी.सी. की बसों में नि:शुल्क टिकट तथा अवैध कालोनियों के नियमितीकरण की हालिया घोषणा को इसके इन वर्गों में समर्थन आधार को मजबूत करने के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है। इसके साथ ही 200 यूनिट तक के बिजली के बिलों को माफ कर दिया गया है, जिससे लगभग 21 लाख उपभोक्ताओं का बिजली बिल शून्य हो जाएगा। दिल्ली में महिलाओं के लिए डी.टी.सी. बस का सफर मुफ्त करके दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की सरकारों की लोकलुभावन योजनाओं से एक कदम आगे रहने का प्रयास कर रही है, जैसे कि बिहार में नीतीश कुमार की स्कूली बच्चियों के लिए साइकिल योजना, तेलंगाना में के. चन्द्रशेखर राव की शादी मुबारक योजना, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की हमारी बेटी, उसका कल योजना, ओडिशा में बीजू पटनायक की शिशु सुरक्षा योजना तथा बीजू कन्या रत्न योजना, हरियाणा में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, मध्य प्रदेश में लाडली योजना आदि। 

कुछ सरकारों की सफलताएं तथा इसके साथ ही कुछ की असफलताएं संकेत देती हैं कि चुनाव जीतने के लिए ये योजनाएं काफी नहीं, चुनावी सफलता के लिए जरूरत है योजना के अतिरिक्त भी कुछ करने की। बेशक ऐसी योजनाओं से अरविन्द केजरीवाल सरकार महिला मतदाताओं का समर्थन अपने पक्ष में करने में सफल हो जाए लेकिन एक अन्य चुनाव जीतने हेतु पार्टी के लिए इतना काफी नहीं। 2015 की विजय का श्रेय अरविन्द केजरीवाल की निजी लोकप्रियता को भी जाता है और यहां तक कि ‘पांच साल केजरीवाल’ के नारे को भी लेकिन 2020 में ‘आप’ की यही कमजोरी बनेगी क्योंकि केजरीवाल 2015 की तरह लोकप्रिय नहीं हैं और जनता के बीच उत्साह पैदा नहीं करते।-एस. कुमार    

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