क्या ‘रक्षा बजट’ सुरक्षा चुनौतियों पर खरा उतरेगा

Saturday, Feb 16, 2019 - 04:20 AM (IST)

कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार का 2019-20 का अंतरिम बजट एक फरवरी को पेश करते समय तालियों की गूंज में घोषणा की, ‘‘पहली बार रक्षा बजट का आबंटन 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक होगा।’’ उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष के लिए 2,95,511 करोड़ रुपए की रकम उपलब्ध करवाई गई थी, जिसमें से कितनी खर्चे बिना रह जाएगी, अभी स्पष्ट नहीं। वित्त वर्ष 2019-20 के लिए फिलहाल बजट 3,18,931.10 करोड़ रुपए निर्धारित किया गया है, यानी 23420 करोड़ रुपए की वृद्धि। रक्षा पैंशन बजट 1,12,080 करोड़ रुपए अलग निर्धारित किया गया है, जिसमें सिविलियन रक्षा कर्मचारियों की पैंशन भी शामिल है। 

रक्षा बजट को मुख्य तौर पर 2 बड़े हिस्सों में बांटा गया है: कैपिटल हैड के अंतर्गत 1,03,380.34 करोड़ रुपए तथा राजस्व हैड के अंतर्गत 1,98,485.76 करोड़ रुपए। इसके अतिरिक्त 17,065 करोड़ रुपए की रकम रक्षा मंत्रालय (एम.ओ.डी.) के खाते में अलग से आरक्षित है। प्रश्र उठता है कि रुपए की गिरावट, बढ़ रही महंगाई तथा सुरक्षा चुनौतियों के संदर्भ में रक्षा बजट में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि हथियारों की खरीद-फरोख्त, सशस्त्र सेनाओं के वेतन भत्ते तथा अन्य कई तरह की वित्तीय जरूरतों तथा सुरक्षा चुनौतियों पर क्या खरी उतरेगी? याद रहे कि चीन का बजट 215 बिलियन डालर है तथा पाकिस्तान के बजट में इस बार 20 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। 

कैपिटल (पूंजीगत) फंड : इस हैड के अंतर्गत सुरक्षा जरूरतों के लिए हथियार, उपकरण, अन्य साजो-सामान, संचार साधन आदि की खरीद-फरोख्त तथा निर्माण, बुनियादी ढांचे का खर्च मुख्य तौर पर कैपिटल फंड से ही होता है। जैसे कि चर्चा का गम्भीर विषय बने 36 राफेल विमानों की कीमत 60,000 करोड़ रुपए बनती है, बजट से पहले डिफैंस एक्वीजिशन कौंसिल (डी.ए.सी.) ने नौसेना के लिए पनडुब्बियों के प्रोजैक्ट हेतु 40,000 करोड़ रुपए की मंजूरी दी तथा मिलान एंटी टैंक मिसाइल के लिए 1200 करोड़ रुपए की। फिर पिछले वर्ष दिसम्बर में 4 तलवार क्लास फ्रिगेट्ज तथा ब्रह्मोस मिसाइल के लिए 3000 करोड़ रुपए की स्वीकृति। सितम्बर में आकाश मिसाइल के लिए 9100 करोड़ रुपए, अगस्त में नौसेना को 21738 करोड़ रुपए की लागत से 111 यूटिलिटी हैलीकाप्टर तथा कुछ अन्य सामान के लिए 24,879 करोड़ रुपए की स्वीकृति, जून में कुछ अन्य रक्षा उपकरणों के लिए 5500 करोड़ रुपए की स्वीकृति मिली। 

डी.ए.सी. ने काफी समय पूर्व 3500 करोड़ रुपए की लागत से 46ए, टी-90 टैंक रूस से खरीदने की स्वीकृति दी थी। गत वर्ष अक्तूबर में रूस से एस-400 एयर डिफैंस मिसाइल सिस्टम खरीदने बारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच समझौता हुआ, जिसकी कीमत करीब 45000 करोड़ रुपए होगी तथा इसके 2020 तक मिल जाने की आशा है, यदि कोई रुकावट न आई। 

इंफैंटरी के लिए दशकों पुरानी प्राथमिक तथा आवश्यक जरूरत के लिए फिलहाल एम.ओ.डी. ने 72,400 असाल्ट राइफलें अमरीका की एक कम्पनी से 700 करोड़ रुपए की लागत से खरीदने की स्वीकृति दी है। वैसे तो 6,50,000 अन्य राइफलों तथा 3,25,000 हल्की कार्बाइनों तथा मशीनगनों की जरूरत है। सूची बहुत लम्बी है और यदि ये सब कुछ प्राप्त करना है तो कैपिटल हैड में तो 2019-20 के दौरान फिलहाल केवल 1,03,380.34 करोड़ रुपए ही उपलब्ध होंगे, चाहे यह भुगतान किस्तों में ही क्यों न हो। प्रश्न यह भी है कि ये ढेर सारी स्वीकृतियां गत एक वर्ष में ही क्यों? 

