अंग्रेजों के अत्याचारों पर ये खामोशी क्यों

punjabkesari.in Monday, Oct 03, 2022 - 04:49 AM (IST)

पिछले कुछ वर्षों से मुसलमानों को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चिंता काफी बढ़ गई है। हर देश अपने तरीके से मुसलमानों की धर्मांधता से निपटने के तरीके अपना रहा है। खबरों के मुताबिक चीन इस मामले में बहुत आगे बढ़ गया है। वैसे भी साम्यवादी देश होने के कारण चीन की सरकार धर्म को हेय दृष्टि से देखती है। पर मुसलमानों के प्रति उसका रवैया कुछ ज्यादा ही कड़ा और आक्रामक है।

इसी तरह यूरोप के देश जैसे फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड और इटली भी मुसलमानों के कट्टरपंथी रवैये के विरुद्ध कड़ा रुख अपना रहे हैं। इधर भारत में मुसलमानों को लेकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक तेवर अपनाए जा रहे हैं। इस विषय पर मैंने पहले भी कई बार लिखा है। मैं अपने सनातन धर्म के प्रति आस्थावान हूं। पर यह भी मानता हूं कि धर्मांधता और कट्टरपंथी रवैया, चाहे किसी भी धर्म का हो, पूरे समाज के लिए घातक होता है।

जहां तक भारत में हिंदू- मुसलमानों के आपसी रिश्तों की बात है, तो यह जानना बेहद जरूरी है कि हिंदू धर्म का और हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का जितना नुक्सान 190 वर्षों के शासन काल में अंग्रेजों ने किया उसका पासंग भी 800 साल के शासन में मुसलमान शासकों ने नहीं किया। मुसलमान शासकों ने जो भी जुल्म ढाए हों, हमारे सनातनी संस्कारों को समाप्त नहीं कर पाए। जबकि अंग्रेजों ने मैकाले की शिक्षा प्रणाली थोप कर हर भारतीय के मन में सनातनी संस्कारों के प्रति इतनी हीन भावना भर दी कि हम आज तक उससे उबर नहीं पाए।

मैं गत 30 वर्षों से देश-विदेश में धोती, कुर्ता, अंगवस्त्रम पहनता हूं और वैष्णव तिलक भी धारण करता हूं, तो अपने को हिन्दुवादी बताने वाले भी मुझे पौंगापंथी समझते हैं। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल काल में गौ वध पर फांसी तक की सजा थी, लेकिन अंग्रेजों ने भारत में गौ मांस के कारोबार को खूब बढ़ावा दिया और गैर-सवर्ण जातियों में सुअर के मांस को प्रोत्साहित किया। इससे अंग्रेज हुकमरानों के उन दिनों मांस खाने के शौक को तो पूरा किया ही, बड़ी चालाकी से उन्होंने हिंदू-मुसलमानों के बीच एक गहरी खाई भी पैदा कर दी।

जहां तक मुसलमान शासकों के हिंदू और सिखों के प्रति हिंसक अत्याचारों का प्रश्न है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई जैसे हिंदू राजाओं के सेनापति मुसलमान ही थे, जो उनकी तरफ  से मुगलों और अंग्रेजों की फौजों से लड़े। उधर अकबर, जहांगीर और औरंगजेब व दक्षिण में टीपू सुल्तान जैसे मुसलमान शासकों के सेनापति हिंदू थे, जो हिंदू राजाओं से लड़े। यानी मध्य युग के उस दौर में हिंदू-मुसलमानों के बीच पारस्परिक विश्वास का रिश्ता था।

आर.एस.एस. के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी लाख हिंदू-मुसलमानों का डी.एन.ए. एक ही बताएं, पर आर.एस.एस. व भाजपा के कार्यकर्ता और इनकी आई.टी. सैल आजकल रात दिन हिंदुओं पर हुए मुसलमानों के अत्याचार गिनाते हैं। आश्चर्य है कि अंग्रेजों के हम भारतीयों पर दो सौ वर्षों तक लगातार हुए राक्षसी अत्याचारों और भारत की अकूत दौलत की जो लूट अंग्रेजों ने करके भारत को कंगाल कर दिया, उसका ये लोग कभी जिक्र तक नहीं करते,क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यों है?

आज हर उस व्यक्ति को जो स्वयं को देशभक्त मानता है इतिहासकार श्री सुन्दर लाल की शोधपूर्ण पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ अवश्य पढऩी चाहिए, जिसे 1928 मार्च में प्रकाशित होने के चार दिन बाद ही अंग्रेज हुकूमत ने प्रतिबंधित कर दिया था और इसकी चार दिन में बिक चुकी 1700 प्रतियों को लोगों के घरों पर छापे डाल-डाल कर उनसे छीन लिया था। क्योंकि इस पुस्तक में अंग्रेजों के अत्याचारों की रौंगटे खड़े करने वाली हकीकत बयान की गई थी। जिसे पढ़ कर हर हिंदुस्तानी का खून खौल जाता था।

अंग्रेज सरकार ने पुस्तक के प्रकाशक, विक्रेताओं, ग्राहकों और डाकखानों पर जबरदस्त छापामारी कर इन पुस्तकों को छीनना शुरू कर दिया। देश के बड़े नेताओं ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई और लोगों से किसी भी कीमत पर यह किताब अंग्रेजों को न देने की अपील की। इस तरह अंग्रेज पूरी वसूली नहीं कर पाए। इस हिला देने वाली किताब की काफी प्रतियां पाठकों के गुप्त पुस्तकालयों में सुरक्षित रख ली गईं।चूंकि मेरे नाना संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) की विधान परिषद के उच्च अधिकारी थे, इसलिए उन्हें भी अपने अंग्रेज हुक्मरानों का डर था।

उन्होंने यह किताब लखनऊ की अपनी कोठी के तहखाने में छिपा कर रखी थी। मेरी मां और उनके भाई-बहन बारी-बारी से तहखाने में जाकर इसे पढ़ते थे। जितना पढ़ते उतनी उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और आक्रोश बढ़ता जाता था। आजादी के बाद भारत सरकार के ‘नैशनल बुक ट्रस्ट’ ने इसे दो खंडों में पुन: प्रकाशित किया। तब से यह पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ बेहद लोकप्रिय है और इसकी हजारों प्रतियां बिक चुकी हैं।

जहां तक बात मुसलमानों के कट्टरपंथी होने की है तो मेरा और मेरे जैसे लाखों भारतीयों का यह मानना है कि जिस तरह मुसलमानों में कुछ फीसदी कट्टरपंथी हैं वैसे ही ङ्क्षहदुओं में भी हैं। दूसरी तरफ मुसलमानों को भी इंडोनेशिया जैसे देश के मुसलमानों से सीखना होगा कि भारत में कैसे रहा जाए?-विनीत नारायण


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