आखिर प्रेम में हिंसा क्यों

Friday, Jun 02, 2023 - 06:19 AM (IST)

दिल्ली की एक कालोनी में रहने वाली साक्षी ने साहिल से बातचीत बंद कर दी थी। बताया जाता है कि उसकी मित्रता किसी और लड़के से हो गई थी, इसलिए उसने साहिल से बातचीत बंद की। इस अपमान को वह भुला नहीं पा रहा था। इसलिए उसने15 दिन पहले एक चाकू खरीदा। फिर एक दिन साक्षी जब रास्ते में मिली, तो उस पर चाकू के 16 वार किए। तब भी मन नहीं भरा, तो पत्थर से सिर कुचला। साक्षी की मौत हो गई। तमाशबीन तमाशा देखते रहे, किसी ने उसे बचाने की कोशिश नहीं की। अगर बचाते तो साहिल अकेला था, वे 8-10 थे, लेकिन जिसके हाथ में चाकू हो उससे भला कौन रंजिश मोल ले। वो ताबड़-तोड़ हमले करता रहा , वे देखते रहे, आते-जाते रहे। जिसने भी वह वीडियो देखा, वह घबराए बिना नहीं रह सका। 

दूसरी घटना में एक युवक ने एक युवती को होटल में बुलाया। युवती की 2 महीने पहले ही दूसरी शादी हुई थी। युवक ने पहले लड़की को उसी के दुपट्टे से गला घोंटकर मारा, फिर उसी दुपट्टे से फांसी लगा ली। मरने से पहले उसने युवती के पति को फोन करके कहा कि उसने मुझे धोखा दिया था, अब तुम्हें भी देती , इसलिए मार दिया। ऐसी घटनाएं देश में अनेक स्थानों पर लगातार होती सुनाई देती हैं। अधिकांश निर्मम हत्याएं या तो प्रेमिका की की जाती हैं या प्रेमी की। इसके अलावा बहुत-सी महिलाएं विवाहेत्तर सम्बंधों के चलते अपने मित्र के साथ मिलकर पति को मौत के घाट उतार देती हैं। वे मासूम बच्चों की परवाह भी नहीं करतीं। 

इन घटनाओं को पढ़कर-देखकर महसूस होता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि यदि प्रेमिका ने बात करने से मना कर दिया या पति ने किसी और के साथ देख लिया तो पहला और आखिरी विकल्प जान से मारने का लगे। क्यों बातों को सुलझाया नहीं जा सकता। मारने वाले कभी यह भी नहीं सोचते कि कानून की गिरफ्त में आएंगे तो क्या होगा। शायद उनके मन में हमारी न्यायिक प्रक्रिया को लेकर यह बात बैठी हुई है कि वे हत्या जैसे गम्भीर अपराध करके भी बच निकलेंगे। किसी की हत्या, निर्ममता से किसी की जान लेना डराता क्यों नहीं। डर खराब बात है, लेकिन कई बार वह हमें जघन्य अपराधों से बचाता भी है। फिर बदले की यह कैसी भावना है जो मामूली बातों पर भी इतना हिंसक बना देती है। 

जिस प्रेम के बारे में कहा जाता है कि उससे जगत जीता जा सकता है, ढाई आखर प्रेम का पढ़कर दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान बना जा सकता है। प्रेम संसार की सबसे कोमल भावना है, तब ऐसा क्यों होता है कि प्रेम में वहशी दरिंदा बनने से भी परहेज नहीं किया जाता। कई लोग तो ऐसे भी दिखते हैं, जो पकड़े जाने पर धमकी देते हैं कि कोई बात नहीं, अभी पकड़े गए हैं। जब छूटकर आएंगे तो एक-एक का हिसाब करेंगे। ऐसा बदला लेंगे कि देखने-सुनने वाले कानों को हाथ लगाएंगे। यानी कि अपराधियों को न कानून का डर है, न कोर्ट-कचहरी का, न ही जेल का। तभी तो ऐसे लोग जब जेल से बाहर आते हैं, तो 2 उंगलियां उठाकर विजय का चिह्न बनाते हैं, जैसे कि कोई बहुत बड़ा काम करके आए हों। उन्हें फूल मालाओं से लादने वाले और जुलूस की शक्ल में अपने घर-गांव ले जाने वाले भी मिल जाते हैं। घर पहुंचकर बाकायदा उनका स्वागत किया जाता है। दावतें होती हैं। आसपास वाले उनके छूटने की बधाई देते हैं। 

अपराध का ऐसा आदर्शीकरण हिंदी फिल्मों में रहा है। न केवल एंग्री यंग मैन वाले दिनों में ऐसी फिल्में भारी सफलता प्राप्त करती थीं, बल्कि आज भी सुपरहिट होती हैं। जब अपराधियों को इतना बड़ा हीरो बनाया जाएगा, बहुत बार राजनेता भी उनके घरों के आगे लाइन लगा लेंगे, तब कौन ऐसा है, जो अपराध करने से डरेगा बल्कि अपराध को ताकत समझा जाएगा। अब यह अपराध चाहे किसी और कारण से किया जाए या प्रेम के लिए ही। इन दिनों प्रेम में इतनी पजैसिवनैस और ङ्क्षहसा  घुसी है कि उसे प्रेम कहते भी डर लगता है। तू मेरी नहीं या मेरा नहीं तो किसी और का भी नहीं।आखिर प्रेम में इतनी ङ्क्षहसा कहां से आ गई। क्या कोई सोचता है।-क्षमा शर्मा
 

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