राजस्व हैड : इस फंड में 1,98,485.76 करोड़ रुपए की रकम उपलब्ध करवाई गई है, जिसमें से एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का बजट तीनों सशस्त्र सेनाओं के सैनिकों, अधिकारियों तथा शामिल सिविलियनों के वेतन-भत्तों आदि पर खर्च होगा। इसके अतिरिक्त गाडिय़ों, टैंकों, तोपों, विमानों, हैलीकाप्टरों, पनडुब्बियों आदि की देखभाल, तेल वगैरह के खर्चों की पूर्ति भी इस हैड के अंतर्गत होती है। सेना की विभिन्न तरह की सिखलाई का खर्च भी इसी फंड से होता है। 

उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2019-20 के लिए रक्षा बजट केन्द्र सरकार के कुल खर्च का 15.5 प्रतिशत है, जोकि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) का मात्र 2.05 प्रतिशत बनता है। हकीकत तो यह है कि एम.ओ.डी. के फुटकल खर्चे के लिए बजट में 17,065 करोड़ रुपए की रकम भी शामिल है। एम.ओ.डी. के दस्तूर के मुताबिक इस रकम को अलग रखने के लिए इसे रक्षा बजट से घटाने के कारण जी.डी.पी. का मात्र 1.4 प्रतिशत ही रह जाता है, जबकि वर्ष 2014-15 में यह जी.डी.पी. का 2.08 प्रतिशत था और गत वर्ष यह दर 1.58 प्रतिशत ही रह गई। इसका अर्थ यह कि बजट अग्रगामी नहीं बल्कि पीछे खींचने वाला है, जोकि चिंताजनक है। 

यहां यह बताना उचित होगा कि रक्षा पर संसद की स्थायी समिति का नेतृत्व करने वाले भाजपा के उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी ने संसद में 13 मार्च 2018 को जो रिपोर्ट रखी, उसमें स्पष्ट किया कि सशस्त्र सेनाओं के 68 फीसदी हथियार तथा उपकरण आदि पुराने हो चुके हैं, जोकि सेना के आधुनिकीकरण तथा युद्धक तैयारी को प्रभावित करते हैं। यह भी सिफारिश की गई थी कि सेना के लिए जी.डी.पी. का 2.25 प्रतिशत से 3 प्रतिशत तक हिस्सा उपलब्ध करवाया जाए। वास्तविकता पेश करने वाले खंडूरी को अध्यक्षता से फारिग कर दिया गया और तथ्य पेश करने वाले लैफ्टिनैंट जनरल शरत चन्द्र को भी चेतावनी दी गई। 

खंडूरी समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज करने का खामियाजा तो वायु सेना को तुरंत उस समय भुगतना पड़ा जब एच.ए.एल. द्वारा मुरम्मत किया गया दशकों पुराना मिराज-2000 फाइटर विमान एक फरवरी को टैस्ट राइड के दौरान दुर्घटना का शिकार हो गया तथा अत्यंत काबिल टैस्ट पायलटों को अपनी कीमती जानें कुर्बान करनी पड़ीं। बजट की कमी का दूसरा बड़ा झटका सेना को उस समय लगा जब हाल ही में कंट्रोलर जनरल ऑफ डिफैंस अकाऊंट्स (सी.जी.डी.ए.) ने हाजिर नौकरी करने वाले अधिकारियों की अस्थायी ड्यूटी के समय भत्ते आदि का भुगतान करने में फिलहाल असमर्थता जताई है। क्या कभी सांसदों के साथ भी ऐसा हो सकता है? क्या सांसदों का यह कत्र्तव्य नहीं बनता कि वे खंडूरी की तरह सेना की आवाज बुलंद करें? परमात्मा इन्हें सद्बुद्धि बख्शे। 

ओ.आर.ओ.पी. बारे अक्सर आम जनता को गुमराह किया जा रहा है। बेशक एक बार पैंशन तो बढ़ी परंतु संसद द्वारा स्वीकृत योजना के अनुसार नहीं। देश के विभाजन से लेकर मौजूदा समय तक यदि शासकों ने सही रणनीति बनाई होती तो विदेशों से हथियार, उपकरण आदि आयात करने के लिए जल्दबाजी न करनी पड़ती, न हाफिज सईद की गीदड़ भभकियां मिलतीं और न ही प्रधानमंत्री के अरुणाचल प्रदेश के दौरे के दौरान चीन भारत को आंखें दिखाने की हिम्मत करता।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)

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