क्या अफगानिस्तान में एक नया खेल शुरू होगा

punjabkesari.in Friday, Feb 03, 2023 - 06:08 AM (IST)

अफगानिस्तान से वापसी के बाद अमरीका और पाकिस्तान के संबंधों में रणनीतिक रूप से गिरावट आई है। हालांकि चीन प्रेरित आर्थिक संकट और आई.एम.एफ. द्वारा ऋण पैकेज के इंकार के अलावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के साथ इसकी लड़ाई में पाकिस्तान में अमरीकी हितों को नवीनीकृत किया गया है। 

अमरीकी हितों के कारण विविध हैं और उनका संबंध दक्षिण और मध्य एशिया के साथ गहरा है। तालिबान को इस्लामाबाद के सक्रिय समर्थन के बावजूद पाकिस्तान को अमरीकी हितों के लिए आवश्यक वित्तीय और सैन्य समर्थन मिलेगा। जैसा कि उसने अतीत में किया है। वाशिंगटन के लिए विकास ने अपनी रणनीतिक पहुंच बनाने के लिए दो क्षेत्रों में फिर से एक छलांग लगाने के अवसर को बढ़ाया है। पाकिस्तान दो क्षेत्रों के मुहाने पर स्थित है। दक्षिण में रूस और इसके रणनीतिक पिछवाड़े में मध्य एशिया पाकिस्तान को और भी अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण बनाता है। 

पाकिस्तान के दृष्टिकोण से देखें तो अमरीकी हित ने उसे आगे बढ़ाने और भारत के खिलाफ सैन्य लाभ उठाने की अनुमति दी। 1954 में अमरीकी सरकार ने अपने पारस्परिक रक्षा समझौते के बदले 500 मिलियन डालर के सैन्य सहायता पैकेज की घोषणा की। इसके अलावा 1967 से 1980 तक अमरीका ने लगभग 6 बिलियन डालर की सैन्य और तकनीकी सहायता प्रदान की। पाकिस्तान ने इस सहायता का इस्तेमाल भारतीय हितों के खिलाफ किया। पाकिस्तान किसी भी संघर्ष से पूर्व अमरीका से अपेक्षा करता था कि वह उसकी सुरक्षा की गारंटी देगा। 1965 के युद्ध से पहले आयूब खान ने मांग की थी कि अमरीका के साथ गठबंधन के माध्यम से प्रदान की गई गारंटी के एक आवश्यक घटक के रूप में भारत की ‘आक्रामकता’ के खिलाफ पाकिस्तान को सुरक्षित करना स्वीकार करना चाहिए। 

लेकिन इस्लामाबाद ने भी महसूस किया कि वाशिंगटन भारत के खिलाफ ‘ब्लैंक चैक’ जारी करने के लिए तैयार नहीं था। 1971 के युद्ध में एक बार फिर बाजी भारत के खिलाफ हो गई। अमरीका के सातवें बेड़े ने सुनिश्चित किया कि भारत पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करवाने के दौरान पाक अधिकृत कश्मीर (पी.ओ.के.) को वापस लेने पर विचार न करे। बाद में अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण के दौरान पाकिस्तान ने 1980 से लेकर 1990 तक अमरीका से 3.2 बिलियन डालर की वित्तीय सहायता प्राप्त की जिससे मुजाहिद्दीन को सोवियत संघ के खिलाफ लडऩे में मदद मिली। इसके साथ-साथ पाकिस्तान को अमरीका ने एफ-16 की आपूर्ति की। 

परमाणु परीक्षणों के बाद पाकिस्तान ने एक समान दृष्टिकोण अपनाया और हमेशा परमाणु हथियार रखने के अपने इस्लामिक देश की यथास्थिति का प्रयोग किया। परमाणु ब्लैकमेङ्क्षलग के माध्यम से उसे पर्याप्त लाभ प्राप्त हुआ। 9/11 ने फिर से अमरीका और पाकिस्तान को एक-दूसरे के साथ अधिक सामरिक आलिंगन में ला दिया। पाकिस्तान एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी बन गया। उसे 2002 से लेकर 2014 के दौरान 5.81 बिलियन डालर की सैन्य सहायता मिली जिसमें से हथियारों की बिक्री घटक 3.2 बिलियन डालर थी। 

ऐबटाबाद में ओसामा के मारे जाने के बाद कुल वित्तीय और सैन्य सहायता 2011-2015 तक 40 प्रतिशत तक कम हो गई। अफगानिस्तान से अमरीका के बाहर निकलने से पहले के वर्षों में तालिबान के साथ बातचीत में वाशिंगटन कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से इस्लामाबाद पर निर्भर हो गया था। पाकिस्तान के मामले के अध्ययन से साबित होता है कि कमजोर देश महान शक्तियों की असुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के कुप्रबंधन पर पनपते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के फैलने से बहुत पहले से ही पाकिस्तान को सकारात्मक प्रस्ताव दे रहा है। उसने 2015 में पाकिस्तान पर से हथियार प्रतिबंध हटा लिया था। रूस ने ईरान और पाकिस्तान की पाइपलाइन राजनीति में अपनी रुचि फिर से जगाई है और पाकिस्तान को कच्चे तेल की आपूर्ति करने की इच्छा व्यक्त की है। 

यह उल्लेख करना उचित है कि अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (2022) ने आतंकवाद के मुद्दे पर जोर दिया है लेकिन पाकिस्तान में आतंकवादी मॉड्यूल को आतंक के स्रोत के रूप में नामित करने के लिए जानबूझ कर छोड़ दिया है। तालिबान को एक चुनौती के रूप में उल्लेख किया गया है। शक्ति के इस नए उभरते हुए खेल में पाकिस्तान को कौन से सैन्य और वित्तीय पैकेज मिलेंगे? क्या अफगान-तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टी.टी.पी.) और अन्य इस्लामिक समूहों को कुचल दिया जाएगा? क्या अफगानिस्तान में एक और सैन्य हमला होगा जैसा कि 1979-80 में हुआ था।-निशिता कौशिकी, निखिल शर्मा


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