युवा पायलटों के साथ यह बेइंसाफी क्यों

Monday, Sep 04, 2017 - 01:39 AM (IST)

नागरिक उड्डयन मंत्रालय और निजी एयरलाइंस की मिलीभगत के कई घोटाले हम पहले ही उजागर कर चुके हैं। हमारी ही खोज के बाद जैट एयरवेज को सवा सौ से ज्यादा अकुशल पायलटों को घर बिठाना पड़ा था। ये पायलट बिना कुशलता की परीक्षा पास किए डी.जी.सी.ए. में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे थे। 

हवाई जहाज का पायलट बनना एक महंगा सौदा है। इसके प्रशिक्षण में ही 50 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार पेट काटकर अपने बच्चे को पायलट बनाता है। इस उम्मीद में कि उसे जब अच्छा वेतन मिलेगा तो वह पढ़ाई का खर्चा पाट लेगा। पायलटों की भर्ती में लगातार धंाधली चल रही है। योग्यता और वरीयता को कोई महत्व नहीं दिया जाता। पिछले दरवाजे से अयोग्य पायलटों की भर्ती होना आम बात है। पायलटों की नौकरी से पहले ली जाने वाली परीक्षा में भी खूब रिश्वत चलती है। ताजा मामला एयर इंडिया का है। 21 अगस्त को एयर इंडिया में पायलट की नौकरी के लिए आवेदन करने का विज्ञापन आया। जिसमें रेटेड और सी.पी.एल. पायलटों के लिए आवेदन मांगे गए हैं, लेकिन केवल रिजर्व कोटा के आवेदनकत्र्ताओं से ही। 

देखने से यह प्रतीत होता है कि यह विज्ञापन बहुत जल्दी में निकाला गया है क्योंकि 31 अगस्त को लखनऊ के एक समाचार पत्र में सरकार का एक वक्तव्य आया था कि रिजर्वेशन पाने के लिए परिवार की सालाना आय 8 लाख से कम होनी चाहिए। यह बात समझ के बाहर है कि कोई भी परिवार जिसकी सालाना आय 8 लाख रुपए से कम होगी वह अपने बच्चे को पायलट बनाने के लिए 35 से 55 लाख रुपए की राशि कैसे खर्च कर सकता है वह भी एक से 2 साल के अंदर। इस विज्ञापन में पहले की बहुत-सी निर्धारित योग्यताओं को ताक पर रखा गया है। आज तक शायद ही कभी एयर इंडिया का ऐसा कोई विज्ञापन आया हो जिसमें सी.पी.एल. और हर तरह के रेटेड पायलटों से एक साथ आवेदन मांगे गए हों। 

कई सालों से किसी भी वेकेंसी में आवेदन के लिए साइकोमैट्रिक पहला चरण हुआ करता था। पिछले कुछ सालों में रिजर्व कैटेगरी के बहुत से प्रत्याशी इसे सफलतापूर्वक पास नहीं कर पाए। इस बार के विज्ञापन में उसको भी हटा दिया गया है। अब तो और भी नाकारा पायलटों की भर्ती होगी। अभी तक सरकारी नौकरियों में रिजर्व कैटेगरी के लिए 60 प्रतिशत का रिजर्वेशन आता था। इस वेकेंसी में टोटल सीट ही रिजर्व कैटेगरी के लिए हैं। जनरल कोटे वालों का कहीं कोई जिक्र नहीं है। पिछले साल एयर इंडिया अपनी वैकेंसी में रिजर्व कैटेगरी की सीट उपयुक्त प्रत्याशी के अभाव में नहीं भर पाई थी। उस संदर्भ में यह विज्ञापन अपने आप में ही एक मजाक प्रतीत होता है। 

एयर इंडिया के हक में और प्रत्याशियों के भविष्य को देखते हुए क्या यह उचित नहीं होगा कि रिजर्व कैटेगरी के योग्य आवेदनकत्र्ताओं के अभाव में रिजर्व कैटेगरी की सीटों को जनरल कैटेगरी से भर लिया जाए। महत्वपूर्ण बात यह है कि सी.पी.एल. का लाइसैंस लेने के लिए व्यक्ति को 30 से 35 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं। किसी भी विशिष्ट विमान की रेटिंग के लिए ऊपर से 20 से 25 लाख रुपए और खर्च होते हैं। जब सारी योग्यताएं लिखित और प्रायोगिक पूरी हो जाती हैं, तभी डी.जी.सी.ए. लाइसैंस जारी करता है। सारे पेपर्स और रिकॉडर््स चैक करने के बाद ही यह किया जाता है। इतना सब होने के बाद किसी भी एयर लाइन को पायलट नियुक्त करने के लिए अलग से लिखित परीक्षा/ साक्षात्कार/ सिम चैक लेने की क्या आवश्यकता है? 

एक व्यक्ति को लाइसैंस तभी मिलता है, जब वह डी.जी.सी.ए. की हर कसौटी पर खरा उतरता है।  नियुक्ति के बाद भी हर एयर लाइंस अपनी जरूरत और नियमों के अनुसार हर पायलट को कड़ी ट्रेनिंग करवाती है। एक बार ‘सिम टैस्ट’ देने में ही पायलट को 25 हजार रुपए उस एयर लाइंस को देने पड़ते हैं। आना-जाना और अन्य खर्चे अलग। इतना सब होने के बाद भी नौकरी की गांरटी नहीं। किसी भी आम पायलट के लिए यह सब खर्च अनावश्यक भार ही तो है। 

जरूरत इस बात की है कि डी.जी.सी.ए. में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जाए। भाई-भतीजावाद को रोका जाए। डी.जी.सी.ए. आवेदनकत्र्ता पायलटों की ऑनलाइन एक वरिष्ठता सूची तैयार करे, जिसमें हर पायलट को उसके लाइसैंस जारी करने की तारीख और रेटिंग की तारीख के अनुसार रखा जाए। इसके बाद हर एयर लाइंस अपनी जरूरत के अनुसार उसमें से वरिष्ठता के अनुसार प्रत्याशी ले ले और अपनी जरूरत के अनुसार उनको और आगे की ट्रेङ्क्षनग दे।
 

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